पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/२७०

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वासिन-चासुदेव यामिन् ( स० ) यासकारी, यमनेवाला। "भामो समस्या परत्यति । ... . पासिनी (स नि०) पासोऽस्या अस्लीनि बाम इनि ग नानुदेवेति विशि परिग परे ।" .. . होर । शुभझिष्टि, सूम्रो कठमग्या। (विपुगप्प २) , यासिल (मपि.) १ प्राप्त, पहुंचाया दुगा। २मिना सभी पदार्थ जिसमें पास करते है तथा सभी .. हुगा, जो पमूल हुमा हो। जगह जिनका पास मौर जिनमे मर्यजगत् उपम होता पासिलात ( म० पु. ) यह धन जो यमूल हुमा हो, यसूल तत्वदर्शियों ने उन्हींका नाम पासुदेव रखा है। विशु. हुए धनफा योग। पुराणा दूसरी जगद भी वासुदेयका मामनिनि देगी पासिष्ठ (ममि) पसिष्ठन एतमित्यण । १ वसिष्ठ- | जाती है। ब्रह्मवैवर्तपुराणमे लिगा है, कि याम मान् सम्पन्यो। (पु.)२ मधिर, रक्त । ३ पसिष्टशत योग! जिसके लोगहानिकर समो विम भारिणत है. पर .. भारनादि, योगयाशिष्ठ। सर्पनियास मान विरार पुरुष है, उसके रंग माम् । पासिष्ठरामायण (म. पली०) योगयाशिष्ठ रामायण || प्रभु परग्रहा है, इमोसे समी घेद, पुराण, इनिशाम मौर पामिष्टमूत्र (संपली) यसिष्ठरचित मृवप्रथा यात यासुदेय नाम हुआ है। . . पानी ( स. स्त्री०) पासयतीति पासि गच् गौरादित्यान् "यास निवासस्य विभ्यानि यस्य लोगा। डोप । १ तक्षणो. वसूला जिससे बढ़ई लकड़ी छोलने तस्य देयः परमहा यामुदेय इलीरितः ॥ .. है। (वि०)२ यासिन देखो। वामदेवेति तन्नाम पेदेषु च चतु । . यासीफल (म० पली०) फलविशेष। पुगोस्येतिहामेय यात्रादिएन हरपते ।" पासु ( म० पु० ) सोऽत्र यसति सर्यमांसी चमतीति । (मायवर्त पु० मी.मग ८३ म०) रास बालकाम् उण । १ नारायण, विष्णु । २ परमात्मा. भाद्रमाणाटमी तिथिमो भगयान् विष्णुने पसुदेव धोनियास । ३ पुनर्वसु नक्षत। ( उण १।१ । उज्मान ) देयकीय गर्भ में अम्मरण किया। . विशेष वियरया नगा शब्दमें देती। यासुकी ( स० पु.) यानुकल्यात्यमिति घमुक-तम् ।। यासुदेश मन्त्र गौर पूजादिका विषय तम्तमा : भारिपनि, माउ गागौमसे दूगरानाग । पर्याय सपंराज। इस प्रकार निमा- मनसा पूजाफे दिन भटगागको पूजा करनी होती है। __मो नमो भगवते वासुदेवाय' यासुदेयका यहो दाशा घारफेय ( स० पु.). पामुकत्यारगिति व सुकदम्। क्षामन्य है। यह मन्त्र कामयामो मार यासुकि। पासुदेशको पूसा करनी होती है। पूना-प्रणामी मार वासुफेयस्सर (सी .) यासुफे.यार पासुफै स्पसा -पनाके नियमानुमार प्रात:मयादि पीटन्यासमा मगिनी। मसादयो ।' कार्य समाप्त करके कराहगाम करना होगा। पाउदय (सं० पु.) पयस्यापत्यमिति यमुदेय के बाद सम्यगाम करना होता है। पास करने (अप्प रम्पर। पा९१४) इति मण, पं. बाद मूर्शिवजयाम और पापमन्याम करके यासुदेव सासर्यवासी यसरपात्मकपेण विध्यामरस्यादिति यम का न करना होता है। पान इस प्रकार है- यातकादुग, मासु, पाश्चामा देवस्येति फर्मधारया! "पि गादचन्द्रकोटमा नरपाना- भोपा। पर्याप-पसुयभ, मध्य, मुभद्र, पामुद्र मम्मो दधतं मितानिय कारमा अगमन परमित पर पित, प्रनियंग, प्रश्निमद, गामा, भावमादा पानामानि मात्र मार्ग. प. मोदिता, परमाया ( मामा) ' भीपरमानुसार काम गन्दे मु EAR" . बासुदेवको नामनितिके मम्मों म ant म प्रकाशन र मनमोपमा मारने । ' रथापन करना होता है। पता कर fort