पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/२७७

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'वास्तु २४३ अशोक, अरिए, बकुल, पनस; शमी, और शाल वृक्ष लगा। उत्तम है। सित, रक्त, पोत और कृष्णवर्णको भूमि यथा. . देना चाहिये। जिस पर भीषध, पृक्ष वा लता उत्पन्न कम ब्राह्मणादि चारों वर्णके लिये शुभप्रद है। अथवा -हो, जो मधुर या सुगन्ध तो स्निग्ध, सम और अशुधिर घृत, रक्त, अन्न और मद्यके समान गन्धवती भूमि यथाक्रम हो यही मिट्टी उत्तम मानी गई है। ब्राह्मणादि चतुर्णिके लिये मङ्गलकर है। कुश, शर, दुर्वा __ वास्तु के सामने मन्त्रीका घर रहनेसे अनाश, धूर्त ठोर काशयुत या मधुर, कपाय, अम्ल और कटुका स्वाद- का घर रहनेसे पुनहानि, देवकुल रहनेसे उद्वेग तथा वतो भूमि यथाक्रम ब्राह्मणादि चारों वर्णके लिये शुभा- चतुष्पथ होनेसे अोति चा अयश होता है। इसी प्रकार | वह है। गृहारम्भके पूर्व सबसे पहले यास्तुभूमिमें हल घरके सामने चैत्यवृक्ष ( जिस वृक्ष पर देवताका पास चला कर धानका बोया वोचे। पीछे यहां पर एक दिन- • है ) रहनेसे प्रहभय, यमी और उसीफे कारण छोटे रात ब्राह्मण और गो-को यसाचे। अनन्तर देवश द्वारा छोटे गड्ढे रहनेसे विपद, गर्त भूमिफे पास हीमे निर्दिष्ट प्रशस्त कालमें गृहपति ब्राह्मणों को प्रशसित उस रहनेसे पिपासा तथा फर्माकार स्थान रहनेसे धननाश भूमि पर जा विविध भक्ष, दधि, अक्षत, सुगन्धि कुसुम होता है। | और धपादि द्वारा देवता, ब्राह्मण और स्थपतिको पूजा प्रदक्षिण क्रमसे उत्तरादि लयभूमि ब्राह्मणादि जातियों के लिये प्रशस्त है। अर्थात् उत्तरप्लय भूमि ब्राह्मणके गृहपति यदि वाह्मण हो तो ये अपना मस्त स्पर्श लिये, पूर्वनिम्न क्षत्रियके लिये, दक्षिणनिम्न घेश्यक | तथा कर रेखाकी कल्पना करे । क्षत्रिय लिये तथा पश्चिमनिम्नभूमि शदके लिये प्रशस्त है। होनेसे उन्हें यक्षस्थल, वैश्य होनेरी ऊरुद्धय, प्राहाण सभी स्थानों मे पास पर सरते हैं, किस्त दूमरे ! शूद्र होनेसे अपना पादस्पर्श कर नोंच डालने समय रेखा दूसरे वर्णोको अपने अपने शुभस्थानमें यास करना को कल्पना करनी होगी। अंगुष्ठ, मध्यमा या तर्जनी उचित है। घरके भीतर हाथ भर लम्बा चौड़ा एक गोल | अंगुलि द्वारा रेखा खींचनी होगी। अथवा स्वर्ण, मसि. गड्ढा खोद कर उसी मिट्टोसे फिर उसको भर दे, यदि रजत, मुक्ता, दधि, फल, कुसुम या अक्षत द्वारा खोंची मिट्टी कम हो जाय तो उस पर वास नहीं करना चाहिये, हुई रेखा शुभप्रद होती है। शस्त्र द्वारा रेखा खींचनेसे करनेसे मनिए होता है। यदि मिट्टो समान हो तो सम- शस्त्राघात हीसे गृहपतिको मृत्यु, लौह द्वारा खींचनेसे फला और यदि गधिक हो, तो उचम होता है। अथवा घन्धनमय, भस्म द्वारा अग्निभय, तृण द्वारा चौरमय उस गड्ढेको पानीले भर कर एक सौ कदम चले, पोछे तथा फाष्ठ द्वारा रेखा खींचनेसे राजमय होता है। रेखा फिर लौट कर यदि देखे. कि यह पानी घटा नहीं है, तो यदि चक्र पाद द्वारा लिखित धा विरूप हो, तो शस्त्रमय - उस भूमिको अत्यन्त प्रशस्त समझना चाहिये। गया । सपा और क्लेश होता है । चर्म, गङ्गार, अस्थि या दन्त द्वारा , उस गड़हमें एक माढक जल डाल कर सी फदम आगे, रेखा सङ्कित होनेसे गृहस्वामीका अमङ्गल होता है। सपथ पढ़े पोछे लौर कर जलको तौले । यदि यह ६४ पल हो । क्रमसे यदि रेखा खींची जाय, तो पैर, प्रदक्षिा कमसे तो स्थान शुभप्रद समझा जाता है। अधया माम मृत्ः। (अर्थात् वामभागसे भारम्भ करके क्रमशः दक्षिण-भागमें • पात्र में चार दीप रख कर उन्हें गड्ढे के भीतर चारों जोरेखा खींची जाती है, उसे प्रदक्षिण रेया कहते हैं। कोनमें बाल दे। जिस कोतको रत्तो अधिक लेगो उस अथवा अपनो ओर खोंची हुई रेखाका नाम भी प्रदक्षिण है। वर्णके लिये पद भूनि प्रशस्त है। अथवा उस गड़हेमें | रेखाको कल्पना करनेसे सम्पत्ति होती है। इस समय श्वेत, क, पीत भौर. रण पे चार पुरुष रख कर दूसरे कठोर वचन बोलना, थूक फेकना भमङ्गलजनक है। दिन देखे, कि जिस वर्णका पुष्प ग्लान नहीं हुधा है उस अभी वास्तु मध्यस्थ शल्यादि (दहो) का विषय लिया • जातिफे लिये वद भूमि प्रशस्त है। इन सब परोझाभों में जाता है। स्थपति उस हानिचित पा सम्पूर्ण धास्त से जिस परोदाम जिसका जो भरे उसके लिये पह! मध्य प्रवेश कर सभी निमित्त तथा गृहस्थामी किस