पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/४२२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

विदलान-विदारों विदलान ( स० श्लो० ) १ पश्यदानि, पकाई हुई दाल। विदारण (सं० क्ली० ) वि.दू-णिच् भावे ल्युट । १ बीच में २ घ६ गन्न जिसमें दो दल हो। जैसे-चना, उदय, गलग करके दो या अधिक टुकड़े करना। २ मार मूग, अरहर, मसूर आदि । डालना, हत्या करना । ३ कनेर । ४ सपरिया। ५ भौसा. . विदलित (सलि०) १ मति, जिसका अच्छी तरह दर। (पु०) विदार्यते शनयाऽस्मिन्निति वि-दू-णिच एलन किया गया हो। २ रौंदा हुआ, मला हुआ। ल्युट । ६ युद्ध, समर। ७ जनों के अनुसार दूसरों के ३ विकसित। ४ विदारित, फाड़ा हुआ। पापों या दोपोंकी घोषणा करना । (त्रि०) घिदारपतीति.. विदलीकृत (स० त्रि०) चूर्णित, टुकड़े टुकड़े किया विद्वणिच ल्यु । ८ पिदारक, फाड़ डालनेवाला ! - हुआ। विदारि(स० स्त्री०) विदारिका देखो। विदश (सत्रि०) विगता दशा यस्य ( गोनियोक्सजनस्य विदारिका (स. क्लो०) विद्वणिच ण्वुल-टापि मत । इति गौणत्वाद्ध स्थवरम् । पा ११२।४८) दशाविहीन। | इत्व१शालपणी । २ गभारी वृक्ष । ३ विधारी रोग। विदा (सस्त्रा०) विद शाने (पिद्भिदादिभ्योऽङ् । पा ४ करवी तूवी। (स्त्री०)५ पृहत्साहिताके अनुसार ३३३३१०४ ) इत्यङ्राप। ज्ञान, बुद्धि । एक प्रकारको दाकिनो जो घरके बाहर अग्निकोणमें विदा (हि० स्त्रा०) प्रस्थान, रवाना होना । २ कहास रहती है। (पृहत्स० ५३८३) . . चलनेको आशा या अनुमति । घिदारिगन्धा (सं० स्रो०) क्षविशेष, शालपणों । अप्रेजो. विदाई (हिं० स्त्रा०) १ विदा होने की क्रिया या भाव, रुख | में इसे Hedysarum gangeticumr कहते है। सतो। २ विदा होने की आज्ञा या अनुमति । ३ यह | | यिदारिन् (स. त्रि०) विदू-णिनि। विदारणकर्ता, धन आदि जा विदा होने के समय किसीको दिया जाय । फाड़नेवाला। विदाद् भविष्यपुराण-वर्णित शाकमोपित्राह्मणोंका घेद || | विदारिणी (स० स्त्री०) निघदारिन् डीप । १ काश्मरो, प्रत। आजकल यह वेन्दिदाद नामसे प्रसिद्ध है। किसी | गंभारो । २ विदारणकत्ती । किसी ग्रन्थ "विदुदु" प्रामादिक पाठ भी देखा जाता है। | विदारो (स'. स्त्री०) विदारयतीति विठू-णिच मच (भविष्यपु०१४ म०) विदान ( लो) विभाग कर देना। गौरादित्यात् डोप। १ शालपणीं। २ भूमिकुष्माण्ड, (शतपथवा० १४१८७१) भुकुम्हड़ा । पर्याय-क्षीरशुक्ला, इक्षगग्धा, क्रोष्ट्री, विदाय ( स० पु०) विगतो दाया साक्षात् करणादिरूप विदारिका, स्वादुगन्धा, सिता, शुक्ला, गालिका, गृष्य- मृण पेन विसर्जन । २दान । गमनानमति, कन्दा, बिडाली, वृष्यवल्लिका, भूकुष्माण्डी, स्वादुलता, जानेकी अनुमति, विदा। ४ प्रस्थान । गजेएा, पारिवल्लभा और गन्धफला। गुण-मधुर, । विदायिन् ( स० त्रि०) विदातु'शोलं यस्य वि-दा-णिनि ।। शीतल, गुरु, स्निग्ध, अनपित्तनाशक, कफकारक, पुष्टि, १ दानकर्ता, दान करनेवाला । २ नियामक, जो ठीक | घल और वीर्यवर्द्धक।। (राजनि०) । तरहसे चलाता या रखता हो । (स्रो०) ३ विदाई देखा। ३ भावप्रकाशके अनुसार अठारह प्रकार के फठरोगों. विदाय्य (सं०नि०) वेत्ता, जाननेवाला । मेंसे एक प्रकारका कठरोग। इसमें पित्तके बिगड़नेसे विदार (स० पु०) वि द्रु घम्। १ जलोच्छ्वास । २ विदा- गले और मुंह पर लाली आ जाती है, जलन होती हैं रण। ३ युद्ध, समर। और घबबूदार मांसके टुकड़े कर फर कर गिरने लगते विदारक ( स० पु०) विद्वणाति जलयानादीति विदू हैं। कहते हैं, कि जिस करवट रोगी अधिक सोता है; धुलं । यहं वृक्ष या पर्वत आदि जो जलके योचमें | उसी मोर यह रोग उत्पन्न होता है। गलरोग शब्द देखो। हो । २ नदियों के तल में बनाया हुआ गदा जिसमें नदीके) ४ एक प्रकारका क्षुद्ररोग । इस रोगमै कक्षमें. सूखने पर भी पानी बचा रहता है । (क्लो०)३ वज्रशार, और पक्षणसन्धिमें भूमिकुष्माण्डको माकृति जैसी 'नौसादर । (नि.) ४ विदारक, फाड़ डालनेवाला। कालो फुसियां निकलती हैं। उसे विदारी या विदारिका .