. विट-वितत.
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पड़ेगी। जहां के ताने माल खरीद कर विक्रेतासे मांगा , फोड़ा, नाना प्रकारके खेल। (निका विविध कोढ़ायुक्त
नहीं और यिमताने भी नहीं दिया इधर चोरोंके उपद्रवसे | जिसमें तरह तरह के खेल हो।
माल नष्ट हो गया, तो क्रेता और विकता दोनों होको विकत (स.नि० ) वि क क । कृतविक्रय, जो घेच
समान हानि होगी। यही देवलमट्टका मत है। दिया गया हो।
. नारद का कहना है, कि दृष्य खरीदने के बाद फ्रेताको विक्रतव्य ( सं०नि० ) विक्रो-तथ्य । विक्रयाद, येचने
अनुसाप हुआ, कताफे देने पर भी उसने नहीं लिया। | योग्य ।
ऐमी हालत में विकता यदि यह द्रव्य दूसरेके हाय वेचविशय (सं० त्रि०) विक्रोगते इति विका (भचो यत् ।
हाले, तो उसका कोई अपराध न होगा।
पा ११९७ ) इति यत्। विक्रययोग्र दृश्य, विकोपाला ।
___ जो यिकता पहले कताको निर्दोप घस्त दिखा कर | पर्याय-पाणितथ्य, पण्य ।
पोछे चालाकीसे उसके हाथ दोपयुक्त वस्तु विक्रय करे विक्रेता (स.पु०) विक्रीतृ देखो।
और जी विक्रेता एकफे हाथ माल घेच कर पीछे उसके | विकोश (स'० पु०) विश धम् । विकृत शब्द ।
अनुताप उपस्थित नहीं होने पर भी दूसरे के हाथ पेच विकोशयित ( स० वि०) यिश तृच । विकोश-
हाले, तो दोनों ही हालतोंमें विकता हो अपराधी है।
कारक।
इस अपराध दण्डस्वरूप पिता नेताको दूना मूल्य | विकोष्ट ( स० वि०
| विकोष्ट्र ( स० वि० ) विक्रश-तृव । विक्रोशकारी।
देवें, साथ साथ विनय भी दिखाये।
विकोव (स० वि०) विधावते इति यि-क-पचायच् ।
. ऊपर जो नारदात व्यवस्था कही गई, वृहस्पति, । १ विहल, बेचैन । २ विवश । ३ चञ्चल। ४ उद्भ्रान्त ।
याशयत्यय आदि धर्मशास्त्रकारगण भी उस व्यवस्थाको
| ५ कातर । ६ भीय, भीत। ७ उपहन । ८ अवधारणा
समर्थन कर गये हैं।
समर्थ । कर्तव्याकर्तव्यनिर्णयमें असमर्थ । १० फिकर्तव्य-
इसके अलाया गृहस्पतिने कहा है, कि विकता यदि विमूढ़ । ११ व्याकुलता । १२ जड़ता। १३ उदासीनता ।
मत्त, उन्मत्त, भीत, मस्यायोन या मा अयस्थामे अधिक
१४ भ्रान्ति।
मूल्यका द्रध्य कम मूल्यों दे साले तो फेताको घर लौटा
| विक्लयता (स' स्रो० ) विक्लवस्य भावः तल-टाप । विल
देना उचित है।
पत्य. येचैनो।
• फेता 'माल बरोदूंगा' ऐसा कह कर चला गया,
| मिक्लायित (सं० नि०) विक्लव युक्त, येचैन ।
विकित्ति ( सं० खो०) यिहिद-क्तिच। १ मनादिका
उसका मूल्प नहीं दिया और न पोछे समय पर खरोदने ।
पाक । २ द्रवोभाय । ३ आदता।
के लिपे माया तो विकता कताको वह माल दे या न
विशिम (सं० वि० ) विलिद-क। १जरा द्वारा जोर्ण,
द, उसकी खुशी है, उसे कोई दाप न होगा! जहाँ मता।
जो पुराना हो जानेके कारण सद या गल गया हो।
पो पात करके विफताके हाथ कुछ मूल्य दे चला
गया; किन्तु निkिट समयके मध्य यह लंने नहीं'
गोर्ण, पुराना । ३ मा, गीला । (मेदिनी)
विमिन्दु (सं० पु.) विशेष दुः।
साया तो विकता - उस मालको दूसरेके हाथ पेच
उसे माला दूसरक दाथ पंच चिलिए (सं० लि. ) विशेष रूपसे फ्रान्त, बहुन थका
सकता है।
विकट (सं० नि०) वि क शक्तः । निष्ठुर, निर्दय, विषलेद ( सं० १०) विहिद धम् । १ आता, गोला.
पन । २ नासारोग, नाकको एक पीमारी।
विकत (महि०) विकणानि यि क-तृच । पार्याययः । विशम (सं० पु०) विशेष सहेज, भारी तकलीफ ।
कर्ता, बेचनेवाला । पर्याय-विमयिक, विक्रपी, पिका- विक्षन (सं० वि०) पि-क्षणका विशेष रूपमै क्षत, पुरी
यक।
| तरह घायल। २ माघानमात, जिमें चोट लगी हो।
यिक हित (स' हो० ) विमोह माये त । २विविध । ३ खण्डिन, नई मंद किया दुभा) .
___Vol. Xxt.
हुआ।
निठुर।.
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/३४१
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