पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/२४९

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सा, पटर। वाकि-बाहिर तब धर्मराज युधिष्ठिरने आध्यात्मिक भावसे उसका, आत्रेयस हितामें लिखा है, कि वार्ताकु निद्वापद्धक, उत्तर इस प्रकार दिया था,-काल इस ग्रह्माण्डरूप | प्रीतिकर, गुरु, पात, कास, कफ और अचिकारक है। कादमें मास और तुरूप दवों अर्थात् इत्धेको चला | धर्मशास्त्र के मनसे त्रयोदशी के दिन बैंगन मदों खाना कर दिया और रालिम्प काप्ट तथा सूर्यरूप अग्नि द्वारा | चाहिये, खानेसे पुत्रवधका पाप होता है। यह अजानता. प्राणियोंका जो पाक घरते हैं, यही धार्ता है। यश खानेवालोंके लिये कदा गया। ६ दूसरे द्वारा क्रय विक्रय होना ।१० यार्साकी, बैंगन "वार्ताको मुतहानिास्यात् चिररोगी च गायके ।" ११ एक प्रकारका पत्थर । १२ वृहतो । १३ वार्तक पक्षी, (तिथितत्त्व) घटेर। गोल कद्द, और दूध जैसा सफेद वैगन नदी AAT यात्ताक (स.पु०) वर्ततेऽनेनेति युत् (तेवं द्विश्च । उण चाहिये। सफेद य गन मूर्गेफे मंडेके समान है, किन्तु ३७६ ) इति काकु 'याहुल कात् उकारस्यायेत्ये धार्ता- यह अर्शरोग हितकर माना गया है। पूर्वोक्त घातांकु. .कया क्यों इत्युजालदत्तोपरया सिद्ध।' १ वार्ताकु, धेगन । २ धानक पक्षी, पटेर। से इसमें गुण घोड़ा है। पाििकन् ( स० ० ) प्रातांकु, यगन । (अमरटीका भरत) | ____ाहिकतत्यके मतसे घार्ताकुका गुण-सप्तगुणयुक्त, धार्ताको (स' स्त्री०) हती, छोटो.कटाई। २ मा कु, अग्निवर्द्धक, वायुनाशक, शुक जोर शोणितपर्व क. भएटा । ३ कण्टकारी, भटकटैया। हललास, काम और मचिनाशक । पतिया बैंगनका वार्ताकु (सं० पु० खो०) वर्शते इति यत् (पृते दिश्च । उष्ण गुण-कफ और पित्तनाशक, पपा गुण-क्षारक ३१७६) इति काकु ।, (Solanatna melongene syn. s.| और पित्तपदका Iroenlentuni)स्वनामख्यात फलवक्ष । इसे.हिन्दो बैंगन घात्तोपति ( स० पु०) संबाददाता। (भाग ४११०११) मटा, तेल में पहिरि गु, उत्कली याइगुण, गुजराती में धार्तापन (म0पु0) पानिामयनमनेनेति । १ प्रतिश, पांगे भार तामिल कुहिरेको कहते हैं। संस्कृत, पर्याय-- चर। पर्याय--हरिक, गूहपुरुष, प्रणिधि, यथाईवर्ण, हिगुली, सिहो, भण्टाकी, दुष्प्रधर्पिणी, याको, पाती, | गासर्प, मन्त्रयित् चर, स्पर्श, चार। २ दूत, एलची। पातिङ्गण, पाकि, शाकविल्ब, यामकुष्माण्ड, पार्तिक, २ घा शास्त्र। (नि.) ४ वृत्तान्तया, समाचार घातिगम, पन्नाक, यङ्गण, गङ्गण, कण्ट्युत्ताकी, कण्टाल ले जानेवाला । कण्यपालिका, निद्रालु, मांसकफली, पुरताकी, मदोटिका, पारिम्भ (सपु० पायां भारम्भः । हपिकार्य और चित्रकला, कटकिनी, महतो, फटफला, मिश्रवर्णकला, पशुपालनादिका भारम्भ । मालपाला, फला, शाकश्रेष्ठा, घृत्तफला, नृपप्रियफला। वार्तालाप (म'. पु. ) कथोपकथन, शातचीत। गुण-सचिकर, मधुर, पित्तनाशक, बलपुष्टिकारक, हय, यायिह (सपु० ) या धान्यतण्डलादात यह गुरु गौर घातपादक। । तोति यह भय । १घयधिक, पनसारी। २ माप. . भावप्रकाश, सतसे इसका गुण-पादु, तीक्ष्णोष्ण, ध्यप-विषयक विधिदर्शक नीतिशास्तविशेष, नोशि. कटुपाक, पित्तनाशक, ज्य, वात मौर पलासग्न, दोपन शास्तका पद माग जो मायम्पपसे संघ रखता है। रानीवार विनायक ( Political Economy ) (लि०) समाचार ले जाने- तया सिद्ध किया हुमा बैंगन पिसाईक मौर गुम होता याला है। ये गनको पका कर उसमें तेल नमक बाल कर खाना यागिन (म त्रि०) जो भोजन लिपे अपने गोसादि- फर, मैद, पायु पार आम ज्ञाता रहता है । यह अत्यन्त का परिचय देते हैं। लघु भार दीपन है। ... पादिर (सपु० ) रतीति हजग, याया |