पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/३८५

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विजया एकादशी--विजयादशमी .३१६ एक पुत्रने जन्म लिया जिसका नाम सुहोल था। . समोप भूमि पर सञ्जन देखना शुभ है। इस सम्बन्धमे कुछ . . . .. (महाभारत १ ९०) विशेषता है। वह यह, किशुभ स्थानमें पवन देवनसे ... २४ पुरवंशीय भूमन्युकी स्त्री । भूमन्युने विजया मङ्गल और अशुभ स्थानमें देखनेसे अमलाल होता है। • नानी दांशाई नन्दिनीका पाणिग्रहण किया। इस विजया. .पन, गो, गज, याजा और महोरग मादि शुभ स्थानों __के गर्भसे सुहोन नामक एक पुत्र उत्पन्न हुआ। देखनेसे मङ्गल तथा मस्म, अम्धि, काष्ठ, नुष, लोम . . (महाभारत० ११६५।३३) । और तृणादि अशुभ स्थानों में देखनेसे अशुभ होता है। . २५ एक योगिनीका नाम । २६ वर्तमान अपसर्पिणीके ! यदि गशुम समन का दर्शन हो, तो देवब्राह्मणका पूजा, “दूमरे भई की माताका नाम । २७ दक्षको एक कन्या- सयौपधि जतस्नान और शान्ति करना आवश्यक है।

का नाम । २८ श्रीकृष्णकी माता का नाम | २६ इन्द्रको प्रमाद है, कि इस दिनको यात्रा करनेसे साल भर

___ पताका परमो एक कुमारका नाम | ३० प्राचीनकालका और कोई यात्रा नहीं करनी होती । यहो याला सभो ..एक बड़ा खेमा । ३१ दश मानार्थीका एक मात्रिक छन्द । स्थलों में शुभ होती है। यही कारण है कि बहुतेरे लोग इसमें अक्षरोंका कोई नियम नहीं होता और इनके भरतम | देवोनिरञ्जनके बाद उस घेदो पर घेठ दुर्गा नाम जप कर । गण रखना अति मधुर होता है । ३२ एक वर्णिक वृत्त। यात्रा करते हैं। इसके प्रत्येक चरणमें आठ यणं होते हैं तथा अन्तम लघु दुर्गोत्सयपद्धतिम विजयादशमोहत्यका विषय इस

भीर गुरु अथवा नगण भी होता है । ३३ काश्मीरफे एक प्रकार लिखा है :-

- पचिन्न क्षेत्रका नाम । ३४ मन्द्राजप्रदेशके एक गिरिसङ्कट "भाद्रीयां बोधयेद्देवी मूलेनैव प्रवेशयेत् । .. का नाम । ३५ सह्याद्विपातसे निकली हुई एक नदो पूर्वोतराम्पा संपूज्य सूत्रणेन विमर्गदेत् ॥" (सिथितस्य) नाम । ( सह्याद्रिख०) . भार्दा नक्षत्रमें देवोका वोधन, मूला नक्षत्र मय. विजया एकादशी ( स० स्त्री०) १ माग्विन मासके शुक्ल पत्रिकाप्रवेश, पूर्यापादा और उत्तरापाढा नक्षत्र में पूजा . पक्षको एकादशी । २फाल्गुन मासफे कृष्णपक्षकी एका तथा श्रवणा नक्षत्र में देवों का विसर्जन करना होता है। पशी। . विजयादशमोफे दिन श्रवण नक्षत्र पढ़नेसे विसर्जनके विजयादशमी (सं० स्रो०) चान्द्राश्विनको शुफ्लादशमी। लिये बहुत अच्छा है। उस दिन यदि ध्रयणा नक्षत्र न इस दशमी तिथि भगयतो दुर्गादेवीका विजयोत्सव पड़े, तो फेयल दशमी तिथि विसर्शन करना उचित होता है, इसीसे इसको विजयादशमो कहने हैं। इस दिन है। इस तिधि पूर्वाह ालके चरलग्नमें देयोका विम राजाभी को विजयके लिये यात्रा करने की विधि है। यह जनकाल है । विसर्जनमे घरलग्नका परित्याग करना

यात्रा दशमी तिथि करनी होगी । यदि कोई राजा दशमी- कदापि उनित नहीं।

- का उलइन कर एकादशी तिधिको यात्रा करे, तो साल विजयादशमी प्रयोग-स दिन प्रातःकालो प्रातः ____ भरके भीतर उसको कदों भी जोत न होगी। यदि कोई , कृत्यादि करके भासन पर बैठे । पोछे माचमन, सामा. • सयं यात्रा करने में मशक्त हों, नो पद गादि भरत्र शखती। न्याय, गणेशादि देयता पूना तथा भूनशुद्धि गौर म्या

पाना कर रखें। कहने का तात्पर्य यह, कि विजयादशमी सादि करें। इसके बाद मगरको दुर्गादेवाला 'ओं जटा.

,तिधिमे हो अपनी या बागादिको भनगन गामा हरनो जूरममायुकां' स्यादि ग्वाम ध्यान पर निशतर्ध्य चाहिये। स्थापन तशा फिरमे ध्यान करें। बादमें भक्ति के मनु. . .. दामी तिथिम देवीको यथाविधि पूजा करके वलि. मार देयीही पूजा करनी होती है। पूवाफे बाद देवीका • दान नहीं करना चाहिये, करनेसे यह राष्ट्र नष्ट हो स्तयपाठ करक. प्रदक्षिण करना होगा। यनम्नर पप्यु- जाता है। । ... .. पिताग्न गौर विपिरकादि नया मोज्योत्सर्ग परपं. स्मतिथिम मीराम बाद जल, गो तथा गोशाले मारतो मोर प्रणाम करनेका यिधान है।