पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/३१३

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.. विकल्प-विकल्पित --विधियां, इनसे किसी एकका पक्ष अवलम्बन करनेसे | निपुण सुधियाँको ही वाघवृद्धि होती है । फिर पापबुद्धि - चार चार दोष होते हैं, अतपर दोनों पक्षमें कुल ८ दोप होने पर भी उसका व्यवहार विलुप्त नहीं होता। विप. हुए। यथा--प्रमाणत्यपरित्याग और अप्रामाण्यप्राहान, र्याय और विकल्पके इस सूक्ष्म भेदके प्रति लक्ष्य रखना प्रामापोजोवन और प्रामाण्यहानि, वादिके लिये चार | कर्त्तव्य है। पातअलमें लिखा है, वास्तु के स्वरूपको अपेक्षा 'फुल ८ दोष हुए। कहीं कही बोहि द्वारा याग करनसे न करके फेवल शब्दशन्य ज्ञानानुसार जो एक प्रकारका प्रतीत यवप्रामाण्य का परित्याग होता है और अप्रतीत वोध होता है उसोको विकल्पवृत्ति कहते हैं। दे दत्तका • यव के . अप्रामाण्यका परिकल्पन होता है तथा परित्यक कम्बल, यहां पर देवदत्तका स्वरूप जो चैतन्य है, उसकी यव प्रामाण्यका उजवन गौर स्वीकृत यवके अप्रामाण्यको अपेक्षा न करके देवदत्त और कम्यरमें जो भेद होता है हानि होती है । इस प्रकार चार चार करके र दोप हुए । यही विकल्पवृत्ति है। जितनी विधियां हैं, जहां उन सब विधियों का अनुष्ठान | ७ भवान्तर कल्प। ८ देवता। ६ अर्थालङ्कारभेद । .. करना होता है यहां व्यवस्थित विकल्प हुआ करता है। जहां तुल्यवलविशिष्टका चातुरोयुक्त विरोध होता है यहाँ यवस्थित विकल्पको जगह पंकको वाद दे कर एकका अनु विकल्पालङ्कार हुआ करता है। १० नैयायिकांक मतसे छान करनेसे काम नहीं चलेगा, सवाँका अनुष्ठान करना शानमेद,प्रकारतरूप विषयतामेदशान । (न्यायद०) ११ . हो.पड़ेगा। वैचित्रा। १२ घैद्यक मतसे समयेन दोषोंकी शांश .....पकानाके लिये विविध कल्पित होते है इस कारण फलाना अर्थात् भ्याधि होनेके पहले शरीरमें दोपोंकी जो विकला है । इच्छा विकल्पमें ८ दोष हैं, यह आशङ्का कर | हास वृद्धि हुआ करती है, उसकी न्यूनाधिक कल्पनाका . दो तिथिमें उपयास करे, जहां ऐसी विधि है यहां इच्छा | नाम विकल्प है। १३ समाधिमेद, सविकसक समाधि विलेप नहीं होगा, व्यवस्थितपिकलर होगा। . और निर्जिकल्पसमाधि। __व्याकरणके मतमें भी एक कार्य एक जगह हेगा, यिफल्पक ( स० पु.) पिकल्प स्वाथै कन् । सरो जगह नहीं होगा, ऐमा जो विधान है उसे विकल्प विकल्प देखो। | विकल्पन (सक्को) विकल्प व्युटी विविध कल्पन । ६ पातालदर्शनके मतसे वित्तवृत्तिमेद । प्रमाण, विकल्पनीय ( स० लि. ) विकल्प अनीयर् । विकल्प विपर्याय, विकला, निद्रा गौर स्मृति ये पाच चित्तको विकल्पके योग्य। __पृत्ति हैं। यस्तु नहीं रहने पर भी शब्दशानमाहात्म्य विकल्पयत् (म० सि०) विकल्प अत्यर्थे नतुप मम्य च । निबन्धन जो वृत्ति होती है, उसका नाम विरहा है। विकल्पयुक्त, विकल्पविशिष्ट । चैतन्य. पुरुषका स्वरूप है, यह एक विकलरका उदाहरण विकल्पसम ( स० पु.) न्यायदर्शनमें २४ जातियोंमेसे है। क्योंकि पुरुष चैतन्यस्यरूप है, अर्थात् चैतन्य र एक। इसमें पादोके दिये गये दृष्टान्तमें अन्य धर्मको पुरुष एक हो पदार्थ है । अतएव चैतन्य और पुरुषका योजना करते हुए साध्यमे भी उसो धर्मका भारोप कर. धर्मर्मिभाव यस्तुगत्या नहीं है। अपच चैतन्य पुरुषका के चादीको युकिका मिया गएडन किया जाता है। स्वरूप इसी प्रकार धर्मधर्मिभायम व्ययाहत होता है। विकल्पसम्माप्ति ( सस्त्री०) यातादि दोपोंको मिश्रित ..मिध्याहनका नाम विपर्याय है, शुक्ति या सोपमें रजत- भवस्था प्रत्येकफे अशांशको कसरना करना। पुद्धि-विपर्यायका उदाहरण है। विशेष दर्शन होने पर विश्लगनुपपत्ति ( स० पु०) पक्षान्तर में अनुपपत्ति । सर्गसाधारणके लिये दो, रजतयुद्धिवाधित प्रतीत होतो . , . . सदरोनस मह २५१) ६. बाधितका निश्चय हो जाने से उसके द्वारा फिर विकल्पासह (सनि०) पिकल्पसे मिसकी उन्नति हो। किसी भी रूपका व्यवहार नहीं होता, विकल्पको प्रगट | .. .... (सर्ष दर्शन ११॥२०) सर्वसाधारणको याधयुभि विलकुल नहीं होती, विचार | विकल्पित ( स० वि० ) पि-रप-यत । १ विविधरुपमें