पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/३०६

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विशतिक-विशोचरी दशा मितिक(म.लि.) मरवाया न् स्पाददायऽथे। अष्टोत्तरी और विनोत्तरी दोनों म हार , . पिंशति निनद का, संमा माया न् स्यात् ।। करते है। विनियोग्य, पोसको संगया। युक्त प्रदेश विन्ध्य पर्गत पूमि पकमा यिशो. विशतितम (मनि०) ति: पूरणः यिशति (पिया- तरी मतसं फल गणना को सातो पायो कहिपति. दिभ्यस्तममन्यतरस्यो। २०५६ ) इति तमागमः। यहां मष्टोत्तरो मत गणना की दो गती जाती। हार पिन, घोसा। दशा गौर भी यहां प्रचलिन है। उसका नाम है- विनतिए (सपु०) विशति-पाक! विशतिका । योगिनी दशा। इस घशाका कुछ कुछ उपहार यहां " अधिपति, वीस गायों का मालिक। देवा जाता। . . . . . . मिसिनत ( स० लो०) विशत्या प्रत। यिशनि शत, पणाला अष्टोत्तरी मतका दो माग दोनो .. पोस सौ। दशाओंकी फलगणनामे कही कही फलका aram पिंगतिमान ( स०सी० ) घोस हजार ।। दिखाई देता है। ज्योतिपियों का कहना है, हिम यगामी- पिंगतोश (स० पु. ) विशत्याः इंशः विमतिका ' के अनुसार मा फल मिणीत होगा, यह होगा तो होगा। अधिपति। ऐसी दशासरे व्यतिमा दोनेका कारण पास विनतीशिन् ( स० पु.) विशत्याः शो, श-णिनि ।। उत्तरमै उनका कहना है, कि मष्टोत्तरी मोर विमोगरी म . घोस प्रामका अधिपति । दोनों दमामि जिसको जिस दशा फलका शिकार : विशत्यधिपति (सं० पु०) विशत्या अधिपतिः। , उसको उसी फलका भोग करना होगा। दूसरो दशा विमतिपति, पोस प्रामका गधिपति । । उसका फल न होगा। कुछ ज्योतिषो तो गणना यिकाg ( स० पु०) रायण (रामायण ७१३२।५४) कार्या: भ्रमको ही फल ध्यतिमामका कारण बताते है। .. विनिन (सपु०) मिति प्रामने मधिरान । १ विशति अष्टोत्तरो और विशोत्तरो-इन दो नामनिको रा प्रामपति, योस गायों का मालिक । २ विशति, योसको होने पर मो नमनीका क्रम एक तरफा नही । कतिका .. संख्या। मक्षवसे आरम्भ कर मिजिस्फे साथ २८ नक्षतकि सोन ' ' पिशोसरी दशा ( स० मो०) ज्योतिप्पोक दशाभेद ।। चार इत्यादि कामसे राष्ट्र प्रभृति मांगी मष्टोसरी वगा इस दशा में प्रहों का १२० वर्ष तक भोग होता है। इसी । हातो है। किन्तु विशोत्तरी दशा पेसी नहीं है। यह दशा , से इसका नाम विशोत्तरी दशा दुमा। सदशासे फिसो एक विशेष नियम पर निर्भर कर प्रतिपादित दुई मानयापनका शुभाशुभ फल निर्णय किया जाता है। भगवान् पराशरने अपनी संहिता इसका गिरोष . सगा बहुत तरकी होने पर भी१५ पालिकालमें पक रूपसे उल्लेमा किया है, किन्तु हम संक्षेपमें सका कुछ माक्षसिकोफे दशानुसार ही फल होता है। परिचय देते हैं। "सस्पे लादा प्रोमा तापा योगिनमा • किसी गिर्दिष्ट राशिका सिफाण अर्थात् पञ्चम at . . द्वारे दरगौरीन सौ गाधिषिको दशा (मागपुराण) नपा राशिम. साथ भापसमें इनका सम्बन्ध हो, गम् इम नातिको वा दो दशा है:- मोरो यद एक दुसरे को देना हा-पराशरने मामी संदितामे मिसरो। भारत में दो दशा प्रचलित है। उसमियम राशिषमा हरि सायमिन है .. पराशरस्मृति पयोत्तरी, मादीत भादि दशामो-निकोणस्य राशियों मतसे शिकाणस्य महकि. मी प टे , रितु इसका इस समय व्यहार ! र मायम्प है। मात्रीको मा २७ का माग. निदेना। माधारणतः वा पनि नामका देने पर मापेक मागमे मय दात है। मासि. राशाया है। मधिकांश स्पोगिनिनु दो किसी नमवसे गामायरा भीर दक्षिणायनमा . सरोगसे गणना करना पुर पेसे मी है, जो जा मत दश दी, उन ना उस उस माना ...