पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/२५१

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२१५ । वार्चाक- वार्ताहर तव धर्मराज युधिष्ठिरने आध्यात्मिक भावसे उसका, आत्रेयसहितामें लिखा है, कि वार्ताकु निद्रावद्धक, उत्तर इस प्रकार दिया था,-काल इस ब्रह्माण्डरूप प्रीतिकर, गुरु, घात, कास, कफ और अरुचिकारक है। कटाहमै मास और ऋतुरूप दवी अर्थात् हत्थेको चला! ___धर्मशास्त्रके मतसे त्रयोदशीके दिन बैंगन नहीं खाना कर दिया और रात्रिरूप काष्ठ तथा सूर्यरूप अग्नि द्वारा चाहिये, खानेसे पुत्रवधका पाप होता है । यह अज्ञानता- . प्राणियोंका जो पाक करते हैं, यही वार्ता है। चश खानेवालोंके लिपे कहा गया। ..: दूसरे द्वारा कय विकय होना । १० वार्ताको, बैंगन । "यार्ताको सुतहानिास्यात चिररोगीच मायके ।" ११ एक प्रकारका पत्थर । १२ वृहतो । १३ वार्तक पक्षी, (तिथितत्त्व) घटेर । वार्ताक (स० पु०) वर्ततेऽनेनेति वृत् (वृतेषु द्विश्च । उग्ण गोल कद्द, और दूध जैसा सफेद वैगन नहीं खाना चाहिये। सफेद वैगन मूर्गके बडेके समान है, किन्तु ३१७६ ) इति काकु 'याहुलकात् उफारस्यास्येचे वार्ता. यह अर्शरोगमें हितकर माना गया है। पूर्वोक्त धार्ताकु.

कवार्ताक्यो इत्युजलदत्तोपत्त्या सिद्ध" १ वार्ताकु,

से इसमें गुण थोड़ा है। बैंगन । २ वार्तक पक्षी, पटेर। या फिन् ( स० पु० ) वार्ताकु, बैंगन । (भमरटीका भरत) ____आहिकतत्त्वक मतसे वार्ताकुका गुण-सप्तगुणयुक्त, वार्ताको (स. स्त्री०) वृहती, छोटी कटाई । २ वार्ताकु, अग्निवर्धक, घायुनाशक, शुक्र और शोणितवद्ध क. भएटा । ३ कण्टकारी, भटकटैया । हलास, कास और अरुचिनाशक । वतिया वैगनका वार्ताक (सं० पु० स्त्रो०) पर्सते इति वृत् (वृतेवू दिश्च । उण गुण-कफ और पित्तनाशक, पपकेका गुण-क्षारक और पित्तराईका २२७९) इति काकु । ..(Solantini melongene syn. S.1 Ixocnlentum)स्वनामख्यात फलवक्ष । इसे.हिन्दी में बैंगन यात्तोपति (सपु०) संवाददाता। (भाग ११११११) भंटा, तेल में पहिरि चंगु, उत्कल में याइगुण, गुजरातोमें' वार्तायन ( स० पु०) या नामयनमनेनेति । १ प्रतिज्ञ, चांगे और तामिलो कुहिरेक कहते हैं। संस्कृति, पर्याय- चर। पर्याप-हरिक, गूढ़पुरुष, प्रणिधि, यथार्हवर्ण, हिंगुली, सिंही, झण्टाको, दुष्प्रधर्पिणी, पातांकी, चार्ता, अयसर्प, मन्तयित् चर, स्पर्श, चार । २. दूत, पलची। पातिङ्गण, चार्ताक, शाकपिल्व, दामकुष्माण्ड, वार्तिक, ३ वार्ताशास्त्र । (ति०) ४ वृत्तान्तवादक, समाचार पातिगम, चुन्ताक, बङ्गण, गङ्गण, कण्टयन्ताकी, कण्टाल, ले जानेवाला । कण्टपालिका, निद्रालु, मांसकफली, चन्ताको, महोटिका, यारिम्भ (सं० पु०) घायां आरम्भः । कृषिकार्य और चित्रफला, फटकिनी, महतो, फटफला, मिश्रवर्णफला, | पशुपालनादिका आरम्म । नीलफला, रकफला, शाकश्रेष्ठा, वृत्तफला, नृपप्रियफला। वार्तालाप ( स० पु०) कथोपकथन, बातचीत । गुण-रचिकर, मधुर, पित्तनाशक, धलपुटिकारक, हृद्य, घाविद (स.पु. ) वार्ता धान्यतण्डुलादेत्तिा यह गुरु और घातबद्धक। तीति यह अच। १ ववधिक, पनसारी। २ माथ- . भाषप्रकाशके मतसे इसका गुण-स्वादु, तीक्ष्णोष्ण, | थ्यप-विषयक विधिदर्शक नीतिशास्त्रविशेष, नोति. कटुपाक, पित्तनाशक, ज्वर, पात और चलासन, दीपन, शास्त्रका वह भाग जो मायध्ययसे मध रखता है। शकवक और लघकटया बैंगन का और पित्तनाशक (Political Economs ) (वि.) समाचार ले जाने. • तथा सिद्ध किया. हुमा बैंगन पित्तवर्द्धक और गुरु होता वाला। है। बैंगनको पका कर उसमें तेल नमक डाल कर खानेसे वाशिन् (सं० लि०) जो भोजन के लिये अपने गोत्रादि- फफ, मेद, वायु और आम ज्ञाता रहता है। यह अत्यन्त ) का परिचय देते हैं। लघु थोर दोपन है। . . . यार्ताहर (स०पु० ) हरतीति ह-जब, या या हरः ।