विद्याधराम्र-विद्यानगर
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बनाये। अनुपान मधु और गायका दूध है । इसके सुवृत्ततिलकमें इनका परिचय है। २ एक दूसरे कवि।
सेवनसे यकृत् प्लीहादि रोग नष्ट होते हैं।
विद्याधिराज (सपु० ) वह जो बहुत वडा पंडित हो।
विद्याधराभ्र (सं० क्ली०) शूलरोगको एक औषध । प्रस्तुत- विधधिराज-एक अद्वितीय पण्डित ये शिवगुरुके
प्रणालो-विडङ्ग, मोथा, आंवला, हरें, बहेड़ा, गुलञ्च, पिता तथा गङ्कराचार्य पितामह थे
दन्तीमूल, निसोध, नितामूल, सोंठ, पीपल और मिर्च, विधिराजतीर्थ-माध्यमतावलम्यो एक संन्यासी । पे
प्रत्येक २ तोला, जारित लोहा ३२ तोला, अयरकको भस्म थानन्दतीर्थक परवत्ती ७ गुरु थे। इनका पूर्व नाम था
८ तोला, हसपदोके रसमें शोधित हिंगुलोत्थ पारा | कृष्णभट्ट । इनकी लिखो एक भगवद्गोताको टीको मिलतो
१॥ तोला, शोधित गन्धक २ तोला । 'पहले पारा और है। १३३२ ६०में इनको मृत्यु हुई। स्मृत्यर्थसागरमें
गन्धकको कजली बना कर उसमें लोहा और यवरक | इसका उल्लेख है।
मिलाये। पीछे और दूसरे दूसरे द्रष्य मिला कर घी और विद्याधीशतीर्थ-वेदश्यासतीर्थ शिष्य । इनका पूर्वनाम
मधुके साथ उसे अच्छी तरह घोट एक स्निग्ध भाएडमें नृसिंहाचार्य था। १५७२ ई० में इनको मृत्यु हुई।
रखे। पहले २ या ३ माशा गाय दूध या ठंढे पानीके | विद्याधोशयड़ेरु ( स०पु०) पण्डित, विद्वान् ।
साथ सेवन किया जाता है। पोछे अवस्थानुसार उसकी विद्याधीशस्वामी-एक पण्डित । स्मृत्यर्थसागरमें इनका
मात्रा घटाई या बढ़ाई जा सकती है। यह नाना प्रकारफे। उल्लेख है।
शूल और मालपित्तादि रोगनाशक तथा परिणामशाल. विद्याध ( स०पू०) विद्याधर नामकी देवयोनि ।
को यह एक उत्कृष्ट औपध है।
विद्यानगर-दाक्षिणात्यमें तुगभद्रानदीके दहिने किनारे पर
विद्याधरो ( स० स्त्री०) विद्याधर नामक देवताको स्थित एक प्राचीन प्रधान नगर। दाक्षिणात्यके प्राचीन
स्त्रो।
इतिहासमें विद्यानगर वड़ा विख्यात और समृद्धिशाली
विद्याधरोभून (स० वि०) अविद्याधरो विद्याधरोभूतः । स्थान था । ऐतिहासिकों और पर्यटकोंने इसका भिन्न
जो विद्याधर हुमा हो । (कथास० २५।२६२) भिन्न नाम रखा है। किसी समय विद्यानगर कहने से
विद्याधरेन्द्र (स०पू०)१ राजभेद, विद्याधर राजा । उक नामानुसार दाक्षिणात्यका एक सुविशाल साम्राज्य
(राजतर० १।११८) २ कपीन्द्र, जाम्बुवान् ।
समझा जाता था। इस विद्यानगरका प्राचीन नाम
. (महाभारत)
विजयनगर था। ११५०ई०में तुगभद्राके दहिने किनारे
विद्याधरेश्वर ( स०ए०) पुराणानुसार एक शिवलिङ्गका राजा विजयध्वजने अपने नाम पर यह नगरो वसाई ।
नाम। (कूर्मपुराण)
विजयनगरके भिन्न भिन्न नामोंको ले कर बहुत-सी
विद्याधाम मुनिशिष्य-एक कपि। इन्होंने वर्णन उपदेश-1 फहानियां प्रचलित हैं। इसका दूसरा नाम "विद्याजन
साहसोवृत्ति नामक एक प्रग्य लिखा है। । या विद्याजनु" भी है। नुनिज (Nunia)का कहना है, कि
विद्याधार । स० पु०) पण्डित, विद्वान्।
राजा देवराय एक दिन तुगभद्रा नदीके अरण्यमय प्रदेशमें
(मालतीमा ५२)/ शिकार खेलने गये । इस समय जहां प्राचीन विजयनगर-
विद्याधारिन् ( स० पु०) एक वृत्तका नाम । इसके का खंडहर पड़ा हुआ है, उस समय वहां घोर जंगल था।
प्रत्येक चरणमे चार मगण होते हैं।
उन्होंने यहां आ कर एक विचित्र घटना देखो। देव.
विद्याधिदेवता ( स० स्त्री.) यियायाः अधिदेवता। राय शिकारमें जो सब कुत्ते ले गये थे, उनके छोटे छोटे
विद्याकी अधिष्ठात्री देवी, सरस्वती।'
खरगोश द्वारा मारे जाने पर ये बड़े विस्मित हुए। यह
'विद्याधिप ( स० पु० ) १ विद्या सिखानेवाला, गुरु ।। दृश्य देख कर जब ये लौट रहे थे, तब उन्होंने तुङ्गभद्राक
२ विद्वान्, पण्डित। . . : :: किनारे एक तपस्वीको देखा । उनको देख राजाने उनस
पिधाधिपति-१ कवि रलोकरको उपाधि । क्षेमेन्द्रस्त यह अद्भत और मलौकिक विवरण कह सुनाया। इनका
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/४३७
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