पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/४०२

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. विज्ञान श्रयण, ममन और मिदिध्यासन द्वारा परमात्माके। बोधको कारण होनेके निमित्त शिक्षाको मारमा पहा गनुभयका नाम विज्ञान है। जाता है। किन्तु यह विज्ञान क्षणिक है। प्राचीन संस्कृत साहित्यमें विज्ञान शब्दका बहुल | ___ भन्तःकरण दो प्रकार में विभक्त है.- पत्ति और इद. ध्ययहार देखा जाता है। ऐतिहासिक मालोकसे इस शम्न- गृत्ति । उनमे अहपृत्तिको विज्ञान कहते हैं तथा इदंगृत्ति के प्रयोगको पर्यालीचना फरनेसे मालूम होता है. कि ] मन कहलाती है। महंपत्यात्मक विभानफे मातरिक प्रत्येक युगमै ही लेनकोंने अनेक मों में हम मनका | ज्ञानके पिना इदंपत्यात्म मनके पाह्यज्ञान नहीं होता। ध्ययहार किया है। श्रुतिमें भी नाना भषों में विज्ञान इसलिये निशानको मन का अभयन्ता और कारण बतलाया शादका प्रयोग है,- है । भतपय उमोको आत्मा कहा जा सकता। यषयानु. (१)कहो ब्रह्म पदार्थ हो विज्ञान नाममे भनिहित म्पलमें क्षण क्षण भत्त्यात्मा शिान का जन्म भीर हुए हैं-जैसे "यो यिहानं ब्रह्मत्युपास्ते" (छान्दोग्य ) घिनाश प्रत्यक्ष होता है। इसीलिये उमको क्षणक पहने "विज्ञाननानन्द प्राम" (तत्तिरीय) विज्ञानं ग्रह्म यद") है तथा वे स्वयं प्रकाशस्वरूप होते हैं । भागममें विधानको " यिनं प्रीति व्यजनादिशामाद्धि, भूनानि जायन्ते, मात्मा कहा गया है। यही जीवात्मा जन्मविनाश भोर सुम्य विछानेन जीवन्ति, विज्ञान प्रयन्ति" ( तैत्तिरीय ३१५१) दुःखादिरूप संसारफा भोक्ता है। किन्तु क्षणिक विशान. (२) कहीं आरमशब्दकं प्रतिनिधिरूपमें विज्ञान शब्द को आत्मा नहीं कह सकते। क्योंकि, विद्यत गादिको का ध्यपहार हुमा है, जैसे-"विज्ञानमात्मा" (अति) | तरह यह विज्ञान अति गलकालस्थायी है। इसके सिया फिर कहो ाकाशको विधान कहा गया है, जैसे और कुछ भी मालूम न होने के कारण माधुनिक यादीने 'तदिनमाशम्" शून्यवादका प्रचार किया है। (४ . कहा मोक्षशानके अर्थमे भो विज्ञान शब्दका | सांख्यसूत्रकारने कहा है.- . प्यवहार देखने में आता है, जै-"द्विधानेन परिपश्यति" "न विशानमात्र बाह्यप्रतीते।" (१।४२) (मुपहुक"विज्ञानेन या ऋग्वेद विजानाति" (छान्दोग्य इससे विज्ञानघादो बौद्धोका मत नएंडन किया गया ७८१) "भारमता विज्ञानम्" ( छान्दोग्य ७।२६१ ) "यो। है। शाडूरभाष्यमें विज्ञानयाद। बौद्धोका मस एडग वि.नेन विनिश नारन्तरो यं frनं न वेद यस्य करने के लिये बहुत सी युक्तियां निकाला गई है। जिम राम' । वृहद रपयक ३।६।२२) ८वौद्धोंका व्यवहत यह मिशान शब्द क्षणविध्वंसि . (५) मुण्ड 6 उपानपावाशष्ट श.नके अर्थ में विज्ञान | प्रपत्र-झानमात्र है। का प्रयाग या माना है जैन-तद्विशानार्थ स ___ दान्तदर्शनमें "निश्नयात्मिका शि" म विहान गुममया.मगच्छेत्" मुगडा ११२ १२) शब्दका व्यवहार दिखाई देता है। भगद् तामे इस अर्धा ६) धाता कमेएइम "यशादे कर्मकोगल"को में भी विश न शन्द का प्रयोग यथेष्ट है। .... मान ..हा है। ___श्रीमद्भारतीतार्थ विद्यारण्य मुनीश्वरने पञ्चदशीको ७) क्षणिक fanो बौद्धों का कहना है, कि काम निश्चयात्मका घुद्धियो हो र शान कहा है। • विधान हो आत्मा है। यहा आरमा दम लोगोफ, ज्ञानको भ्रतिमें विशानधन, विज्ञानाति, विज्ञानमय, विज्ञानयन्त 'कापास्वरूा है। मनक मोतर यह विज्ञानकर मारना | और विज्ञानात्मन् मादि शम्दोफा भनेक प्रयोग देखनेम' . मन । किन्तु वेदान्तवादियों और मां शास्त्रमादियोंने . भाता है। गृहदारण्य में-"मनन्तमा विहान . इस मतका बएन किया है। पञ्चाशो में लिया...कि घन ए" ( २१४११२ ) नारायणोपनिषमुर्म-दिमा पुरं सगक विहामवादी वीरगा निशानको गारमी कम है। पुण्डरीक विमानधनम्”, परमदंसानिय-"विज्ञानघन इन लोगोंका विद्यार,कि आत्मा सोंफे मोतर पदार्थ याक्षि". भात्मप्रयोधर्म-"कारण योयम्वरूपं विधान वयको कारण है। मतपय मनफे यन्तर रह कर · धनम्, तैत्तिरीय उपनिषद-- भोतपति विद्यामति',