पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/४३८

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जनु" रखा। .... विद्यानगरं नाम माधवाचार्य था। माधयाचार्य ने कहा-'इस अरण्य, नगर और विद्यानगर यह विजयनगरका ही दूसरा नाम में ऐमा स्थान कहां है, क्या हमें दिवा सकते हो ?' राजा है। १३३६ ई०में सुविख्यात महाप्रभावशालो सन्यासी .. देवराय माधवाचार्यको अपने साथ ले उस स्थान पर माधवाचार्य विद्यारण्यने प्राचीन विजयनगरके ध्वंसाव. . पहुंचे। भाचार्यने कहा 'राजा यह स्थान बड़ा रमणीय शेष पर पुनः नगर प्रतिष्टित किया। माधयाचार्य विद्या है। तुम यहीं अपना राजप्रासाद और दुर्ग बनायो। रण्य संक्षेपतः 'विद्यारण्य' नामले परिचित थे। उन्होके । अगर तुम ऐसा करोगे, तो तुम्हारे वलयोर्यके प्रभाव और नामानुसार प्राचीन विजयनगर 'विद्यानगर' नामसे मभिः वभवसे तुम्हारी जय जकर होगी।' देवरायने इनको हित हुआ। स्मृति के लिये इस स्थानका नाम 'विद्याजन' या "विदया. विद्यानगरका आधुनिक परिचय । ___ आज फल यह विजयनगर नहीं है, न यह जगद्वि- फेरिस्ताके अभिमतसे इस नगरका नाम 'विद्या- | स्यात विद्यानगर दी है। किन्तु उस प्राचीन महासमृद्धिः नगर' है। फेरिस्ताका कहना है, कि १३४४ ई० वर- शालो नगरका चिह्न आज भी विलुप्त नहीं हुआ है। हाल के निकटयत्ती स्थानवासी गादरदेवके पुत्र कृष्णः हम विजयनगर या विद्यानगरका इतिहास लिखने- नायक कार्णाटिकराज चेलनदेवके पास चुपकेसे गये और के पहले इसके वर्तमान नाम और ' अवस्थाका थोड़ा उनसे कहा 'हमने सुना है, कि दाक्षिणात्यमें मुसलमानोंने परिचय देते हैं। मन्द्राजके वेलरी जिले में अभो हाम्रो धीरे धीरे अपना प्रभाव फैला लिया है, बहुतैरे मुसलमान | नामक जो खण्डहरयुक्त एक नगर देखने में आता है, यह यहां जा कर रस रहे हैं। हिन्दू साम्राज्यको तहस । विद्यानगरका स्मृतिचिह्रस्वरूप शाज भी विद्यमान है। नहस करना ही उनका उद्देश्य है , इसलिये जल्द उन्हें | हाम्पी तुङ्गभद्रा नदीके तट पर घेलरोसे ३६ मील दूर मिताड़ित कर देना नितान्त भावश्यक है।' बेलनदेवने | उत्तर-पश्चिममें पड़ता है। इस ध्वंसावशेष भूपएडका यह सुनते हो देशके प्रधान प्रधान मनुष्योंको बुलाया | परिमाण ६ वर्गमोल है। मान भी यहां एक सालाना तथा पहाड़ी प्रदेश निरापत्म्धान पर राजधानी म्या मेला लगता है। . अगी इसपेट नगरमें एक रेलवे स्टेशन पित करनेका प्रस्ताव किया। कृष्णनायकने कहा 'यदि | हो गया है। इस स्टेशनसे हाम्पी, मोल दूर है । कमल- यह परामर्श स्थिर हो, कि हिन्दूमान ही मुसलमानोंके पुर नामक एक सुप्रसिद्ध स्थान इस हाम्पी. नगरके । विरुद्ध खड़े होंगे तय मैं सेनानायकका भार ग्रहण करने अन्तर्गत है। तुगभद्राके दहिने किनारेसे कमलपुर तीन का प्रस्तुत हु।' प्रस्ताय कायम रह गया। घेलनदेवने मील दूर पर अवस्थित है। कमलपुरमें लोहे और चीनी- अपने राज्यके सीमान्त प्रदेशमें अपने पुत्र 'विजा' के , का कारस्नाना है। यहां प्राचीन बहुतसे देवमन्दिरीका नाम पर 'विजानगर' स्थापित किया। किसी किसी भग्नावशेष आज भी देख पड़ता है। नरपति रामाभोंके . का कहना है, कि फेरिस्ताकी यह उक्ति , अयोक्तिक गौर समय हाम्पो नगरो वड़ो समृद्धिशाली थो। नरपति .. पलीक है। विजयनगरके स्थापन के विषयमें फैरिस्ता. राजाभोंने हाम्पीमें यदुतसे सुन्दर सुन्दर देयमन्दिर वन- में जो लिग्ना है, वह तारीख और विवरण रायबंशावली वाये थे। भ्रमणकारिंगण उन मन्दिरों का ध्वंसावशेष तथा यिद्वयारण्यके शासनमें वर्णित विवरणके अभी भी देखने आते हैं। उनमेंसे विरूपाक्ष,' राम. साथ मेल नहीं खाता । पुर्तगीज पर्याटक विजयनगरको स्वामी, विठोपा गौर नरसिंहस्सामोफे मन्दिर सबसे श्रेष्ठ विजनगा (Bisnaga) कहते थे। इटलीफे पर्याटकोंने भी | हैं। इनके गलाया भनेक गन्दिर और मण्डप टूट फूट यह नगर देखा था। उन्होंने इसका नाम विजेनगेलियो । गये है। विपाक्ष मन्दिरमें पद्मायनीश्वर महादेव विराज.. (Bczengalia) रखा था। कनादी भाषाके प्राचीन ताम्र- मान हैं। कोई कोई कहते हैं, कि यह मन्दिर माधयाचार्य - . शामना यह स्थान पहले भानगुडो कहलाता था। विद्यारण्य स्वामीके समयका बना हुमा है। उनका उपा... संस्कृतमें यह हस्तिनायती नामसे प्रसिद्ध था। यिचेन- सनाधान थोर समाधि आज भी मौजूद है । यहां उनके ।