पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/२६२

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२२६ बालक-वाल्मीकि पालक (सपु. ) चलते प्राणान् इन्ति यः यल यधे स्नानादिक परफे उपयुक्त. एक सुन्दर पार पता और न ... ऊ। विपमेद, एक प्रकारका जहर। को यही ठहरनेफी कह अपने निकटके वनमें घुमने लगे। यालेय (सं० पु० ) पलये उपकरणाय साधुः चलि | ऐसे समय उन्होंने देखा, कि एक पापमती निपादने (दिपाधवले टम् । पा ५२१११३ ) इति ठत्र । रासम, रण किसी कामधिहल फ्रौञ्चको मार डाला! प्यारा गदहा । २ दैत्यविशेष, पलिफे पुन। दैत्यराज लिफे आहत होकर रक्तात पलेवर फौच धरातल पर पट्टी पर पाण जादि सौ पुन्न थे जो बालेय कहलाने थे। फ्ट रहा था, ऐसे समय . चिरविरह याका अनुभव कर (अग्निपुराण) ३जनमेजय शोद्भय मुतमस राजामे पुत्र मौञ्च छाती पोट पीट कर रोने लगी। येसर घटनाये देष का नाम । इनके पांच पुत्र थे, घे सभी पालेय नामसे महामुभि वाल्मोकिके मना दयाका के griचोके . प्रसिद्ध थे। (हरिव ३१ १०) दुःनसे दुखित हो कर यालमोकिने बड़े कठोर यचों में ४ महायलफी, एक प्रकारका करज। ५ चाणक्य कहा,-"रेनीच निपाद ! तू कभी भी प्रतिष्ठा प्राप्त मदों मूलक । ६ तण्डुल, चायल। ७ यितुभ वृक्षको छाल। फर सकेगा, क्योंकि तुम इस कामगिमोहित शौचा ८ पुन, येटा । (लि.) मृदु, कोमल । १० घालहित । अकारण यध किया 1" याघको इस तरह अभिशाप ११ पलियोग्य। कर यह कातर मनसे शिष्यफे प.स चले। यहां इन्होंने पालक (सपु०) यहास्य बलकलस्य विकारः पला; जा कर शिष्यसे सय पातें' काही 'भौर पर भी काम (तस्य विकारः पा ४३५३४) इति मण । चल्क सम्यन्धी। कि शोकसन्तप्त हृदयसे मेरे कण्ठ द्वारा पादयद्ध समासर " यस्त्र, शोमादि वस्त्र। शास्त्र में लिखा है कि यालक थुराने । तन्त्रीलययुक्त जो घाफ्य निकला है, यह श्लोकरूपमें पाला यगलायोनिमें जन्म लेता है। असावा , गण्य हो, अन्यथा न हो। यह सुन कर शिष्य भरमान पालकल (स.लि. ) यसकलस्पेदं अण् । घलाल निर्मित, भी परम पाहादित हुए। पोछे गुर-शिष्य सन्तुए. छालका बना हुमा। चित्तसे तमसाफे निर्मल जलमें स्नानाहिक समाप्त कर यावाली (स. स्त्री० ) मदिरा, गोही मद्य । माश्रमको फोर पधारे। भाधम जाफर बामोशि. यालय (स0पु0 ) घल्गुगोलापत्यार्थे ( गर्गादिभ्ये यम्। भन्यान्य कथायामि ध्यस्त थे सहो, किन्तु इनके हदयौ । __पा ४११०५) इति घम्। घल्गुका गोसापत्य । श्लोकको चिन्ता जागरित थी। इसोसाय सबलोक घाल्मिकि (म० पु०) वलिमके भवः. यमिक इम्। पिताम६ पायोनि ग्रह्मा यालमाकिसे भेट करने के लिये पामोमिनि। .. . . . | इनके अधिगा मा पहुंचे। उनको देय महामुनि वाल्मीकि - | Tattamilar पाल्मिकोय ( स० वि०) वाल्मिकि ( गादिम्पन्च | पा में शीघ्र हो उठ कर पाय-मा-मामममे उनको यथाविधि ... ४।२।१३८) इति छ। पाल्मीकि सम्मन्धीय। पूजा की। ब्रह्माने इनके द्वारा समादृत भार पूजित हो पाल्मीक (स' पु०) पत्मीके भयः परमीक गण । दीमक कर नये दिये इंप मासन पर बैठ इनको भी मामन पर से उत्पन्न मुनियिशेष, पाल्मीकि नुनि। .. पैठने को कहा। शेनों यशोयुक्त शामन पर बैठ गये। पाल्मीकभीम (सलो०) पनमोहपूर्ण देश अप इस समय ग्रहा आश्रम प्रत्येक पुरुपकी फुगल, पाल्मीकि (सं० पु०) यस्मोके भय - यल्मीक इम. या पूछने लगे। महामुनि धारनोकि उसके प्रश्नों का उत्सर यमीकप्रायो यस्माद् याल्मीकिरित्यसो इनि ब्रह्मवैवत्तों देते जाते थे; किन्तु इनफे मन में रह रह कर उस प्रो. त।। भृगुपंजीय मुनिविशेषा को पात जागरित हो उठनी थी। इसके मुंहमे एक धार ये प्रचेता प्रपिके चाफ मासान दनये पुरुष है। निकल माश-१ पापारमा निपाद! तूने मकारण तमसानोफेसर परनका माधम पा। एक बार ये तमसा कीशको मार कर भय लिया।" मदीले मिर्गत प्रतमें स्नान करनेको इच्छामे अपने शिष्य बालमोतिप्रमाके समीप बैठ कर इदमें धनं मोच... मामा मुगिजे साय वदो - उपस्थित हुए । शिस्यको : यो दुःनका कारण कर श्योकको भागति कर रहे