पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/२९३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

'. वास्पयन्त्र २५५ .. साधारणत: लवणपरिषिक्त जल १०२ डिग्री तापांश, , उसे प्रवल वेगसे बाहर निकालनेको घात मति प्राचीन सोरापरिषिक्त जल ११६ डिग्री तापांग, फार्मनेट आय कालमें भी मानवमएडलीको मालूम थी। सासे १०० पोटाश परिषिक्त जल १३५ डिग्री तापांशमें और पूर्ण वर्ष पहले प्राचीन यूनान नगरी में एक प्रकार वाप्पीय यन्त्र विनिधित जल १७६ डिग्री तापांशमें खोलता है। की कार प्रणालीको पात प्राचीन परोपके वैज्ञानिक मूसीने ससिमोको परीक्षासे स्थिर किया है, कि माट | इतिहासमें लिखा है। मित्र और रोमकं प्राचीन इति. . मलङ्क पति पर १८५ डिग्री तापांशम 'जल उबलता हासमें भी विविध प्रकारके पापयन्त्रों का उल्लेख है। यह पर्वत समुद्रवक्षसे तोन मोल ऊंचा है। मुंसो दिखाई देता है। किन्त चापपन्त द्वारा गतिक्रिया 'यिरुको गणनामें देखा गया है, कि पेचिसयोड़ा ! निष्पादित हो सकती है और यह उस गतिक्रियाका .पर्कात पर भी १८५ डिग्री तापांशमें जल बोलने लगar गति धेष्ठसाधन है, इङ्गलैण्डके माफ्विंस भाव वार्चएर

.है। प्रति ५६६ फोटकी ऊंचाईम १८ डिनो स्फोटना समय से पहले किसीको विदित न था। सन् १६६३ ई०.

का तारतम्य होता है। घातवपानमें २१२ हिमो तापांशर्म | में उन्होंने एक छोटा पन्ध प्रणयन किया, इसका माम और ग्लासपात्रमें २१४ डिप्रो तापांशमें स्फुरित होता है। "A century of the somes and Scantlings of ..फिर किसी पान के अभ्यन्तर भागमें कलई करा देने पर inventions" है। इस प्रथमें उन्होंने जलीय वापकी .उसमें २२० डिग्री उत्ताप से भी जल नहीं उबलता गतिक्रिया-निष्पादनी शकिक उल्लेख उन्हीं के सबसे पहले नमक, चीनी गौर अन्यान्य पदार्थ मिले हुए जलको ऊपर जल उठाने के लिये एक वाष्पयन्त्रका भाविकार • उबालने में अधिक मात्रामें ताप देने की आवश्यकता है। किया। ईवीसन्की १७वीं शताब्दोके अन्त में वापीय पन्त. मेधेलिक, इथिलिक, प्रप्रिलिक और रिलिफ भेदमे जो साधनको सविशेष चेष्टा परिलक्षित होती है । इस समय पलकोहल है, उनके स्फोटनाङ्क भी भिन्न भिन्न हैं। इसी | फ्रान्तीसी वैज्ञानिक सुप्रसिद्ध पेगिनने (Tapin) याप्पयन्त. तरह हाइलोकार्शन, घेओल, टेलिगोल आदि भी शिक्षा की यथेए उन्नति की। ये मारवार्ग नगरकै गणितशास्त्रके .भिन्न सापशिम स्फुटित होते हैं । (जलीय बाप्पके, अध्यापक थे। उस समय फ्रान्सदेशमै इनकी तरह का सम्बन्ध अन्यान्य विषय वायुशान, पृष्टि और शिशिर, सुविध एजोनिपर दूसरा कोई न था। ये पिटन (Piston) शब्दों में देखना चाहिये। और सिलिण्डर (Cylinder) आदिफे सहयोगसे याप्प पाल्पयन्त (Steam Engine )-चापक प्रभावसे चली यन्त्रको यथेष्ठ उन्नति की। पेपिन के प्रवर्शिन टोम पञ्जिनमें अनेक त्रुटियां थीं। - वर्तमान समयमें अधिकांश पाठकों ने विविध मथलोंमें यह कभी भी कार्योगयोगी नहीं हुई। टमास सेमरी टोमपक्षिन देखे होंगे। इस समय हम हारमे, घाटमें, | नामक एक गहरेतने जो टीम पशिन बनागा था, उससे . पध, मैदानों, नगाने, प्रान्तर समो जगह टोग पञ्जिनका हो सबसे पहले टोम एजिनका व्यवहार जनसमाज में यहुत प्रचलन देख रद है। किस समय किस तरह किसके| प्रवर्शित हुआ। सन् १६९८ ई०में उन्होंने इसकी धारा सर्वप्रथम इस एजिनका आविष्कार हुमा, इस बात- रजिस्ट्री कराई। इन सब कलों से जल ऊपर उठानेका को जानने के लिये किसको कौतुहल न होगा। इस समय काला लिया जाता था। इसके बाद कितने ही श्री. -हम जिसे टोम पनि कहते हैं, यह पहले फायर पनि निपर नाना प्रकारके छोम एशिनों का निर्माण नामसे पुकारा जाता था। हिन्दी भाषामें टीम पजिन किया है। किन्तु ये सर यन्त्र से प्रयोजनीय नहीं या फायर पशिन वापयरन' नामसे अभिहित होता है। समझे गये। सन् १७२५ ई०में दारमाउथ निवासी -योकि संस्कृत भाषाने पाप शब्द ऊमा और जलीयाप न्यूकामेन नामक एक कर्मकारने एक नई तरह दोनोंका को परिचायक है। अग्निसन्ताप जलरागिसे पापयन्त्रका निर्माण किया। इस यन्त्रमे वापराशि- याणका निकालना और संरुद्ध पात्रके संकीर्ण छिद्रपथसे को घनीभूत करने के लिये अभिनय उपाय विहिन हुआ