पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/२१२

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१८६ वायुविज्ञान हद पदार्थापेक्षा सरल पदार्थमें ही उष्णताजनित वृद्धि । फलतः निरक्षवृत्तके सनिकट उत्तात वायु ऊपर उठकर अधिक परिमाणसे दिखाई देती है । वायु तरल पदार्थों में ऊचाईको शीतल वायुसे मिल कर शोतल हो कर फिर अति सूक्ष्म है। इसीलिये प्रोप्नमें यह स्फोत होती है। केन्द्रसे आई घायुका स्थान पूर्ण करने के लिये मन्द्रको याय स्वभावतः स्थिर भायसे पृथ्वीपृष्ठ पर सर्वत ओर दौड़ती है। इस तरह पृथ्यो सन्निकर केन्द्रसे . . फैली हुई है। यदि किसी कारणसे किसी प्रदेश में सूर्यो । निरक्षत्ताभिमुख दो बायुका प्रवाद और भाकाशक साप अधिक हो, अथवा दावानल या अन्य किसी कारण. ऊर्ध्वदेश हो कर इस तरहके दो यायु प्रवाह निरन्तर यश यह प्रदेश अधिक उत्तप्त हो, तो शेषोक प्रकारसे निरक्षदेशसे केन्द्रागिमुख गमन करता है। इस यायु. यह तुरत हो स्फोत हो कर पाय बत्तों घायुकी अपेक्षा प्रवाह-चतुएयको कभो निगृत्ति नहीं होती। सोसे इसको पहुत हल्की हो जाती है। घायुधर्मके अनुसार यह नियतवायु' कहते हैं। ऊपर उठने लगती है। फिर प्रथमोक्त नियमके अधीन सुमेरु फेन्द्रसे इस नियत घायुका जो गवाह परिचा- दूसरे दिस्थित शीतल और स्थूल वायु लघुवायु द्वारा लित होता है, उसको गति उत्तरमुखो है। किन्तु प्रत्यक्ष परित्यक्त स्थानको पूर्ण करती हुई उसी ओरको दौड़ती है। दृष्टिसे वह विशेष दृष्टिगोचर नहीं होतो यरं ऐसा मालूम होता है, कि ईशानकोण या अग्निकोगसे हो इस तरह उपर्युक दो स्थिर वायु निरन्तर सञ्चालित हो यह वायु पाई है। क्योंकि पृथ्वोको स्वाभाविक गति फर मन्द वायु, धुर्णितवायु ( ययएडर) और आंधी पूर्वको मोर है और उसका बैग बड़ा प्रबल है। यह बादि उत्पादन करती रहती हैं। प्राय: १ हजार ज्योतियो कोसस्थान में व्याप्त हो कर प्रति ___ यात्रु प्रति घण्टेमें आध कोस भ्रमण करती है, किन्तु | घण्टे परिभ्रमण करती है। यह गति हम उपलब्धि नहीं कर सकते। जो वायु प्रति __ अपर्याप्त आंधो भाते रहने पर भी घायु कमी एक . , घण्टे २ या २|| कोस भ्रमण करती है, उसका नाम मन्द सौ या सवा सौ कोससे अधिक स्थानमें परिभ्रमण वायु है। चौकोन एक हाथ परिगित स्थानों यदपायु नहीं कर सकती। इससे सुस्पष्ट रूपसे समझमें भाता जिस वेगसे माहत होती है, उसका भार पक छटांक है, कि उत्तर या दक्षिण मोरसे आंधी उठ कर चलनेसे यजनके अनुरूप है। प्रति घण्टे में जो पाय ५७ कोस पृथ्योके सम्बन्ध उसको गति ऋतु नहीं रहेगी और अतिकम कर सकती है, उसका नाम तेजो याय है। यह निरक्षात्त देशके लोग उस मांधीको शान या अग्नि वाय विशेष तेजोवन्त होनेसे घण्टेमें १०११५ कोस तक कोणस गाई हुई समझेगे। पहले कही हुई नियत पायुका जा सकती है। उस समय उसके येगका परिमाण चौकोन घेग आंधोफे येगकी अपेक्षा बहुत पसका है। मतः पद एक हाथका ३।४ सर होता है। सामान्य माधो प्रति पृथ्योकी अपस्या और गति अनुसार समायत: हो घण्टे पचीस या तोस कोस तक चली जाती है। इम ईशान और अग्निकोणागत होता है। इस घायु द्वारा समय उसके चेगका परिमाण मायः १२ सेर तक होता समुद्रपथस याणिज्य जहाजफे माने विशेष सुविधा है। तूफान या गांधी सब समय एक समानसे नहीं होता है। इससे मल्लाद इसको णज्य-वायु (Trade . भाती। इस कारण इसके सम्बन्ध कोई साधारण नियम | winds) कक्षा करते है। निरूपित नहीं हो सकता, जो कहा गया, यह सामान्य | सूर्योत्तापसे जलकी अपेक्षा स्थल भाग हो अधिक गांधीफे लिये स्थूल अनुमान है। उत्तप्त होता है । सुतरां पृथ्योफे जलाकीर्ण गागसे जिस पृथ्वीके मुमेय मोर कुमेय (North and South Polc)| भागमें स्थल अधिक है, उसी स्थानमें अधिक उता. केन्द्र अत्यन्त शीतल है । उक्त स्थानद्वयर्स जितने निरक्ष अनुभून होती है । पृथ्योको अयस्था अनुसार दम जाग वृत्त या पिपुररेखाको भोर प्रसर हुमा जाता है, उतने हा सकते हैं, कि निरक्षरतको दक्षिण गोरको अपेक्षा उत्तर प्रोमको गधिरता उपलब्धि होती है। इस कारण दोनों मोर ही स्थलका माग अधिक है। इमोलिये निरक्ष 'केन्द्रास, निरक्षरत्ताभिमुख दो यागु प्रधावित होती है। यतका स्थान मधिफ गर्ग नहीं मालूम हो कर उसके