-
.
. विश्वराविटि .
३३.५
जो सब प्रकार के शो आदिसे मुक्त हो, जिसे किसी विटङ्कित (सं० त्रि०) विटङ्क-मस्त्यर्थं तारकादित्वादि
'प्रकारका शोक या संताप न हो।
| तच् । अलकृत, शोभित ।
विज्वरा ( स० स्त्रो०) ज्वररहिता, यह स्त्री जिसका उवर विटप (सं० पु० लो० ) वेटति शब्दायते इति विट (विट.
'उतर गया हो । 'विज्यरा ज्वरया त्यक्ता' । (हरिव श) । पिष्टपविशिपोमपाः। उप ३३१४५) इति क-प्रत्ययेन निपात.
विर्भार ( स० लि०) कश। ।
नात् साधुः। १ पक्ष या लताकी नई शाखा, कोपल !
विनामर ( स० क्लो०) चक्षका शुमक्षेत्र, आंखका सादा पर्याय-विस्तार, स्तम्ब । : . . .
भाग।
(क्लो०) २ मुष्कपडक्षणान्तर, स्नायु-मर्मभेद । वक्षण
विजोली (सं. स्त्री०) श्रेणो, पंक्ति।।
तथा.दोनों मुष्कीके मध्य एक उंगलीका पिटप नामक
विट ( स० पु०) चेटतीति घिटक। १ कामुक, लंपट, | स्नायुमर्म है, इस मर्म के विकृत होनेसे पण्डता या शुक-
पद जिसमें कामवासना बहुत अधिक हो। २ कामु- की अल्पता हुभा करती है।
कानुचर, यह जो किसी वेश्याका पार हो या जिसने | (पु.) विटान् पातोति पा-क । ३ मादित्य पन ।
किसी वेश्याको रख लिया हो। .२ धूर्त, चालाक। ४ ४ छतनार पेड़, झाडी.। ५ वृक्ष, पेड़।
साहित्यमें एक प्रकारका नायक । साहित्यदर्पणके | विटपक (सं० पु०) दुट, पाजी।
भनुसार जो व्यक्ति विषय-भोगमें अपनी सारी सम्पत्ति | विटपश् (सं० मध्य.) पिटप-शव । शाखाभेद ।
नष्ट कर चका हो, भारो धत्तं हो, फल या परिणामका विटपिन् (सं० पु०) विटा शाखादिरस्स्यस्येति पिटप-
एक हो अङ्ग देवता हो, वेशभूपा और पाते धनाने में बहुत | इनि । १ यक्ष, पेड़ । २ वटवृक्ष, बड़का पेड़। ३
चतुर हो, वह विट कहलाता है। ५५क पतिका नाम।। अंजोरका पेड़। (नि.) ४ विटपयुक्त, जिसमें नई
६ लवणभेद, सांचर नमक । ७ खदिरविशेष, एक प्रकार-
| शाखाए' या कॉपले' निकली हों।
का खैर जिसे दुर्गन्ध खैर भी कहने सरचिटपी (सं० पु०) विपिन देखो।
चूहा । नारङ्ग यक्ष, नारङ्गोका पेड़। १० वातपुत।
विटपोमृग (सं० पु०) शाखामृग, बंदर। .
विरक (सपु०) १ प्राचीन काल की एक जातिका नाम ।
चिटपुत्र-पक कामशास्त्रकार । कुट्टनीमत-प्रन्यमें इनका
नाम उद्धत हुमा है।
२ पुराणानुसार एक प्राचीन देश जो नर्मदा नदीके तट
विटप्रिय (सं० पु०) घिटानां प्रियः । १ मुद्गरयक्ष,
पर था। चोटक, घोड़ा।
विटारिका (सं० स्त्री०) एक प्रकारका पक्षी ।
मोगरा नामक फूल या उसका पौधा । २ विटोंका
प्रिया
विटकृमि (सं० पु०) युन्ना या चुनचुना नामका कीड़ा विटभूत (.सं० पु०) महाभारतके अनुसार एक असुरका
जो पोंको गुदामें उत्पन्न होता है।
नाम
विरङ्क (सं० पु. लो०) विशेषेण टङ्कत्ते सौधादिषु इति विटमाक्षिक (सं० पु०) विटप्रियो माक्षिक धातुविशेष,
यि-रङ्क पन्धने घम् । १ कपोतपालिका, कबूतरका दरमा, | सोनामपखो नामका खनिज द्रष्य। पर्याय-ताप्य,
काबुक । सौधादिके प्रान्तभागमै काठका पना हुमा नदीज, कामारि, तारारि। स्वर्णमाक्षिक देखो।
जो कबूतरके रहनेकी जगह होती है, उसे विटङ्क कहते विटलवण (सं० लो०) विटसंधक लवणम् । पिड लवण,
हैं। अमरटीका भरतने लिखा है, कि पक्षीका वासामान | सांवर नमक।
हो विटङ्क कहलाता है । २ सबसे ऊंचा सिरा या विटवल्लमा ( सं० सी०) पाटली पृक्ष।
' 'स्थान। ३ बढ़ो ककड़ी । (नि.) ४ सुन्दर, मनोविटवृत्त-एक प्राचीन संस्कृत कवि । सुभाषितावली
र १५ मलङ्कत, शोभित ।।
। प्रन्यमें इनकी कविता उद्धत देखो जाती है।
विटङ्कक (सं० पु० लो०) विटङ्क एव स्वार्थ कन् । विटङ्क। चिटि (सं० स्रो०) घटतीति विटलन् , सब फित् । रक्त-
विटङ्कपुर (सं० को०) नगरभेद। (कथासरित्सा० २५॥३५) । चन्दन। ..
Vol xx 85
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/४०७
Jump to navigation
Jump to search
यह पृष्ठ शोधित नही है
