पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/३६१

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• पिनपिन-विनयचूर्ण ३०० विज्ञपिल (सली० ) पङ्क, कोचड़। | विजयक (सं०नि०) विजपे कुशला विजय-कन् । विजेता, विजय (सं० पु.). वि-जि-भावे अच् । .१ जय, जोत, सदा जोतनेवाला । पराजयका उल्टा। हिन्दोमें इस शब्दका व्यवहार स्त्री विजयकएटक (स० पु०) यिनपे एटक इय। विजय. लिङ्गगे होता है। २ अर्जुन : • अर्जुन अनेक नाम विघ्नकारो, यिजयमें बाधा देनेयाला । है जिनमें से एक नाम विजय है। महामारनके विराट- विजयकुवर (स.पु.) विजयाय या कुजा राज. पर्नमें लिया है, कि विराजकुमार उत्तर जव गो रक्षाके, वाघ हम्ती, राजाको सवारीका हायो। २ युद्धहस्तो, लिये कौरयों के साथ युद्ध करने, गये, तवं अर्जुन वृह- लडाईके मैदानमें जानेयाला हायो।

नलारूपमें उनके सारथी हुए थे। कार्यगति देख कर विजयकेतु ( म० पु.) १ विजयध्वजा, जयपताका ।

पृहानलाने उत्तरको अपना परिचय दे दिया । उत्तरने ) २ राजपुतमेद । । अर्जुनके सभी नामों को सार्थकता. पूछो। अर्जुनने विजयक्षेत्र ( स० क्लो०) १ विजयस्थल । २ उहीसाके अपमे अन्यान्य नार्मोको उत्पत्तिका परिचय दे कर इस अन्तर्गत एक प्राचीन स्थान । विजय भामका पेसा, अर्थ लगाया है,-"मैं रणदुर्गद विजयगढ़-युक्तप्रदेशके अलीगढ़ जिलान्तर्गत एक कृषि पात्र मेनाभोंके संपाममें जाता है, किन्तु विना उन्हें | प्रधान नगर । भूपरिमाण ४१ एकड़ है। यह अली- परास्त किपे लौटता नहीं . इसीलिपे सयोंने मेरा नाम | गढ शहरसे १२ मोलको दूरी पर भयस्थित है। यहां विजय रखा है।" स्थलाफघर गौर एक प्राचीन दुर्ग है। इनफे सिया .: पिपात-विजय-नाटकमें घड़ी ही सार्थताके साथ कर्नल गार्डनका स्मृनिस्तम्भ भी दिखाई देता है। 'गर्जुन विजय नामका उल्लेख देखने में आता है। विजयगुप्त-पूर्वायन के एक प्रसिद्ध कथि। पनापुराण या धोमय नीङ्करके पिता। ४ जिनवालमेद, जैनों. के शुक्लबलमिसे पफ। ५ विमान । ६ यम । कलिफे। | मनसाको पांचाली रच फर पे पूर्णयङ्गमै बहुत प्रमिस पुत्र। (कस्किपुराण १३५०) हो गपे है। ८ भैरपयंशीय पहाराजपुत्र । पे काशीराज नाम | विजयचन्द्रकान्तीफे राजमेद। कनौम देखो। पिण्यात थे। प्रसिद्ध खाण्डपयन इन्होंने ही लगयाया विजयचक्र (स. क्लो०) विजयाय चाम् । ज्योतिपोक्त पा।' कालिकापुराणमें लिखा है, कि सुमति पुन चविशेष । स चाफे अनुसार नामोचारण करनेसे कला और कल्पफे पुत्र विजय थे। विजयने राजा हो | प्रय पराजयको उपलब्धि होती है। मामोधारणका क्रम कर प्रश्चल प्रतापसे पार्शियों को परास्त किया। भारतीय इस प्रकार है-यास प्रवेशकालमें लग्नसहक वर्ण सभी राम उनके हारा थापे। पोछे इन्द्रफे मादेशसे | (प, फा, , भ, म, अ, गा, , ई, उ, ऊ, . घर.ल.ला न्होंने मी योजनविस्तृत प्राएडययन प्रस्तुत किया। प, चे, मो, मी) या स्परफे साथ घोपशायर्ण ( ग, घ, इसी धनको अग्निको तृप्ति लिपे भर्जुनने जलाया था। ज, भ,हाण, म,म)का नाम धारणा विष्णु के एक मनुवरका माम । (कालिकापुराण ६० अ०) 'करनेसे जय और भ्यासनिर्गमकालमें भरग्नसंभकर्ण १० शुश्च के एक पुत्रका नाम । ११ जयके एक (य, य,र, ल...) तथा अनोपम कपर्ण (कम, पुल का नाम । १२ सापफे एक पुत्र का नाम 1 १३. म छ, र तप, पफाग, प, स)का माम उधारण 'अपदयफे एक पुनका नाम । १४ भान्ध्रयंशीय एक करने से परामर होती है। ( नरपति जयचर्यास्वरोदय) रामा। १५. सिंहलमें मार्यसम्पायर्शक पक राम- पितयचूर्ण (मो .) मर्श रोग या मोषध । प्रस्तुत कुमार | जिपरिश देखो। १६ शम मुहर्शमेद । १७ प्रणालो-सोंड, पीपल, काली मिर्च, मामलकी, पयक्षार, , साठ सरसर में पहला संवत्सर। १८ भोजन करना, हरिदा दायहरिद्राचा,चिरायता, पप, धिताका मूल, खाना । १६ एक प्रकारका छन् । यह केशवके अनु। विजवन्द, सोया, पञ्चलवण, पोपलमूल, घेलसोट और

सार सधेपेका मतगयंद नामक मेन है।-. . .. | यमानो इन सब द्रयों को अच्छी तरह पूर्ण कर समान