पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/३८३

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विजया एकादशी --विजयादशमी पुखने जन्म लिया जिसका नाम सुहोल था। [ समीप भूमि पर खञ्जन देखना शुभ है। इस सम्बन्धमै कुछ .: . (महाभारत १६८०) | विशेषता है। वह यह, किशुभ स्थान में बान इंपनेसे २४ पुरुवंशीय भूमन्युकी स्त्री। भूमन्युने विजया | मङ्गल और अशुभ स्थानमें देखनेसे अमनल होता है। दाशाई नन्दिनीका पाणिग्रहण किया। इस विजया. .पद्म, गो, गज, पाजा और महोरग मादि शुभ स्थागोम से सुहोन नामक एक पुत्र उत्पन्न हुआ। देवनेसे मङ्गल तथा भस्म, अस्थि, काठ, नुप, लोम . .. (महाभारत० ११६५।३३) | और तृणादि अशुभ स्थानों में देखनेसे अशुभ होता है। ५एक योगिनीका माम | २६ पर्समान अपसर्पिणीके | यदि अशुभ बञ्जन का दर्शन हो, तो देवब्राह्मणका पूजा, .अईतकी माताका नाम । २७ दक्षको एक कन्या सौंपधि जतस्नान और शान्ति करना मायक है। म। २८ श्रीकृष्णको माता का नाम । २६ इन्द्रको प्रयाद है, कि इस दिनको यात्रा करनेस ताल भर हा परको पफ कुमाराका नाम । ३० प्राचीनकालका | और कोई यात्रा नहीं करनी होतो । यहो याला समो पहा खेमा:३१ दश माताओका एक मात्रिक छन्द ।। स्थलोंमें शुभ होती है। यही कारण है, कि बहुतेरे लोग | अक्षरों का कोई नियम नहीं होता और इनफे भरतमें | देवोनिरञ्जनके बाद उस येदी पर बैठ दुर्गा नाम जप का । रखना पति मधुर होता है । ३२ एक वर्णिक वृत्त ।। यात्रा करते हैं। प्रत्येक चरणमें माठ यण होने हैं तथा अन्तमे लघु | ___दुर्गोत्सापद्धतिम विजयादशमोत्यका यिस्य इस गुरु अथवा नगण भी होता है । ३३ काश्मोरके एक प्रकार लिखा है :- न क्षेत्रका नाम । ३४ मन्द्राजप्रदेशके एक गिरिसङ्कट "मायाँ बोधयेद्देवी मूलेनैव प्रवेशयेत् । नाम। ३५ सहादिपर्वातसे निकली हुई एक नदो पूर्वोत्तराभ्यां संपूज्य शूवणेन यिमनयेत् ॥" (तिथितत्त) 1,( सह्याद्रिख०) भाद्रा नक्षत्र में देवोका योधन, मूला नक्षत्र में नय. आपकादशी ( स० स्त्री०) १ आश्विन मास के शुक्ल- पत्रिकामवेश, पूर्यापादा और उत्तराषाढा नक्षत्र पूजा की एकादशी। २ फाल्गुन मासफे कृष्णपक्षको एका. | तथा ध्रवणा नशनमें देवांका विमान करना होता है। विजयादशमीफे दिन प्रयणा नक्षत्र पड़नेमे पिताजनक बादशमी ( स० ग्रो० ) चान्द्राश्विनको शुफ्लादशमी। लिये बहुत अच्छा है। उस दिन पदि धयणा नक्षत्र न "दशमी तिथि भगवती दुर्गादयोका विजयोत्सव पड़े, तो फेवल दशमी तिथि विसर्जन करना उचित है, इसीसे इसको विजयादशमो कहते हैं । इस दिन है। इस तिथिम पूह कालके चालान में देवीका विम 1tको विजयके लिये यात्रा करने की विधि है। यह जनकाल है। विसर्जनमें चालनका परित्याग करना जा दशमी तिभिर्म करनी होगी। यदि कोई राजा दशमी. कदापि उचित नहीं। उलइन्न कर एकादशी तिथिको यात्रा करे, नो साल । विजयादशमो प्रयोग-इम दिन प्रातःकालमें प्रातः के भीतर उमको कहीं भी उौत न होगी। यदि कोई हत्यादि करके मामन पर बैठे । पोछे आगमन, सामा- यात्रा करने में अशक्त हों, तो बह गादि मरन शस्त्रको न्या. गणेगादि देवता पूजा तथा मनशदि मौर म्या । कर रखें। कहने का तात्पर्य यह, कि विजयादशमी | सादि करें। इसके बाद गगयतो दुदिशाका 'भो जटा. थाने ही अपनी या सहगादिको भनान यात्रा करतो जूटममायुक्तां' स्यादि गम्वास ध्यान कर गिरोधार्य: स्थापन नशा फिर ध्यान करें। बाद में शनि मनु. दशमी तिधिमे देवीको पयाविधि पूजा करके दलि. मार देयोको पूमा करनी होती है। पूजाफे बाद देवीका - नहीं करना चाहिये, करनेसे यह राष्ट्र मप्र हो म्तयपाठ करके प्रदक्षिण करना होगा। अनार पर्यु- पिनारन और विपिटकादि मथा भोग्शेत्सर्ग करणे, इस तिधिमै गोराजनके बाद सन, गो तथा गोशालेके मारतो मार प्रणाम करने का विधान है। . ना है।