वाचकता-वाचस्पति मिश्र
. जिससे सब पद स्पष्टरूपसे उच्चारित हो, इसके प्रति उन्हें | धानभवस् (सं० पु.) चाण्यदाता।
विशेष लक्ष्य रखना उचित है। ऐसा पढ़ना चाहिए, वाचसांपति (सं० पु०) याचसा सर्व विद्यारुपयाफ्यानां
कि सब कोई उसे समझ सके । जो - इस प्रकार पाठ कर पतिः, अभिधानात् पष्ठ्या मलुक् । वृहस्पति।
सकते हैं, ये व्यास कहलाते हैं। पाठ शुरू करनेके | वाचस्पत (सं० पु० ) याचापतिके गोत्रमें उत्पन्न पुरुष ।
पहले पाठकको उचित है, कि ये पहले देवता और ब्राह्मण-
(शाखा बा० २६।५)
' की अर्चना कर ले।। . . . . . . . | वाचम्पति (सं० पु० ) पाचापतिः (पठ पाः पतिपुत्रति ।
पाचकता (सस्त्रो० वाचकस्य-भावः तल टाप । वाच.
पा ८३।५३) इति षष्ठी। १ शब्दप्रतिपालक ।
कत्व, पावकका भाव या धर्म, पाठ, याचन! . .
.. २ देवगुरु वृहस्पति। कहते हैं, कि इन्होंने ही
पाचरत्व (सं.क्लो०) वाचकता देखो। ...
वाचकधर्मलुता (सस्रो०) यह उपमा जिसमें पाचक |
चार्वाक दर्शनका मूल वृहस्पतिसूत्र लिखा । ३ एक प्राचीन
चैयाकरण और भाभिधानिक । हेमचन्द्र, मेदिनोकर तथा
शब्द और सामान्य धर्मका लोप हो। , ..
वाचकपद (सं० लो०) मायव्यङ्गक वाफ्य। . ।
हारावली में पुरुषोत्तमने इनके कोपका उल्लेख किया है।
वाचकलुप्ता (सं०. स्त्री०) एक प्रकारका उपमालंकार
४ एफ कवि । क्षेमेन्द्रकृत कविकण्ठाभरणमें इनका परि.
जिसमें उपवानके शब्दका लोप होता है।
चय है। इनका पूर्व नाम था-शब्दार्णव याचस्पति ।
पाचकाचार्य (सपु०) एक जैनाचार्यका नाम।
५ अध्यायपश्चादिकाके प्रणेता । ६ वर्द्धमानेन्दुअध्याय.
.. (सर्वदर्शनसंग्रह ३४८) ।
पञ्चपादिकाके रयिता । ७ स्मृतिस'ग्रह और स्मृति.
धावकूटी (मं० स्त्री०) पन्ना ऋषिको अपत्यस्त्री, गागों।
सारसंप्रइके सङ्कलयिता । ८ आटवदर्पण नामक माधय-
निदानको टोकाके प्रणेता । ये प्रमोदके पुत्र थे । ६ शाकुन-
(शतपय मा० १४.६६६।१)
पाचकोषमानधर्मलुप्ता (स. स्त्री०) यह उपमा जिसमें
शास्त्र के प्रणेता। "
वाचक शब्द, उपमान और धर्म तीनों लुप्त हो केवल
याचस्पति गोविन्द-मेघदूतटीकाफे रचयिता ।
उपमेय भर हो। - ... ... . वाचस्पति मिश्र-१ मिथिलावासो एक पण्डित। इनके
याचकोपमानलुप्ता (सं० स्त्री०) उपमालंकारका एक भेद ।। रचे आचार-चिन्तामणि, सत्यमहार्णव, तीर्य चिन्तामणि,
इसमें वाचक गौर उपमानका लोप होता है। नोतिविन्तामणि, पितृभक्तितरङ्गिणी, प्रायश्चित्तचिन्ता.
वाचकोपमेपलुप्ता (सं० स्त्री० ) उपमालंकारका एक भेद । मणि, विषादचिन्तामणि, व्यवहारचिन्तामणि, शुद्धि-
इसमें पाचक और उपमेयका लोप होता है। चिन्तामणि, भूदाचारचिन्तामणि, श्राद्धचिन्तामणि और
पाचकत्रो (सं० स्त्री.) गागा, वाचकूटी।. . वैतनिर्णय प्रन्य मिलते हैं। यह शेषोक्त प्रन्य
पाचन (सं० क्ली०) यच णिच-ल्युट् । १ पठन, पढ़ना । इन्होंने पुरुषोत्तमदेवकी माता और भैरवदेवको महिपो
२कहना, बताना । ३ प्रतिपादन।
जयादेवीके - आदेशस रचा था। इनके अलावा इनकी
वाचनक (सं० लो०) वाचनेन कायतीति-के-क। प्रहेलिका, धनाई गपायात्रा, चन्दनधेनुदान,, तिथिनिर्णप, शाद.
पहेलो। .
. . . .
निर्णय और शुद्धिप्रथा नामक यहुत-सो स्मृतिव्ययस्था
पाचनालय (सं० पु०) यह कमरा या भवन जहां पुस्तके | पुस्तके,मिलती हैं। २ काव्यप्रकाशटोकाके प्रणेता ।
और समाचारपत आदि पढ़ने को मिलते हो, रोडिंग चण्डिदासको टोकामें इनका. मत उद्धृत है। ३ एक
चैदान्तिक और नेयायिक। ये मार्तण्डतिलकस्वामीके
पाचनिक (सं० वि०) याक्ययुक्त।
शिष्य थे। इन्होंने तत्त्वविन्दु, वेदान्ततरवकौमुदी, सांख्य-
पाचयित (सं० वि० ) यव-णिच-तृन् ।.. याचक, वाचने- कौमुदी, चावात्य नामक घेदान्त, तत्वशारदी, योग.
बाला... ... ... ... . . . . . . । सूत्रभाष्यध्याख्या और युक्तिदीपिका (सांप ) नामक
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/३३
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