पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/४२४

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३५६ भिदिच्छिदेः फुरच । पा ३।२।१६२) १ वेत्ता, जाननेवाला। अनेक प्रकारफे सत्परामर्श देने के बाद एन्होंने अपने एक . २ नागर, चालाक । ३ षड़यन्त्रकारी। ४ धीर, पण्डित, विश्वस्त खनकको वारणावत नगरमें भेज दिया | नमक शानी । (पु०) ५ स्वनामख्यात कौरवमन्त्री, धर्मफे अब ने थोड़े ही समयमे। पाण्डवोंके रहने के लिये कल्पित तारविशेष । धर्मने माण्डव्य ऋपिके वाल्यकृत सामान्य | जतुगृहके नीचे से शल्लको गृहकी तरह दोनों ओर निर्गमन अपराध पर उन्हें कठोर दण्ड दिया। इस पर माएडया पथ युक्त एक विवर खोद डाला। जिस दिन जतुगृहम ... ने धर्मको शाप दिया कि, 'तुम शूद्रयोनिमें जन्म लोगे।। आग लगाई गई थी, उस दिन माताफे साथ पाण्डवगण इधर जव कुरुवंशीय विचित्रवीर्यको पत्नी काशीराजा | विदुरके पूर्ण परामर्शानुसार उसी सुरङ्गासे बाहर निकल कन्या अम्बिकाको जब उनकी सास सत्यवतीने दूसरी | गये थे। वार कृष्ण-द्वैपायन द्वारा पुत्रोत्पादन करने कहा, तब ... इस घटनाकं कुछ समय बाद पाण्डवगण द्रौपदीको उन्हें यह बात पसन्द न माई, पयोंकि वे महर्पिकी उस | जीत कर अपने घर लौटे और इन्द्रप्रस्थनगरोमें उन्होंने ' कृष्णवर्ण देह, पिङ्गलवर्ण जटा, विशाल श्मश्रु और संज- राजधानी घसाई। यहां कुछ समय बाद उन लोगोंने - पुञ्ज सदश प्रदीप्त लोचनोंसे भय खाती थी। इसलिये राजसूय यज्ञ किया। इस यज्ञमें उन्हें बड़ी प्रतिष्ठा मिली। उन्होंने एक सुन्दरी शसीको अपने वेशभूषादि द्वारा दुष्ट महाभिमानी दुर्योधन पाण्डवों को प्रतिष्ठा देख जलने भूषित कर ऋषिके समीप भेज दिया। इस दासीके गर्भसे लगा और फिर उनके पीछे पड़ा। इस बार उसने महर्णि कृष्ण द्वैपायन औरससे धर्म ही महात्मा विदुर पाण्डवोंको राज्यभ्रष्ट और विनष्ट करनेको इच्छासे शनि- रूपमें उत्पन्न हुए। घे राजनीति, धर्मनीति और अर्थ को बुलाया और उसके बहकानेसे तमाडामे उन्हें नीति विषयों में परमकुशल, फ्रोधलोमविर्जित, शम-! परास्त कर निर्यातन करना हो धेय समझा। तदनुसार परायण तथा अद्वितीय परिणामदर्शी थे। इस परिणाम | धृतराष्ट्रको इसको खबर दी गई। धृतराष्ट्रने पुत्र के अनुः । दर्शिताके गुणस इन्होंने पाण्डयोको भारीसे भारी विपद रोधसे पहले प्राशमयर मन्त्री विदुरसे इस विषयों सम्मति । से बचाया था। महामति भीष्मने महीपति देवकी मांगी थी। राजगोति-कुशल दूरदशों विदुरग इस कार्यमे शूदाणो गर्भसम्भूता रूपोवन सम्पन्ना एक कन्याफे साथ भावी महान् भनिएको सम्भावना दिनलाते हुए जुभा उसका विवाह करो दिया । विदुरने उस पारशवी कन्या. खेलनेसे मना किया था । किन्तु स्वार्थसिद्धि के सामने से अपने जैसे गुणवान और विनयसम्पन्न कितने पुन | उनकी सलाह पया काम देती ? यह गन्त्रो विदुर जो कुछ उत्पादन किये। कहते, उसे धृतराष्ट्र अपने विरुद्ध समझता था । न्यायपरा.' जय दुए दुर्योधनको कुमन्त्रणासे धृतराष्ट्रने यथासप्रस्थ यणताके वशवत्ती हो विदुर कभो भो पाण्डयों के विरुद्ध' हड़पनेकी इच्छासे युधिष्ठिरादिका जतुगृह दाह द्वारा खड़े नहीं होते थे, यही इसका एकमात्र कारण था । यिनाश करनेका सङ्कल्प किया और इसी उद्देशसे उन्हें । मतपय धृतराष्ट्रने विदुरकी सलाह न सुन कर उनकी छलनापूर्वक वारणावत नगरमें भेजा, तय पाएडयोंने इच्छा नहीं रहते हुए भी. ध तकौड़ाके लिये युधिष्ठिरको फेवल महापाशं विदुरके परामर्श तथा कार्यकुशलता. लाने इन्हें, इन्द्रप्रस्थ भेजा । इसी अक्ष-कोड़ाके फलसे से ही उस विपदसे मुक्तिलाभ किया था । इस समय पाण्डवोंको तेरह वर्ष सममें और एक वर्ष · अज्ञातवासमें 'विदुरने युधिष्ठिरको सलाह दी थी कि, 'जहां रहोगे | विराटराजके यहां रहना पड़ा। इस घ्यापारमे भी महारमा 'उसके निकटवर्ती चारों ओरफा पधघाट इस प्रकार,ठीक विदुरने पाण्डवोंकी रक्षा के लिये कोई कसर उठा ग रखी कर लेना जिसमे अधेरी रातको भी संयोगवशतः आने थी, पर इसमें वे कृतकार्य न हो सके। जाने किसी प्रकारका विघ्न न हो और यह भो याद इसके याद, फुरुक्षेत्रयुद्धके प्रारम्भमें एक दिन रातको रखना कि यदि रातको दिगभ्रम हो जाय, तो नक्षत्रादि । धृतराष्ट्रने अवश्यम्भावी महासमरका विषय सोचने हुए । • द्वारा भी दिशाका निरूपण हो सकता है।' इस तरह किंकर्तव्यविमूढ़ हो विदुरको बुला कर कहा, 'विदुर ! में