पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/४३७

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विद्याधराम्र-विद्यानगर ३६७ बनाये। अनुपान मधु और गायका दूध है । इसके सुवृत्ततिलकमें इनका परिचय है। २ एक दूसरे कवि। सेवनसे यकृत् प्लीहादि रोग नष्ट होते हैं। विद्याधिराज (सपु० ) वह जो बहुत वडा पंडित हो। विद्याधराभ्र (सं० क्ली०) शूलरोगको एक औषध । प्रस्तुत- विधधिराज-एक अद्वितीय पण्डित ये शिवगुरुके प्रणालो-विडङ्ग, मोथा, आंवला, हरें, बहेड़ा, गुलञ्च, पिता तथा गङ्कराचार्य पितामह थे दन्तीमूल, निसोध, नितामूल, सोंठ, पीपल और मिर्च, विधिराजतीर्थ-माध्यमतावलम्यो एक संन्यासी । पे प्रत्येक २ तोला, जारित लोहा ३२ तोला, अयरकको भस्म थानन्दतीर्थक परवत्ती ७ गुरु थे। इनका पूर्व नाम था ८ तोला, हसपदोके रसमें शोधित हिंगुलोत्थ पारा | कृष्णभट्ट । इनकी लिखो एक भगवद्गोताको टीको मिलतो १॥ तोला, शोधित गन्धक २ तोला । 'पहले पारा और है। १३३२ ६०में इनको मृत्यु हुई। स्मृत्यर्थसागरमें गन्धकको कजली बना कर उसमें लोहा और यवरक | इसका उल्लेख है। मिलाये। पीछे और दूसरे दूसरे द्रष्य मिला कर घी और विद्याधीशतीर्थ-वेदश्यासतीर्थ शिष्य । इनका पूर्वनाम मधुके साथ उसे अच्छी तरह घोट एक स्निग्ध भाएडमें नृसिंहाचार्य था। १५७२ ई० में इनको मृत्यु हुई। रखे। पहले २ या ३ माशा गाय दूध या ठंढे पानीके | विद्याधोशयड़ेरु ( स०पु०) पण्डित, विद्वान् । साथ सेवन किया जाता है। पोछे अवस्थानुसार उसकी विद्याधीशस्वामी-एक पण्डित । स्मृत्यर्थसागरमें इनका मात्रा घटाई या बढ़ाई जा सकती है। यह नाना प्रकारफे। उल्लेख है। शूल और मालपित्तादि रोगनाशक तथा परिणामशाल. विद्याध ( स०पू०) विद्याधर नामकी देवयोनि । को यह एक उत्कृष्ट औपध है। विद्यानगर-दाक्षिणात्यमें तुगभद्रानदीके दहिने किनारे पर विद्याधरो ( स० स्त्री०) विद्याधर नामक देवताको स्थित एक प्राचीन प्रधान नगर। दाक्षिणात्यके प्राचीन स्त्रो। इतिहासमें विद्यानगर वड़ा विख्यात और समृद्धिशाली विद्याधरोभून (स० वि०) अविद्याधरो विद्याधरोभूतः । स्थान था । ऐतिहासिकों और पर्यटकोंने इसका भिन्न जो विद्याधर हुमा हो । (कथास० २५।२६२) भिन्न नाम रखा है। किसी समय विद्यानगर कहने से विद्याधरेन्द्र (स०पू०)१ राजभेद, विद्याधर राजा । उक नामानुसार दाक्षिणात्यका एक सुविशाल साम्राज्य (राजतर० १।११८) २ कपीन्द्र, जाम्बुवान् । समझा जाता था। इस विद्यानगरका प्राचीन नाम . (महाभारत) विजयनगर था। ११५०ई०में तुगभद्राके दहिने किनारे विद्याधरेश्वर ( स०ए०) पुराणानुसार एक शिवलिङ्गका राजा विजयध्वजने अपने नाम पर यह नगरो वसाई । नाम। (कूर्मपुराण) विजयनगरके भिन्न भिन्न नामोंको ले कर बहुत-सी विद्याधाम मुनिशिष्य-एक कपि। इन्होंने वर्णन उपदेश-1 फहानियां प्रचलित हैं। इसका दूसरा नाम "विद्याजन साहसोवृत्ति नामक एक प्रग्य लिखा है। । या विद्याजनु" भी है। नुनिज (Nunia)का कहना है, कि विद्याधार । स० पु०) पण्डित, विद्वान्। राजा देवराय एक दिन तुगभद्रा नदीके अरण्यमय प्रदेशमें (मालतीमा ५२)/ शिकार खेलने गये । इस समय जहां प्राचीन विजयनगर- विद्याधारिन् ( स० पु०) एक वृत्तका नाम । इसके का खंडहर पड़ा हुआ है, उस समय वहां घोर जंगल था। प्रत्येक चरणमे चार मगण होते हैं। उन्होंने यहां आ कर एक विचित्र घटना देखो। देव. विद्याधिदेवता ( स० स्त्री.) यियायाः अधिदेवता। राय शिकारमें जो सब कुत्ते ले गये थे, उनके छोटे छोटे विद्याकी अधिष्ठात्री देवी, सरस्वती।' खरगोश द्वारा मारे जाने पर ये बड़े विस्मित हुए। यह 'विद्याधिप ( स० पु० ) १ विद्या सिखानेवाला, गुरु ।। दृश्य देख कर जब ये लौट रहे थे, तब उन्होंने तुङ्गभद्राक २ विद्वान्, पण्डित। . . : :: किनारे एक तपस्वीको देखा । उनको देख राजाने उनस पिधाधिपति-१ कवि रलोकरको उपाधि । क्षेमेन्द्रस्त यह अद्भत और मलौकिक विवरण कह सुनाया। इनका