यायुविज्ञान १७६
- लेम ( Lame ), धेकरेले ( Recqueral ) और पेनटियर | साथ प्रायः ही दक्षिण-पश्चिम और बढ़नेपाली पायुके
! ( Peltier ) गादि पण्डितोंने गवेषणापूर्ण आलोचना की प्रवादका सम्बन्ध है । इस चाय के संस्पर्शसे सिरस मेघ है। माकाशमें पतङ्ग उड़ा कर पण्डितगण प्राचीन क्रमशः धनीभूत होता, याय भी फमशः माद हो जाती
- सायमें भी इमफे सम्बन्ध भनेक तथ्य जान सके थे। है, इसके याद घृष्टि होती है।
Fधीयाले मेघमो साध तड़ित्को गति घनिष्ठता है। हम सिरोपयूम्यूलस-यह मेघ तापोनयका परिचायक विषय पढ़ जानेके भयसे और भासङ्गिकताके कारण ': यहां उन सब विषयोंको आलोचना करना सुसङ्गत नहीं इस तरहका मेघफल-विचार यूरोपीय वैमानिकाकी समझते। गयेपणाके अन्तर्भुत है। किन्तु इसके सम्बन्ध भार- " मेघ भौर विधुव-प्रदेश । तीय पण्डितोंको गवेपणा ही अधिकतर समीचीन है। ' विषुव प्रदेशफे साथ मेघोंका बहुत घनिष्ठ सम्बन्ध | सन् १८६१ ई०में म्पू निक (Munic) नगरमें इएटर. है। उष्णमएडलफे योवफा प्रदेश सूर्यके उत्तागसे | नेशनल मिरिलिजिकेल कन्फन्समें स्थिर हुआ, कि होधिकतर उत्तप्त होता है। उत्तप्त भूभाग और जलभागसे मेघ साधारणतः पांच भागोंमें विभक है। जैसे- • अधिक मात्रामें जलीयवाष्प भाफाशके उच्चस्तर, पुठ (क) आकाशके उच्चतर प्रदेशमें विवरण करनेवाले कर घनीभूत होता है। यह यहां बहुत समय तक अपेक्षा. मेघ ( Very high in the air ) | " एन स्थिर रहता है, उससे भूमाग सूर्यके प्रचण्ड तापसे (ख) भाकाशके उच्चतर प्रदेशमें विचरण करनेवाले कुछ देर तक पा रहता है। धनषध जलाशयादिसे मेघ ( At a mediuin hight )। • जलीयबाप्पोन्द्रमका परिमाण फुछ कम हो जाता है। (ग) भपृष्ठक निकटवत्ती मेघ (Lying low or near
- संतरह यिपुर प्रदेश जीयोंक रहने लायक रहता है।।
earth)। मेघका कार्य। (घ) पायुके उन्ध प्रवाहस्तरस्थ मेघ ( In ascen-
- 'फेघल धारा परसा कर पृथ्वीको शीतल कर देना।
ding current ot air)। 'मेघका उद्देश्य नहीं है। मेघ द्वारा सूर्यका ताप और . (व) आकार परिवर्तनोन्मुख चाप (Masses of ' नैशवाप्पोद्गमका हास होता है। जीवजगत्के लिये • यह दो अवस्थाये प्रयोजनीय है। vapour changing in form)। मेषको फलगाना।। मेघ वाष्पके घनीभूत दृश्यमान अवस्थामास हैं। . याकाम कर कौन मेघ किस तरहका दिशा देता। दो कारोंसे बाप्प घनीभूत हो कर मेघफे रूप में परिणत • है, उसका कैसा फल होता है, हमारे परागरसंहिता ___आदि शालोम तथा घाध और 'युट्टोफ यचनोंसे उसका . (१) घायुका स्तर विशेष शिशिरवत् शीतल हो कर बहुत वियरण मालूम होता है। पाश्चात्य |धानिक- तत्स्थानीय जलीय पापोंको न्यूनाधिक परिमाणसे गण भी इस सम्बन्धमें कुछ कुछ अनुसन्धान कर , साध्य जलदाफारगे ( Stratus) परिणत कर सकता चुके हैं। यथा- - . सिरस-चे धाकाशमें अत्यन्त ऊपर इस जानिये .. (२) यया.मायायुराशि भोसल जलीय पाप- रमतशुन गोंको दौड़ते देखने पर जानना होगा,कि राशियों में प्रविष्ट हो कर उनको गिरिनिभ मेधर्म ( Cum. मौन हो माझाश परियर्शन होगाप्रोमकाल में यह ulus) परिणत कर सकती है। पृष्टि होने का पूर्व लक्षण सूचित करता है। शीतकाल मेघसस्यविद पण्डिनाने मे?को प्रायः चार भागों • इस जातिका मेघ मानेसे याद जान लेना चाहिये, कि विभक्त किया है। इनका नाम और पियरस पारले हो • जोन हो गधिक मात्रामें सुपारपात होगा। इस मेघ । लिम्बा जा चुका है। यहां फे.पर पदी यकश्य है, कि | होता है।