पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/४०८

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१३८ विटिकण्ठोधर-विलदास पिटिकराठोधर (स.) यह जो लालचन्दनको कपठो । जव राजाको इसकी खबर लगो, तब ये अपने पुरोहिता बांधता हो। ... प्रकृत चरित जानने के लिये एक दिन एकादशीको रातको । पिट ( सं० ० ) बिह लवण, सायर नमक । अन्यान्य भक्त वैष्णवोंके साथ इनको बड़े भादरके साथ . यिटक (सं० लो०) विप, जहर। अपने घर लापे। दो मंजिलफे ऊपर सवों की बैठक हुई, पिटकारिका (सं० स्रो० ) पक्षिविशेष । पर्याय-कुणपी, बहुत देर तक वैष्णवोंक भीतर विविध कृष्णा तया रोरोटी, गोकिराटिका, विटसारिका । (हारावली) , नामकोर्तनादि चलने लगा। इसी समय बिट्ठलदास प्रेम घिरफुल (सं० को०) यिशा कुलं । धेश्यकुल, वैश्य ।। के आनन्दमें उन्मत्त हो नाचने लगे, प्रमोन्माद हो - (भावग्रह्य० २।२।१) कर नाचते नाचते कुछ समय बाद पैर फिसल पटदिर (सं० पु०) विड़ यत् दुर्गन्धः सदिरा । एक प्रकार | गया और ये छन परसे जमीन पर गिर पड़े। यह देश कानेर जिसे दुर्गन्ध और भी कहते हैं 1. पर्याय-भरि | स्वयं राजा तथा यहां पर जितने थे, सभी हाहाकार करने मेद, हरिमेद, मसिमेन, कालस्कन्ध, अरिमेदक । इसका लगे, किन्तु परमकारुणिक भगवान्को पासे उनके शरीर गुग-पाय, उष्ण, मुग्न और दन्तपोड़ा, रक्तदोप, कण्डू. में जरा भी चोट न पहुंचो । यब राजाके भानन्दको सीमा विप, श्लेष्मा, मि, कुष्ठ, प्रण और प्रहनाशक । (भाषप्र०) | न रदी और उन्होंने पड़े श्रद्धान्वित हो उन्हें घर भेन विट घात (सं० पु०) मूसाघात नामक रोग। दिया तथा उनकी जीवनयाता जिससे विना उद्वेग प्यतीत बिट चर (स० पु० ) बिपि विष्ठायां चरतीति चर-ट । .हो, उसके लिये उन्होंने गृत्ति नियत कर दी। इसके बाद माम्यशकर, गांवों में रहनेयाला सूमर । विट्ठलदास घरको परित्याग कर पहले पाटघरामै रहने विट्टल (पिछल)-१ दाक्षिणात्यके पएढरपुरस्थित विष्णु-1. लगे, पीछे अपनी माता अनुप्रइसे तथा श्रीगोपिन्ददेयकी की एक मूर्सिका नाम। पपदरपुर देखो। । आज्ञासे चे पुनः घर लौटे और यही नियत वैष्णयसेवा २छायानाटकके प्रणेता। ३ रतियत्तिलक्षण नाम फ करने लगे। इनके पुत्र रङ्गराय १८ वर्षको भयस्या हो अलङ्कारप्रन्य प्रणेता। ४ सङ्गीतनृत्यरत्नाकरके रचयिता । पिताके समान कृष्णभक्त हुए। उन्होंने भाग्यवशता ५ केशवफे पुत्र, स्मृतिरताकरके प्रणेता। ६ यहशर्माके जमोनके नीचे एक परम रमणीय यिप्रद मूर्ति और कुछ पुत्र। इन्होंने १६१६ ६०में कुएडमण्डपसिद्धि और पीछे | धन पाया था। इससे विट्ठलदास बड़े उल्लासित हुए तुलापुरुपदानविधि तथा १६२८ ई०में मुदत्त कल्पद्रम | और पितापुत्र मिल कर कापमनोयाफ्य मारा अत्यन्त और उसकी सरोका लिखी। ७ वाङ्माला नामक न्याप- भक्तिपूर्वक विग्रहदेयकी सेवा करने लगे। प्ररपके रचयिता। विट्ठलदासको कृष्णप्रमोन्मत्तताका विषय भक्तमालमें विट्ठल भाचार्य-१ एफ ज्योतिर्षिद् । इन्होंने विलापद्धति इस प्रकार लिखा है-एक दिन ये कोकिल-कएठो नामक एक ज्योतिष प्रणयन किया। २ एक विण्यात किसी नर्शकोफे मधुर सरगे रासलीला संगीत पएित। इनके पिताका नाम नृसिंहाचार्य, पितामहंका, सुन कर इतने प्रेमीनात्त हुए, कि उन्हो ने गृहमियत समी 'रामकृष्णाचार्य तथा पुलका नाम लक्ष्मीधराचार्य था। ये पखालद्वारादिको उसे ला दिया। इनने पर मो ये संतुष्ट प्रक्रियाकौमुदीप्रसाद, पयार्थनिरूपण, पैष्णयसिद्धा. म हुप, माथिर उन्होंने रङ्गरायको उस गर्राको हाथ सौंप 'तदीपिकारीका भादि प्रन्य बना गये हैं। भट्टामिदोशितः दिया । सङ्गीतफे बाद जब नरांको रङ्गरायको अपने साथ ने अनेक जगह इनको निन्दा की है। ३ मियायोग नामक ले चलो, तब बिल के पासवान उपस्थित हुमा । उन्होंने योगपफ रचयिता। गर्सकोको प्रचुर अर्थ दे कर पुत्रको यापस मांगा: पित बिलदास-मथुरानियासी एक परमभक पैगय, याला | पुनमें अपनी असम्मति प्रकट करते हुए पितासे कहा, रामा पुरोहित। यह पृष्णप्रेममें मत्त हो गृहकार्य 'मापने जब मुझे कृष्ण उनसे प्रदान कर दिया है, तब . परित्याग कर सर्वदा एक निर्गन स्थानमै रदा करते । फिर प्रसिदामको कामना करना मापके लिये नितान्त अनुः ..