पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/२०६

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मा . १८० . वायुविज्ञान १नेटस मेघ सुदीर्घ और भाकाशमें चावालकी तरह... सप विषयोंको आलोचना मतीय प्रयोजनीय है । मेघमाला । (Horizontally ) स्तर स्तरमै अपस्थान करते हैं। का जो श्रेणो विभाग किया गया, उसके साबन्धमें आ (२) फ्यूम्यूलस मेघ पर्वताकार हैं । इनका वाप्प भी कोई विशेष तथ्य निरूपित नहीं हो सका है। इसमें .. तुपारवत् घनीभूत है। सम्बन्धी गाज भी मिटिपरलजीविद् (sleteorologict) -- (३) सिरस ( Cirris) मेघ आकाशके अत्युच्च पाएडान यथेष्ट गवेषणा करनी भारम्भ की है, फिरिस प्रदेशमें फाशकुसुम-काननको तरह अयस्थान करते हैं। नियासे और फिस प्रणालीसे अाकाशमएडल में मेधः- इनका याप्प सर्वापेक्षा अल्प परिमाणसे घनीभूत है। माला गठित होती है । मेधके साथ चाय का और चाय की इनपे. मिश्रणसे और भी अनेक प्रकार उत्पन्न होनेवाले। गतिफे सम्बन्ध विचार, एक तरहके वैज्ञानिकों का चिर मेधों के नाम लिखे गये हैं। जैसे-सिरोफ्यूलस, नेट भाकृष्ट हुआ है। अभी भी ये किसी पक सिद्धान्त 4t . फ्यूलस, सिरोष्ट्रेटस इत्यादि। नहीं पहुंचे हैं। साधारण रुपक या किसान मोर मलाह (४) निम्यस ( Nimbus ) मेघ दृष्टि धारावी हैं। भी जब मेघ देख तूफान वृष्टिका अन्दाजा लगा लेते हैं यह मेघ अन्यान्य मेघोंसे भूपृष्ठसे वहुत निकट विचरण , तद यह निश्चय है, कि वैज्ञानिक विशेषरूपसे गालोचगा . करनेवाला है। करने पर किसो उत्तम.सिद्धान्त पर पहुंगे। नांचे इसके ___मय तक मेघोंके अघस्थिति अग्रस्थानभेदसे जो!. सम्बन्ध कुछ संक्षिप्त मर्म दिया जाता है.-'... श्रेणी-विभाग किया गया है, अब उनकी उश्चताके सम्यन्धः (१) प्लेटस मेघको देख कर समझना होगा कि में साधारणतः जो सिद्धान्त स्थापित हुआ है, नाचे यह ऊर्ध्वगमगशील वाय फा प्रवाह बहुत.फम है। ... प्रकाशित किया जाता है। (२) फ्यूम्यू लस मेघ ऊर्ध्वगमनशील वाय प्रवादफे . (क) पूर्वोक्त चिहित मेघश्रेणो साधारणतः १०००० प्रवाहका परिचायक है। भूपृष्ठका ऊपरी भाग गरम हो । चे पर विचरण करती है। सिरस, सिरोट्रेटस और कर अपने ऊपरी घायु अर्ध्वकी ओर उठती है । उसी. सिरोफ्यूमिलस मेघ इसी श्रेणीफे अन्तर्गत है। चाय के प्रभायसे आकाशका मेघ ऊपर, चढ़ता रहता है। .. (स) चिहित श्रेणो मेघ ३०००से ६००० गजको मेघस्तर गरम हो कर भी अपने ऊपरको चाप को कर्य. . ऊचाई पर विचरण करता है । जैसे सिरोफ्यूमिलस गौर को ओर परिचालित कर सकता है। फलतः पापराशि सिरोट्रेस। अत्यन्त घनीभूत होनेसे, उसमें सौरकर इस तरहसे (ग) चिह्नित मेघमालाको अचाई १००० से २०००० । शोपित होता है, कि सब जलीयकणाको पार कर सूर्य गज तक है। एनेटफ्यूलस और निम्बस इसी श्रेणो किरण भूपृष्ठ पर पतित नहीं हो सकती है। यह यिकीर्ण . गन्तर्गत हैं।

न हो ऊपर घायुराशिको. उत्तप्त करती हैं। निम्नमांग

(घ) उच्च वायु स्तरों विचरणशील मेकी भित्ति और भूपृष्ठ स्निग्ध छाया शीतल होता है। क्यू म्यू. । मायः १४०० गज धी भोर शिखरकी ऊंचाई ३००० से लस मेघ देख कर यह भी अनुमान होताह, किया । ५००० गज है। पयूलस और फ्यूम्यूनिम्यस मेघ इसी घायुराशि किसो अर्घतमा प्रतिबन्धकयोग्य पदार्थकी ओर श्रेणीके हैं। प्रयाहित हो रही है। चाहे जिस तरह क्यों न हो, पायु () मेघगठनोन्मुख. याप्प १५०. गंजी ऊचाई। जितनी ही अर्ध्वगामो होगो, चे स्थानकै कम प्रचाप- पर विचरण करता है। ट्रेटस इसी श्रेणीका है। में पायुराशि उतना हो चारों ओर फैलतो जायेगो । था. : - याय के साथ मेध टि आदिका सम्याघ यहुत घनिष्ठ | जितनो फैलता है, उसाफे गनुसार यह शीतल भी हुआ है। याय का ताप, घायुको मादयस्तर विचरणशील करता है। . : .. . . . . . . • प्रायुको शोनता मो उपाताफे साथ मेघ यष्टि आदिका. थामोडाइनामिषस ( Thermodynāniics) या ताप । बहुत घनिष्टता है । मतएर यायधिशान लेगो . इन विशानमे इस विषय पर यथेष्ठ मालोचना की गई है।