पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/३७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

वाजिम-बाजीकरण घक भा गया हो । (पु.)२ऐसा धन या रकम। । शुक्र धातु ही श्रेष्ठ है तथा यह धातु रोर-पोषणको एक- वाजिम (स' क्लो० ) भश्विनी नक्षत्र । ( वृहत्स० २३६ ) | मात्र प्रधान है, सुतरां इस धातुफी घटती होनेसे जिससे वाजिभक्ष (सं० पु०) धाजिभिर्भक्ष्यते इति भक्ष-मर्मणि यह धातु चढ़े, उसका उपाय करना सर्वतोभावसे उचित 'घम् । चणक, चना । है। नहीं तो शुकमा क्षय होनेसे सभी धातुका क्षय हो वाजिमोजन (स.पु०) याजिभिभोज्यते इति भुज कर्मणि फर अकालमें शरीर नष्ट हो जानेकी पूरी सम्भावना है। ल्युट । मुद्ग, मुग। इसलिये मी वाजीकरण औपधादिका सेवन करके क्षीण वानिमत् (स.पु.) पटोल, परवल । शुक्रको पूर्ण करना नितान्त प्रयोजन है। पाजिमेघ (संपु०) अश्वमेध । ___ साधारणतः-घी, दूध, मांस आदि पुष्टिकर आहार याजिमेप ( स० पु० ) कालभेद । उपयुक्त परिमाणमै सेवन करनेसे वाजीकरणका प्रयोजन घाजिराज ( स० पु०) १ विष्णु । २ उच्चशिवा। घहुत कुछ सिद्ध होता है। जो सब वस्तु मधुर रस या जिवाइन (स० को०) छन्दोभेद । इसके प्रत्येक चरणः | स्निग्ध, पुष्टिकारक, वलयद्धक और तृप्तिजनक है, वही में २३ अक्षर होते हैं जिनमेंसे ८वां और २३वां अक्षर | साधारणतः गप्प या याजीकरण कहलाती है। प्रियतमा लघु तथा धाकी गुम होता है। तथा अनुरक्ता सुन्दरी युवती रमणी ही वाजीकरणको वाजिविष्ठा (स'० रखो०) १ अश्वत्य, पीपल । २ घोड़े को प्रथम उपादान है। भावप्रकाशमें लिखा है, कि सथ्य विष्ठा। . . | अर्थात् कीवता (सुरतशतिहानि ) होने पर वाजीकरण वाजिशनु ( स० पु०) अश्यमारपक्ष, कनेरका पेड़।। भौषधका सेवन करना होता है, इसलिये वाजीकरण याजिशाला (स.नि.) याजिनां शाला गूह। सशाला, के पहले फ्लध्यके लक्षण, संख्या और निदानकी यात बास्तबल। कहो जाती है। पाजिशिरा (सपु०) १ भगवान के एक अवतारका नाम । ____ मानप जव सुरतक्रियासे आसक्त हो जाता है, तप २एक दानवका नाम । उसे क्लोय कहते हैं । क्लोवका भाव सध्य है। यह व्या वाजिसनेयक ( स० वि०) वाजसनेयक । सात प्रकारका होता है। इसके निदान आदि इस प्रकार है बाजी (सपु०) याजिन देखा। भय, शोक और फोधादि द्वारा अथवा गहृद्य सेवन करने घाजोकर (स' त्रि०) १ वाजीकरण रसायन प्रस्तुतकारी। किंवा अनभिप्रेता द्वेष्या खोके साथ सम्भोग करने २ भौतिक क्रिया या व्यायामादि कोशलप्रदर्शनकारी।। मनकी प्रीति न हो कर वरं असुस्थता पड़ जाती है पाजीकरण (स० क्लो०) अयाजी या जीय क्रियतेऽनेनेति कृ. इससे लिङ्गको उत्तेजना शक्ति जाती रहती है, इसीक प्युट अभूततद्भाचे यि । यह आयुर्वेदिक प्रयोग जिससे | नाम मानसा है। मनुष्य वीर्य और पुसत्यको वृद्धि हो। इसके लक्षण ___अतिरिक्त कटु, अम्ल, लवण और उष्ण द्रथ्य सेवन । “यद्रव्यं पुरुष कुर्यात् पाजियत् सुरतनमम्। करनेसे पित्तको वृद्धि हो कर शुक्र धातु क्षय हो जात सहाजीकरणमाख्यातं मुनिभिभिपजा परैः॥" है। इससे · जो शिश्न उत्तेजना रहित हो जाता है (भाषप० वाजीकरणाधि०) । उसे पित्तन लव्य कहते हैं। जो व्यक्ति याजीकरण - जिस द्रध्यका संयन करनेसे मनुष्य अध्यके समान औषध सेवन न करके अतिरिक्त मैथुनासक्त होता है सुस्तक्षम होता है अर्थात् जिस फियाके द्वारा घोड़े के उसे भो शुक्रक्षय हेतु क्लव्य उत्पन्न होता है। बलवान समान रति शक्ति बढ़ती है, उसे चाजीकरण कहते है।। ध्यक्ति अत्यन्त कामातुर होने पर अगर मैथुन करके शुक्र स्यमायतः जिसको रतिशक्ति अल्प तथा अतिरिक्त स्त्री.] वेग धारण करे, तो उसे शुक्र स्तब्ध होने के कारण सदघासादि दुफियाके द्वारा होन हो गई है, उसे बाजी. सध्य रोग होता है। जन्म से ही साध्य होने पर पानी करण गौपध सेवन करना विधेय है । शरीरके मध्य करण औषध सेवन करनेसे कोई फल नहों होता। पोर्य