विदारीकन्द-विदुर
कहते हैं। यह रोग विंदोपसे उत्पन्न होता है तथा इसमें विदाइक ( स० वि०) विदाह-स्वार्थे कन्। १ जो
त्रिदोषके सभी लक्षण दिखाई देते हैं।
विदाह उत्पन्न करता हो। २ विदाह देखो।
इसको चिकित्सा-इस रोगमें पहले जोंक द्वारा रक्त | विदाहयत् ( स० वि०) विदाहो विद्यतेऽस्य मतुप मस्य
मोक्षण करना उचित है । इसके पक जाने पर शस्त्र या विदाहयुक्त, जिसमें ज्याला वा जलन हो ।
प्रगोग करके प्रणरोगकी तरह चिकित्सा करनी चाहिये। विदाहिन् ( स० ली० ) विदहतीति वि.दह-णिनि ।
(भावप्र० शुद्ररोगाधि०) । १ दाहजनक द्रव्य, वह पदार्थ जिससे जलन पैदा हो।
प्रवाद है, कि इसके एकके निकलनेसे लगातार ७ | (त्रि०) २ दाहजनक ।
फुसियां निकल जाती है।
विदिकचङ्ग (स' पु० ) हरिद्राङ्ग पक्षी ।
____५ कर्णरोगभेद । (याभट उ० १७५०) ६ प्रमेह विदित ( सं त्रि०) विद्क्त। १ अवगत, हात, जाना
रोगकी एक पौड़का या फुसी। (सुश्रु त नि० ६५०) हुमा। २ मर्पित। ३ उपगम। विदित ज्ञानमस्या-
७ सुवर्चला 1 ८ वाराहीकन्द । ६ क्षीरक कोली । १० | स्तीति अर्श भादित्वाच । (पु०) ४ कवि। ५ छाना-
पाभटोक्त गणविशेष । परएडमूल, मेपङ्गो, श्वेत- |
धय।
पुनर्नवा, देवदारु, मुगानी, मापाणी, फेवाच, जोधक, विदिय (सं० पु०) १ पण्डित, विद्वान् । २ योगी।
'शालपान, पिठयन, वृहनो, एटकारी, गोक्षुर, मनन्त- विदिश (सं. स्त्रो०) दिग्भ्यां विगता। दो दिशाओंके
मूल और हमपदो इन्हें विदार्यादिगण कहते हैं । गुण- बोचका कोना । जैसे-अग्नि या ईशान आदि। पर्याय-
हृदयका हितजनक, पुष्टिकारक, पातपित्तनाशक तथा शोप, | अपदिश, प्रदिश, कोण।
गुल्म, गात्रवेदना, ऊदुश्वास और कासप्रशमक। विदिशा (सं० स्त्री०) १ पुराणानुसार पारिपात्र पर्वतपाद
(वाग भट स० स्था० १५) |
| से निकली हुई एक नदीका नाम । (मार्क-पु. ५५२० ।
विदारीकन्द (संपु.) विदारो, भुकुम्हड़ा।
२ वर्तमान मिलसा नगरका प्राचीन नाम | भानमा दखी।
विदारीगन्धा । स० स्त्री०) विदार्या भूमिकुष्माण्डस्येव |
विदीगय (सं० पु०) पक्षाविशेष, सफेद बगला ।
गग्यो यस्याः।१ शालपणी । २ सुश्रुतके अनुसार शाल. |
( तेत्ति० स० ५।६।२२।१)
पणी, भुई' कुम्हड़ा, गेरू, विजधन्द, गोपघली, पिठवन,
| विदीधयु (सं० त्रि०) १ विलम्ब, देर। २ दीप्तिशून्य,
शतमूली, अनन्तमूल, जोयन्ती, मुगवन, पृहती, कटकारी,
आभाहीन।
पुनर्नया, परएडमूल आदि मोपधियोंका एक गण । इस
| विदीधिति (सं० त्रि०) विगता दीधितयः किरणानि यस्य ।
'गणको स। भोपधियां यायु तथा पित्तकी नाशक और
निमयूज, किरणहीन।
शोध, गुल्म, ऊर्ध्वश्वास तथा खांसी आदि रोगों में
| विदीपक (सं० पु०) प्रदीपक, दी।
हितकर मानी जाती है।
घिदारोगन्धिका ( स्त्री०) विदारीगन्धा।
| घिदोण (सं० त्रि०) यि द्व-क्त । १ योचसे फाड़ा. या विदा-
विदारीद्वय (स० पु०) कुष्माण्ड और भूमिकमाण्ड, ! रण किया हुआ। २ भग्न, टूटा हुआ। ३ हत, मार डाला .
कुम्हड़ा और भुई कुम्हड़ा। (वैद्यकनि०) ।
विदारु (स. पु०) फकचपाद, एकलास, गिरगिट।
| विदु (सं० पु.) घेत्ति संझामनेनेति विद-वाहुलकात्
विशासिन् ( नि.) दस्यु । उपनपे वि-दस णिनि । |
कुः । १-हाथोके मस्तकके वोचका भाग।.२ घोड़े के काम-
उपक्षययुक्त।
के नोचेको भाग।
विदाह (मपु०) पि-दह-धनः। १ पित्तके प्रकोपसे विदुत्तम (सं० पु०) घिदां-ज्ञानिनां पुत्तमः । १.सर्यश,
होनेवाली जलन | २ हाथ पैरमें किसी कारणसे होनेवाली यह जो सव वा जामता हो। २ विष्णुका एक नाम ।
जलन,
बिदुर (सं० नि० ) येदितशीलमस्म यि कुरष (विदि.
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/४२३
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