पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/४०१

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विजनामन-विज्ञान विजनामन् (सं० पु०) रानी विजां प्रतिष्ठित विहारभेद । विज्ञातव्य (म० वि०) जो जानने या ममझने योग्य हो । , (राजव•३४४४) । विज्ञाता (सं०ति०) विशातृ देखे। विजल (सं० लो०१पाण, तोर । (नि.)२ विजिल || विज्ञाति (सं० स्नान, मम२ गय नामक दंग. (पु०) ३ वाट्यालक, योजयंद । (वैद्यकनि०) योनिमेद । ३ एक कल्पका नाम । विज नपुर (सं० लो०) नगरमेद । विज्ञातृ (सं० त्रि०) विशाता, जो जानता था समझता हो। विजरंघिट (सं०को०) विज्जमपुर देखो। . विज्ञान (सं० क्लॉ०) विविधं विरूपं या ज्ञानं विजा ल्युट् । विजा (सं० सी०) राजकन्याभेद । (राजत०६३४४४) ज्ञान । २ कर्म । ३ कार्मण, कर्मकुशलता। ४ मोक्षको विजाका (सं० स्रो०) एक ना कांधका नाम । छोड़ अन्य (अर्थकामादि) उद्देश्य से गिल्प तथा शास्त्रादि चिजिका (सं० स्त्रो०) विन्जाका देखो। विषयक ज्ञ न, मोक्षमित्र मग्य आन्तर घट टादिपक विजिल (सं० ) विजिल। तथा शिला और शास्त्रविषयमझान। विशवतः अर विजुल (सं० लो० ) १ गुइरफ, दारचीनी । २त्यचा, सामान्यता यही दो प्रकारका शान है। छिलका। (नि.) पिच्छिल । - विशेष भोर सामान्य इन दानों पदार्थों का हा जो बिज ला (सं० सी० ) विज्जन्त दखो। अयबोध ( उपलब्धि ) है, यहो विज्ञान और शाम कह. विजलिका (सं० प्रा०) जतुका या पहाड़ी नामकी लाता है। मोक्ष (मुक्ति ), शिक्षा ( चित्रादि ), शास्त्र लता। (व्याकरणादि ), इन सव विशेष ( सूक्ष्म ) पदार्थो की विजोहा (हिं० पु०) विजोहा देखो। उपलब्धि तथा साधारण घटपटादि समो पदार्थ का उप. 'विठ (सं० वि०) विशेपेण मानातीति वि.झा ( भात चोप- | लब्धिको हो ज्ञान और विज्ञान कहा गया है। "हाना. सर्गे। पा ३।१।१३६ ) का प्रयोप, विचक्षण, छानी, मुक्तिः" "सा याचिता च विज्ञान प्रयच्छति" विशेपक्ष। इसका पर्याय निपुण शब्दमें देखो । २ पण्डित, | "ब्रह्मणो नित्यविज्ञानानन्दरूपत्यात्" इत्यादि स्थानों में विद्वान् । विता (सं० स्रो०) १ विश होनेका भाय, जानकारी । विहान और शान शब्द द्वारा मोझ आदिविशेष पदार्थो- का गववोध और, "शानमस्ति समस्तस्य जन्तोविषय २ युद्धिमत्तः । ३ पाएहत्य, विद्वत्ता। . .. गोचरे""ये केचित् प्राणिनो लोके स विशानिनो मता" विद्वत्वं ( सं०1०) विज्ञता देखा। "घटत्यप्रकारकशानम्" इत्यादि स्थलों में उनके द्वारा विक्षत (सं.वि. ) जो वतलाया या सूचित किया गया हो, जतलाया हुआ। साधारण पदार्थको उपलब्धि होती है तथा चित्रज्ञान, विठप्ति (सं० स्रो०) १ जतलाने या सूचित करनेकी व्याकरणशान, घटपट-विज्ञान इत्यादि शब्दोंका भी शास्त्र. क्रिया । विज्ञापन, इश्तहार। में व्यवहार है। फिर यह भी कहा जा सकता है, कि "गरु. विशतिका (सं० स्त्री० ) प्रार्थना, निघेदन। - स्मत्" शब्द जिस प्रकार गठह और पक्षी मात्रका बोधक विज्ञप्य ( सं० लि. ) जतलान या सूचित करने के योग्य । है, ज्ञान और विज्ञान शब्द भी उसी प्रकार है अर्थात् वित्रुद्धि (सं. स्त्री०) जटामांसी।' मोक्षशान और तदितरज्ञानबोधक है। विक्षध (सं०पु०) यह व्यक्ति जो विज्ञान होने पर भी फूर्मपुराणमें लिखा है, कि विधानानुसार.चौदह अपनको शिवतलाताहा। प्रकारकी विद्याओं का यथार्थ अर्थ जान कर अर्थोपार्जन. विशात (सं० वि०) पछा-क्त।' १ पात, प्रसिद्ध । पूर्वक .यदि धर्माययक कार्य किया जाय, तो उन सब विदित, हात, जाना या समझा हुया! . विद्यामों के फलको विधान कहते हैं। फिर धर्मकार्यसे विष्ठातवीर्य (सं० लि.) विज्ञात चोर्य येन यस्य यांन| निवृत्त होने पर उस फलको विज्ञान नहीं कह सकते। । जिसको शक्ति ज्ञान ली गई हो । जिसके द्वारा दुसरेको ५माया घा अविधा नामकी पृत्ति। ६ वौद्धमतसे , शक्तिका परिचय मिल गया हो। . . .:: . . ., : आत्मरूपठान । विशेषरूपसे सामाका अनुमय)