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वारेन्द्र
दिखाई देते हैं। यह नहीं मालूम होता कि इन सव पुत्रो संस्कारको तिलाञ्जलि दे दी थी। राजा वल्लालसेनके पित.
में कौन बड़ा और कौन छोटा है। .. विजयसेनने वारेन्द्र पर अधिकार कर यहां फिर वैदिक :
महेशमिश्र के निदर्शप कुलपक्षिकामें लिखा है, कि क्षिती. मार्ग:प्रवर्तनको चेष्टा की थी।
शके पुत्र दामोदर यरेन्द्र देशमें पसनेके कारण वारेन्द्र, __. यास्तविक महाराज विजयसेनने कुरङ्गेटि-यक्षको
शोरो दाक्षिणात्य, विश्वेश्वर वैदिक, शङ्कर पाश्चात्य और समाधा करने के लिये बहुतेरे वैदिक ब्राह्मणों को बुला कर..
भट्टनारायण राढ़ी कहलाये । कुलीन शब्द देखो। गौड़राज्यमें प्रतिष्ठित किया । • उन्हीं वैदिक ब्राह्मणों के . .
इधर चारेन्द्र फुलपक्षिका भट्टनाराण, धरोधर, सुपेण, यनसे यहांके यौद्धतान्त्रिक वारेन्द्र-सन्तान ने फिर हिन्दू
गौतम और पराशर ये पांच हो वारेन्द्र या धारेन्द्र ब्राह्मणों. समाजमें प्रवेश कर पाया था। किन्तु वैदिक-धर्म
के वीजपुरुप कहे जाते हैं और राढीय फुलपत्रिका | ग्रहण करने पर भी यहांके ब्राह्मण घौद्भतान्त्रिकताको
भट्टनारायण, दक्ष, वेदगर्भ, श्रीहर्ष और छान्दड़-ये पूर्णरूपसे.छोड़ न सके थे। उनके प्रभावसे राजा घल्लाल.
पांच मनुष्य राढ़ीय ब्राह्मणों के प्रसिद्ध वोजपुरुप हैं। सेन भी तान्त्रिकधर्मानुरक हो गये थे । इसं तान्त्रिकता.
धारेन्द्रकुल-पक्षिकासे और भो मालूम होता है, कि प्रचारके लिये ही गौड़ाधिप बलालने कुलमर्यादाको .
वारेन्द्र पञ्चवीजपुरुषको निचलो पीढ़ीमें भी कोई वारेन्द्र स्थापना की और नाना देशों में तान्त्रिक पारेन्द्र प्राहाणों-
और कोई राढीय नामसे परिचित हुआ।
को भेजा था। वारेन्द्र ब्राह्मणों को चेष्टासे बौद्धतान्त्रिक
सर्वसाधारणका विश्वास है, कि राजा यल्लालसेनको | हिन्दूतान्त्रिक समाजमें मिल गये हैं।
समयमें हो वारेन्द्र ब्राह्मणों में १०० गामो स्थिर हुई। पहले हो लिखा गया है, कि राजा बलालसेनने १००
किन्तु हम प्राचीन कुलमन्योंके और पालराजोंके इतिहास- गानो ब्राह्मणों को स्वीकार कर लिया। चारेन्द्र प्राहाणों के
से जान सके हैं, कि बललालसेनसे सैकड़ो ग्राम प्राप्त कर प्राचीन कुलग्रन्थों में इस गामो नाममें मतभेद दिखाई
वारेन्द्र ब्राह्मणों में सौ सी गानोकी उत्पत्ति हो गई थी। देता है। नीचे उन १०० गात्रो नामोंको उद्धृत कर .
धर्मपाल पौण्ड्यद्धन पर अधिकार कर लेने के बाद भट्ट / दिया जाता है।
नारायणके पुत्र मादिगानी ओझाको धामसार गांव दान - कश्यपगोलमें-मैन, भादुड़ी, फरञ्ज, पालयष्ठिक
किया। वारेन्द्र कुलप्रन्यो भट्टनारायणके पुत्रने हो पाल- मधुप्रामी ( मतान्तरसे मोधा ), राणीहारी, ( मतान्तरसे ...
हाशसे सर्वप्रथम ग्राम प्राप्त किया था, इससे ये मादिगानी बलिहारी या राणीहाटो ), मौदालो, फिरण ( किरणी ),
नामसे पुकारे जाते थे। शाण्डिल्य भट्टनारोपणके पुत्रको चीज, कुञ्ज, सनी ( मतान्तरसे स्थवी या सरमामी ), ..
तरह इस वंशके बहुतेरे मनुष्य पालराजाओंसे प्राम प्राप्त सुत्सु, ( मतान्तरसे सहप्रामी ) फट या फटि ( मतान्तरः .
और उनका मन्त्रित्व फर गये हैं। पालराजामौकी शिला. से विपोहटा ), बेलग्रामो (मतान्तरसे गङ्गामामी), घोप
लिपियों तथा ताम्रलिपियोंसे इसका यथेष्ट प्रमाण मिलता। (मतान्तरसे चम या वलनामी ), मध्यग्रामो (मतानारसे
है। पातराजवंश देखो। .
पारिशस्य), मठमामी और भद्मामी-यह १८ गाती है।'
शाण्डिल्यगोत्र की तरह अन्यान्य गोत्र भी वौद्ध पाल सिवा इनके फिर किसी किसी फुलप्रन्यों में अचकोटि
राजोंसे सम्मान लाभ करनेसे वञ्चित नही थे । और तो और आधों गानोका भी उल्लेख देखा जाता है।
या-सेनवंशफ अभ्युदयफे कछ समय बाद तक इस :. शाण्डिल्य गोत्रमे-रुद्रयागचि, साधुवागच, लाहिड़ी'
श्रेणोफे ग्राह्मण पालराजोंस प्राम पाते रहे। वारेन्द्रकवि | चम्पटी, नन्दनवासा, कामन्द्र, सिहरी, ताड़ीयाला, यिशी
कश्यपगोलीय चतर्भुजके धनापे 'हरिचरित' काध्यमें उनके | Rस्यासी, चम्प ( मतान्तरसं जम्बू). सुवर्णतोटक,
पूर्णपुरुष स्वर्णरेखके कारज ग्राम पानेको यात मिली है। पुसला (पुपाण ) और बेलुड़ो १४ हैं।
योद्ध-प्रभावकालमें यहांके ब्राह्मणेनि बौद्ध-तान्त्रिक पात्स्य गोत्र में सामिनी, भोमकाली , भदृशाली,
धर्मका आश्रय लिया था और उसके फलसे चैदिक / कामकालो, कुड़मुहल (फुडम्य), माडियाल, सेतुफ (मंता-
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/२४४
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