पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/२३

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वद्विमिया-वन्य .. वहि नप्रिया (सं० स्त्री० ) स्वाहा। .. । । वहिनलोह (सक्को०) तान्न, तांबा। वह्निवधू (सं० स्त्री० ) यहनेधः। स्वाहा । यहि नलोहक (सं० क्लो०) यहि नदेवताक, लोहक । यहि नवोज (सं० मी०) यह नेयों।. १ स्वर्ण, | कांस, फांसा। सोना। ब्रह्मवैवर्त पुराणके श्रीकृष्णजन्मखण्ड में स्वर्णको वहि नवपत्रा (स० स्त्री०) लाङ्गलिया, मलिहारी या कलिउत्पत्ति विषयमें इस प्रकार लिया है। स्वर्गको सभा, यारी नामका विप। एक यार सद देवता बैठे हुए थे और रम्भा नाच रही वहि नवत् ( स० वि०.) पदिन अस्त्य मतुप मस्य व। थो। निविड़ नितम्यिनो रम्गाको देग्य कर गग्निदेव काम- अग्नियुक्त, यहि नविशिष्ट। पीड़ित हुए और उनका चोर्य स्खलित हो गया। लजा-घहि नवर्ण ( स० क्ली०) यह नेरिय रक्तो घणों यसा । १ घश इसे उन्दोंने कपड़ोंसे ढक लिया। कुछ दिनों पोछे । रक्तोत्पल, लाल कमल । (नि.)२ अग्निवर्ण, लाल वह दमकती हुई धातु हो कर यात्र छेद कर नीचे गिरा, रंगका । जिससे स्वर्णकी उत्पत्ति हुई । २ तन्त्रमें 'र' पीज। चहि नबल्लभ (स० पु०) यह नेवल्लभः प्रियः उहोपकत्वात् । वहि नभूतिक (सं० क्लो०) रौप्य, चांदी। .. . ! मर्जरस। यहि नभोग्य (सं० लो० ) वा नेरग्नेभोंग्यं भोगाई. हव्य- यहि नवीज ( स० पु.) १ निम्बुकवृक्ष, नीयूका पेड़। त्यात् । घृत, घो। . । (को०) २ स्वर्ण, सोना। ३ निम्युक फल, नीबू । वहि नमत् (सं०नि०) वहि नमदृश । वहिनशाला (स स्त्रो०) अग्निशाला, होमगृह । यहि नमधन (सं० पु० ) अग्निमन्यवृक्ष, , गनियारीका वहि नशिस्त्र (स' फ्ली०) वाह गरिय शिखा पस्य । पेड़। । कुसुम्भ। यहि नमथना (संखो०) यहि नमथन देखो। . . वहि नशिबर (सं० पु०) वहि नरिव शिखरं यस्य । चहि नमन्ध ( सं० पु०) वह नये अग्न्युत्पादनार्थ मध्यने लोचमस्तक । इति मन्ध-घञ्। अग्निमन्थ गृक्ष, गनियारीका पेड़। । यहि नशिखा (स० स्त्री०) यहि रिय शिखा यसः । घहि नमय (सं० वि० ) पद्दि न-स्वरूपे मयट । अग्निमय, १ लाङ्गलिया, कलिहारी या कलियारी नामका विप।२ अग्निस्वरूप। . . . . धातकी, धयका पेड़। ३ प्रियङ्गः। ४ गजपिप्पली, चहि नमारक (सं० क्ली०) वहिन मारयति विनाशयः | गजपीपल। तीति मृ-णि ण्वुल । जल। , गादि नमित (सं०..पु०) स्वहि न मित्र' यस्य । घायु, वहिनशुद्ध (स० वि० ) अग्नि द्वारा पिशुद्ध किया हुआ। घहि नभ्यरी (सं० स्त्री०) १साहा। २ लक्ष्मी। या । । वहि नसशक (स० पु. ) वह ने संघा यस्य, ततः कन् । यदि मुख (सं० पु० ) देवता । याको अग्निमें डाला हुआ भाग देवताओंको पहुंचता है इसीसे वे यदि नमुग्व कह चित्रकक्ष, बीतका पेड़। • लाते हैं। . . दिनसंस्कार ( स० पु० ) यह ने संस्कारः। अग्नियदि नमुखा (सं० स्त्री० ) लाङ्गलिका, विपलांगूलिया। । संस्कार। . , , हिनरस (सं० पु०) मान्युत्ताप, अग्निको ज्याला या यहि नसत्र (संपु०) यह नेर्जठराग्नेः सखा टच समा. तेजा | सान्तः । १ जोरक, जोरा। २ वायु । दिनधि (२० स्रो०) महाज्योतिष्मती लता। यहि नसाशिक (स' सभ्यः) अग्निके साक्षातमें जो वहि गरेतत् ( स० पु०) वह नी रेतो यस्य, गाग्निनिमित्त कार्य निष्पन्न हुआ है। . चोयत्वादेवासा तथात्वं । शिव । वन्य ( स० क्लो) पहतीति पद ( भन्यादयश्च । उपा यदि नरोहिणो ( स स्त्री० ) अग्निरोहिणी। . ४२११) इति या प्रत्ययेन साधुः। १ वाइन । यह