पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/१९७

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- - वायुविज्ञान .: . :: जप्नीय वाष्पका प्रमाण । ..... | होनेसे वाइपोद्गममें यथेष्ट बाधा उत्पन्न होती है । यायु -- डॉफ्टर डाल्टनका कहना है; कि फारनहोटके २१२ पाप परिपूर्णरूपसे सिक्त होने पर भी वाणोद्गममें उिग्रोके तापसे प्रति मिनट ४.२४४ प्रेन जल वाप्पमें परि. व्याघात उपस्थित होता है। णत होता है। सूर्योत्तापते जो जल वाष्प बन जाता - शीतकालमें वायु बहुत शुरुक होती है। इसीलिये है; आन सहजमें हो.उसकी परीक्षा की जा सकती है। शीतकालमें बहुत वाष्प उत्पन्न होता है। प्रोप्मयायुको जलीय वापकी उत्पत्ति। उष्णता हो अधिक परिमाणसे वाष्पोद्गम होनेका कारण

जल के साथ तापका स्पर्श हो इस बाप्पोत्पत्तिका एक है। किन्तु इस समयमें घायुराशि गीत ऋतुगें स्थित

मात्र कारण है। अग्निफे ताप, सूर्यफे ताप, दैहिक ताप, बाप्पगशिक द्वारा परिसिक रहती है. अतएव पायुमै भूमिके अपन्तरस्थित ताप आदि द्वारा विविध प्रकार अधिक याप मिश्रित हो नहीं सकता। इसीलिये फे जलीय पदार्थ उत्तप्त हो कर पापरूपमें परिणत होते , जलाशय मादि शो 'कालमें जितने सूपते ५, प्रीष्मकाल. (हैं। प्रयासबायुके द्वारा भी घायुमें जलोय यापकी मात्रा में उनना नहीं सूत्रते। इसी तरह शोत-प्रीमनात याप्प धंदाजाती है। स्वक्से ही दैहिक जलीय पदार्थ बाष्प | वी वृष्टिरूपसे गिरता है। हमें आकाशमैं इस जलीय रूपसे बाहर हो कर वायुसे मिल जाता है । लकड़ी, कोयला वापके यिविधरूप दिखाई देते हैं, जैसे-मेघ, सृष्टि, और कई तरह के दीपोंके जलाने से भी जलीय यापकी शिशिर, छिन्न तुपार और शिला आदि । जलीय पार. उत्पत्ति होती है। समुद्र तथा तालाब यादि जलाशयोंसे को बात कहने पर इन सय बातोंकी कुछ आलोचना इस प्रकार जितना जल नित्य याप्पमें परिणत ही माकाश-1 करना भावश्यक है। में उड़ जाता है, उसकी मालोचना करने पर विस्मित | . . कुहरा । होना पड़ता है। वैज्ञानिकों ने अनुमानिक गणनामें मिदान्त' . पाले कुदरेको यात लिखी जाती है। पाश्चात्य वैशा. किया है २,०५..२,००,००,००,००० (२ नोल ५ व ! निकोंने इसके सम्बन्धमें यहुनेरी मालोचनायें की हैं। ऊपरी अर्य'.) मन जल वापरूपसे पृथ्या पर गिरता है। सिवा। भागमें जो जलीय चापराशि वायुको स्वच्छतामें यात्रा

इसके करोड़ों मन जल शिशिर, तुपार, छिन्न तुपार.! डालती है, मोशे साधारणत: कुहरा कहते हैं। कुदरे

गिलावृष्टि, कुहरे मादिमें परिणत होता है। विशाल विपुल! और वृष्टिमे थोड़ा ही प्रार्थप है। आकाशके ऊपरी भाकायको यायुराशिम याप संपमें इतना अधिक जल | स्तरमें जो घनोभून चापराशिभ्रमण करता है, उसीको रदता है। इससे स्पष्ट प्रतीत होता है, कि नित्य पृथ्यासे मेघ रहते है। कुदरे भी मेघ है मही, किन्तु यह भूमागके एक खर्च मग और प्रति घण्टेमें ४.१६,६६,६६,६६६ अति निकट हो सश्चित होता है. कुहरा शतम जल- मन जल घायुराशिफे साथ याकारमें मिल जाता। विन्दुको ( Aquous Spherules) समष्टि है। यह सब है। सूर्य किरण ही इस जलाकर्षणका प्रधानतम हेतु जलबिन्दु इतने छोटे हैं, कि विना अणुयोक्षण दिपाई है। पि, शिशिर तुपार, शिला, कुहरे मादिका मूल कारण नहीं देते । जिम कारण शिशिरको उत्पत्ति होती है, यह जलीय पाप है। पाप आत स्थानापेक्षा अनावृत उसके विपरोत हेतुसे ही कुहरा उत्पन्न होता है। भाद्र स्थान मधिक परिमाणसे उत्पन्न होता है। जिस जलसे भूभागका तापमान की (Temperature) तस्मंलग्न यायु. याप प्रपन्न होता है, उसके गिकट चारों मोर यदि उष्ण राशिके उष्णतामानको अपेक्षा कुछ अधिक होनेमे कुहरेको पायु प्रवाहित होती, तो उससे शो शोप्र याप उत्पन्न | उत्पत्ति होती है। आई और अपेमारन गधिक उत्तप्त घोता है। गगीर पात्रको अपेक्षा छिछले पानमें बहुन | भूमागसे उद्भूत जलीय यापनिटम्प शीतल यायुके जना पाप उत्पन होता है। घायुफे साहायसे भी | स्पर्शसे घनीभूत होता है और छोटे छोटे जसविन्दुमोमें याप उत्पन्न दोना है। जल.गौर वायुको उता वरावर परिणत होता है, यही कुहरा है। कुहरेके उद्गमके लिये दोनेसे जलको भपेशा पायु-१५ तापांशसे अधिक शीतला दो गवस्थायें प्रयोजनोय हैं। ऊपरको घायुराशिको Vol. XXI. 45.