पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/३३६

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२८८ विक्रमादित्य रित नहीं हुमा। घे नीरवता साप मा इस मप-, सलको दमन फर गोया पर अधिकार कर लिया, समर. मानजनक पातीको सक्षम करने रहे। इधर जय को गागने पर वाप किया। पायक पोडे फौज बंदा । सिदको स्पद्धा दिनों दिन बढ़ने लगी। उस समय विक मलपोको हराया और कोंकणराजको फैद किया। मिया , .. साहित्य वापर युद्धक्षेत्र में जा पहुंचे। तर भो इनके उन्होंने कलिङ्ग बङ्ग, मर, गुमर, मालप, वैसे- उग्दों ने छोटे भाईको युद्धसे घिरत होनेका उपदेश दिया, और चोलपतिको चालुक्यपतिके अधीन बनाया था! . किन्तु यह मान्य अपमिहने किसी तरह उनकी पात | विक्रमादित्य फेयल दयायान, योर्ययान और सपेश्वर । नहीं मानो। अब युद्ध अनिवार्य हो उठा। किन्तु प्रवल गालो हो नहीं थे, परं स्वयं विद्वान् चोर मतिमय पछि.. .. पराफ्रान्त विक्रमादित्य प्रश्न प्रकार के सामने जयसिंह तानुरागो थे। काश्मीरके सुप्रसिद कषि विद्यापति गिर. और उसकी फौजों का इरना कठिन हो गया । फौजे विक्रमादित्यके समा-पण्डित भोर राजकार। ... भाग पढ़ी हुई। जयसिह कैद कर लिया गया। . ... हिप देस। यिकमादित्यने इस अवस्था भी उस पर दयाका व्यव. __ जो मिताक्षरा नाम धर्मशास्त्र भाग मी मारत पार किया। ये युद्ध के मस्त होने पर राजधानोर्मे लोट प्रधान स्मात प्रत्यफे गामसे परिचित है, चालुपपराज इन जापे। विफमारित्यकी सभामै विज्ञानेश्वर उस मिताक्षरको रसमा इसके बाद विप्रमादित्य के राज्य में कोई उपद्रव नहीं फर विख्यात हुए धै। विशनिश्वर देखो। हुमा। उनके राउपो माल या लोकपीड़ा भी न हुई। ___ कल्याण सिंहासन पर विफम ५० संक अविछिन । उन्होंने अपने अनुरूप पुत्र और यथेट धनसम्पत्ति पा थे। उन्होंने अपने मधिकारमें शकायका प्रचलन बन्य कर फर परम सन्तुष्ट हुए । दरिद्रोफे प्रति उनको गप्तीम | उसके बदले में चालुपप-विषम य चलाया थापंदभार . या घी उन्होंने धर्मशाला और शियमन्दिर अपने ११७ श फागुनी शुक्ला पचीको भारम्भ हुमा । गागसे प्रतिष्ठा कराई । उनको असण्य कीतियों में विष्णु पालुपय-नृपतिको मृत्युफे बाद यह भार उठा दिया गया। कमलापिलासीका मन्दिर विशेष उल्लेखनीय है। इस विक्रमादित्यको मृत्युफे पाद १०४८ शक उनके पुत्र मन्दिरके सम्मुख एक विशाल सरोवर बना था । इसके ३रे सोमेश्वरने पितराज्यको प्राप्त किया। प्रारों मोर पहुतेरे देवमन्दिर और मुरम्य दर्य मादि पूर्ण १२ विक्रमादित्य । · दक्षिणापथके अन्तर्गत गुत्तल नामक सागात राज्य में विक्रमपुर नामक एक विशाल गगरको प्रतिष्ठा हुई थी। विक्रमादितए नामसे तीन राजे राज्य करते थे। उनमें ले इस तरह दीर्घकाल तक सुमा शान्तिसे वोत जाने पर व्यक्ति गुचलके रै राजा मलोदेव के पुत्र सन्की फिर बोलराजने विद्रोहमायालम्यन किया । विक मादित्य को उन्हें दण्ड देने के लिये काशी नगरीको १२वीं शताब्दीके मध्यभागमें मौजदये। यति उत . ममपदफे ६वे रामा गुरुके पुत्र थे म दूसरा नाम जाना पड़ा। इस युद्ध में भी हान्य समयकी तरह मायादित्य था। १९८२० विद्यमान सकेगा। हार फर ममी भाग गये। इमपार फाचीनगरो पर ३रे पति नृपति जोपिदेयके पुत्र है।गुप्तलेके इस ३१ सपना कजा' जमा पर कुछ दिनों तक यहां रद कर विमादित्यको १९८५ शक (१२९110) को विक्रमादित्य फिर कल्याण लोर पाये। इसके बाद शिलालिपि रस लिपिसे मालूम होता है, किये ३५ शान्तिसे दिन पिताने लगे। गिरिफे यादयराज महादेयके अधोम सामरत थे।' पिझपको मन्तिम मपस्पाम पाण्य, गोया और कोकण . १३ पिरमादिल । के रासे, पादयपति दोपलस विष्णयगको मधि । दाक्षिणात्य पाणरायंगमें भी एक विक्रमादित्यका मापातामें पपास हो कर सभीगे बालुफ्पराज्य पर माफ-! जन्म मा मका दसरा माम विजयार था। पण किया। विक्रमादिश्यने 'माच गामक एक सेना पिताका नाम अनमेय था। येवर प्रजा पतिको उग सपियर मेशा । रसिद 'मायने दोषः । गॉर १२यो शताप्दोमें मौजूद थे। .