पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/३२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

चारमधु-नाचक मतुप लोप। एक नदी। यह नेपाल र भारः भाग पाडमयो ( स ग्रो० ) यामप-कोप। सरस्वती। " पल पागमती कहलाती है। पराइपुराणके गोकर्ण यादमाधुर्य (संलो०) यत्रो माणु' । यापकी माहात्म्पर्म इम नदीको मस्यन्न पवित्र, गढ़ासे भी पवित्र : मधुरता, मोठा पयन। .. कहा और हममें नान करने तथा मफे किनारे मरने याउमुन्न (समलो०) याचां मुपमिय एक प्रकारफा गय में विष्णुलाकको प्राप्ति यतलाई गई है। काव्य, उपन्यास। पाइ मधु (म.ली.) पाय मधु। यापपरुप मधु. पाया (स.पु.) यानी यापपार पति विरमताति अति सुमिष्ट मधुर यापप! यम उपरमे ( पाचिममा प्ते ! पा ३७) इनि सच (पान' या मधुर (म० लि.) याचा मधुरः। यायमें मधुर, पमपुरन्दरी। पा ) इति ममन्तत्य निशात्पते । धामका मीठापन। १ मुनि ! २ गोमती, मौन धारण करनेपाला पुरुष । पारमय (स० वि०) या स्वरूप, याच मयट । १ यायमस्य (सल0) पाचं यमप माया स्य। यार्थ- चाफ्यात्मा, यमन सम्बन्धो। म, य, र, स, त, ज, भ,, ___यमा गाय या धर्म, गारपसंपा। . न, ग, ल, पे दश भक्षर ले लोपपदं विष्णु की तरह समस्त ... 1 याच (म० स्रो०) उच्यतेऽमी गनायेति यच् किए यापय परिल्याप्त है। पे गद्य भार पद्यके भेदसे दा . " दोघोऽसम्मसारणञ्च। १यापर, याणी, याचा। २सर. प्रकारफे दाने है। गप गौर पय शब देखो। २ पचन द्वारा , म्वती। किया हुगा। यधनों द्वारा किये हुए पाप चार प्रकारके यान (सी० ) पासात गुणागिति यम.णि मध्। कह गपे है--पारप, अनृत, पैशुन्य मौर असमग्ध प्रलाप । मत्स्यविशेर, पाकारको मछली। मका गुण सादु, किसी किसाफ मनसे पद पाप छ। प्रकारक ह-पकर स्निग्ध. श्लेष्मयक और यानपित्तनाशक माना गया पचन, मपयाद. पैशुन्य, मनन, पृषाला मोर निरा । (R ) पापप। ये प्रकार पाप उक्त चार प्रकारफे मध्य नियिर रहनेसे पिराध परिदार दुर। " यान ( म०प्रो०) जेयो रमानेकी या कलाई पर यानेको हमरे देश, जाति, फुल, विद्या, शिक्षा, आचार, परि- र धार कर्मादिका डालेप करके प्रयासेजो याचक (सपु०) व्यक्ति गमिधा गरय योयत्यानति दोपयमन होता है, उसीफी गप कहते हैं। जिस यार! यमायुल । १सद । प्रगति भौर प्रत्यय द्वारा नाद. पं. सुनने में मंध, सन्ताप और वाम होती. मी यानक दोना। मुग्धपोपटीका महा नक्षम प्रालिदि-प्रत्यक्षरुपसे जो सालिक धारण पररपद याय है। पक्षमान पतिको चक्षहीन | प्रारणको चाहानादिना मो पर है । परय यापयो । फरता है, उसको यात्रा करने है। ___पाचपतीति पग-णिय प्यु । २ फया, पुराणादि परेशम उदाहरण के नाम अपवाद त गुरु, नृपति, . माता मार गिवादिक ममोप मोरपान लिप जो शेष पढ़नेवाला। इस कार्य प्राणीको गिगुरु बरला कहा गया, उसको पैगुग्प करने । मन्य दो प्रकार पाहिये, प्राण गलाया मरे वर्णको पाठगिएक करने मरपा होता है। का है--प्रमत्य मोर संचार। देशराष्ट्र प्रमा पदार्थ परिपन पं गर्मदास प्रयुक्त जो पापपई, उसे __जो यासको पूता पर है. देवता उग, प्रतिमा पर्णमासन, गुणामा उनेछ, मायिन गानयोग, mami होते है। पुराणादि पाठ कानेगालोको गारियहि गमा उपारिन पारanा खोयुष मिथुनारमफो पारो सर्पदा सग्नु । पुराणादि 3ral प्रति पर्व समातिक दिन का पाप पद मिपुर पाप दाता है। इस तदा AT गादिदना अनित यारिन यापन हो यम पाप है। ३जो पठन- पाउमा पिया (0" -पारमा माप पाटको पार करें,बट गुम्याद समापार मारिको पानगाउनका पिप हो, माहिया . हो। पाठ गरे साए म मित्त गिर रहना बाहिर