पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/२३५

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वारेन्द्र २०५ है।महामाताको पुरोके बाहरी भागों में एक ओर कालोदह। परिचित था। मुसलमान राजत्यकालमें राजशादी नामक बहुत बड़ा जलाशय और दूमरी ओर एक बहुत चारघाट अञ्चलसे जो एक राजपथ मुरवा सेरपुरको और - 'धड़ी खाई है। पुरीके बीच में महामाता मन्दिरकं पीछेको गौर वहांसे रगपुरसे मासाम प्रदेशी जाने के टिपे बना मोर कलिकदम्बको जड़में एक 'साधतवेदी' चबूतरा है।। था,* इस समय यह बिलुम हो गया है। इन सय कहा गया है, कि सातैलके राजा रामकृष्णा यही साधना राजपोंके सिया भीमके जाहाल नामक राजपाका भग्ना करते थे। बहुत पहलेसे हो प्रति दिन मछली मांस मादि पशेष स्थान स्थान पर दिखाई देता है। विराट शब्द देखो। विविध भोगौंका नियम था। सबसे २२ वर्ष पहले सेया. ___ यौद्ध और हिन्दू राजत्वकालों पक प्रधान राजाके अधीन इत राय बनमाली राय यहादुरके मछली मांसके भोग कई सामन्त राजे रहते थे, नाना स्थानको राजधानियों और बलिदानको प्रथा रोक देने पर भी घालतेभ्यरोकी | फे भग्नावशेष देखनेसे उस पातका परिचय मिलता • पूना नान्त्रिक मतसे ही सान होती है। है। पाल उपाधिधारी चाहये राजाने पापनारायणीके उत्त नीमगाछो नामक स्थानके निकट चैनघाटी मानके लिये मा कर इस देश उपनिवेगापित किया नामक स्थानमें जो रामजामति प्रायः तीन हाथ लाये । हो या नहीं किया हो अथवा पञ्चपाण्डयों के आश्रयदाता एक पत्थर पर खुदी हुई है। ऐसी जनथ ति है, कि यह विराट इस देशके राजा हो या न हो, थारेन्द्रको नैसर्गिक मुरथ राजा द्वारा स्थापित है। नोमगाछो नामक स्थान अवस्था और वर्तमान भग्नावशेषपूर्ण विविध स्थानों के विराट के दक्षिण गोह न होने पर भी वहां जयपाल प्रति दृष्टिपान करनेसे मालूम होता है, कि एक बार कई नामक पराकान्त राजाने जयसागर नामक पोखरा खुद छोटे छोटे राजाओंकी ममप्रसि पान्द्र गठित हुगा था। पाया और बहुतेरे मन्दिर बनवाये थे। उनके द्वारा उक स स्थान मिले प्राचीन ताम्रशामन और शिला. दशभुजा मूर्तिको स्थापना कौन-सी विचित्रता होगो । लिपिसि मालूम होता है, कि इसी सनकी छठी यहाँ तान्त्रिक प्रथाके अनुसार मछली मांसफे भोगका शताब्दी तक यह स्थान गुमसम्राटोंके अधीन था। नियम आज भी धर्तमान है। उनके अधीन दत्त उगधिधारो सामन्तराजे राज्य करने जिला पचना, थाना चारमोहरके निकट सातैल पिल । पाल राजामौका प्रमाय नष्ट कर ईस्वीमनको फे बीच भार पद्ध मात्र यो नदी के किनारे मातेलको राज दावीं शताब्दीमें यहां फेयर प्रभाव फैला। फैयतों को धानोको कालिका मूर्ति । उक्त जिले के शाने दुलाई के कीर्तियां पारेन्द्रले स्थान-स्थान में पाई जाती हैं। मधोन शरमामके नागवंश द्वारा स्थापित कालिका ऐमा सुना जाता है, कि मुमलमानाने दंगाल पर मूर्गि; जिला राजशाहोके थाने वाघमारा अन्तर्गत राम NHAImatlam! अधिकार कर कई जागीरों को मुष्टि को। ऐमा प्रयाद रामा नामक स्थान ताहिरपुरक भौमिक जमादारों द्वारा कि ताहिरउला बाँके नामानुमार ताहिरपुर प्रगका गौर स्थापित धोमूर्शि और दिनाजपुरको कालिका मूर्ति लस्कर खाँके नामानुसार लस्करपुर आदि प्रगनों का नाम आदि शाक्तप्रभावकाल की बहुतेरो देयमूर्ति और देव हुआ है। यह भी सुना जाना है, कि पटानी के ममय स्थान इस प्रदेशमयसंमान है। लम्का पाँको जागो पमा उत्तरी किनारे परयो । तर रानो भयानोने नारोरसे भगानीपुर जाने लिये एक पमा नदोकी गति बदल गर इम प्रगनेका कुछ मामा चोले राजाका निर्माण कराया। इस रामपथफे वाच । के दक्षिण किनारे हो गया है। इस नरद जागीर प्रथा । योचरगे यांधका मानायर, स्थान स्थानको एय.! अगरनके ममय वागेन्द्र देशमें जमीदार पा. शाला. पोखरेभादि और इस रास्ते कर तिमी। यह राजा गणेगके नाम हो विद्यमान सामा म्यानमें 'रानोका हाट' नामका एक स्थान मी पर्तमान । यिरोपमा प्रमाणित दोना। नोनमविलास मादि है। मानलकी रानी मत्परतो भौर नाटोरको रानो भवानी द्वारा निम्मित राजा "नो जादुगाल" नामसे ! • Stuart's History of Bengali Vol. XXI, .