पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/४३९

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विद्यानगर शिष्य लोग शङ्कराचारी नामसे पुकारे जाते हैं। ये इस कपड़ा बड़ा सुन्दर और महीन तैयार होता था। अरयो - विरूपाक्ष-मन्दिर ---- निम्सेमे रहते हैं। गोपुर, शिवा अन्यके अनुवादक मुसो रेनो इस रहमी साम्राज्यको लय और सामनेका मण्डप बहुत बड़ा और प्रेनाइट दाक्षिणात्यका सुप्रसिद्ध विजयनगर या विजयपुर पता पत्थरका बना हुआ है। इसके सामनेको तिप्पकुल पुष्क गये है। रिणी चारों ओर प्रनाइट. पत्थरसे बंधी हुई है। यहां अव विजयनगरके संस्थापक विजयध्वजको वशा. धार्षिक रथोत्सव होता है। पलीके सम्बन्धमें थोड़ी आलोचना की जाती है। ____रामसामोका मन्दिर तुङ्गभद्राके तट पर अवस्थित दाक्षिणात्यमें तुङ्गभद्रा नदीके उत्तरी तट पर माज कल है। इसके दूसरे किनारे ऋष्यमुख पर्णत है । रामस्वामो जो मानगुडो राज्य विद्यमान है, यही प्राचीन किकि- मन्दिरसे माघ मील दूर तुङ्गभद्राके दाहिने किनारे सुप्रसिद्ध Fध्या कहलाता है। शिलालिपि पढ़नेसे मालूम होता विठोबा मन्दिर विराजमान है । इसको गटन और कार है, कि चन्द्रवंशीय नन्दमहाराज १०१४ ई०से ले कर कार्य बहुत सुन्दर है । तालिकोटा-युद्ध के बाद यवन । १०७६ ई० तक मानगुडीके राजसिंहासन पर प्रतिष्ठित सेनाओंने विजयनगर ध्वंस कर यह देयालय लूट लिया थे । वे अपनो जन्मभूमि पाहिदेशसे दाक्षिणात्यमें था। उन्होंने घनके लोभसे मूलस्थानसे श्रीमूर्सि दूरमें भ्रमण करनेके लिये भाये और विधाता नियतिक्रमसे फेक कर मन्दिरको मेज तक तहस नहस कर डाली थी। किष्किन्ध्याम अपने पराक्रमसे मानगुण्डो राजय शकी 'माज कल विठ्ठलदेवको श्रीमूर्ति दीग्द्र नहीं पड़ती।। एक अभिनव भित्ति कायम की। उनके तिरोभायके मुसलमानोंके जुलासे श्रीमूर्ति अन्तहित हो गई है। दाद १०७६ ई०में चालुक्य महाराज राजगद्दी पर बैठे और प्राचीनकालको गौरवकीर्तिके शेष चिहस्वरूंप दुर्गका | १११७ ई० तक उन्होंने शासनकाय चलाया। चालुषयः भग्नावशेष आज भी मौजूद है। दुर्गके अन्दर राजभवनका महाराजके तीन पुत्र हुप-विजलराज, विजयध्वज और भग्नावशेष, भग्न देवालय, विचारालय, इस्तिशाला और विष्णुवर्द्धन । विजलरायने कल्याणपुर जा कर उष्ट्रशालाके सिवाय और कुछ भी दिखाई नहीं पड़ता।। एक स्वतन्त्र राज्य कायम किया । सबसे छोटे विष्णु- पह विशाल समृद्धिशालिनी नगरी अभी महाश्मशान में | वर्द्धनकी कोई वात इतिहासमें नहीं मिलती। मंझले परिगणित हो गई है। विजयध्वज सचमुच विश्वविथ तकीर्ति स्वनामधन्य विद्यानगरका पूर्व इतिहास। . महापुरुष थे। इन्होंने ही पुण्यतोया तुगभद्राके दाहिने - पूर्व ही कह भाये हैं, कि १५५० ई० में नृपति विजयः। किनारे अपने नाम पर सम्भवतः ११५० ई में विजयनगर ध्यजने विजयनगर बसाया। किन्तु १९५० ई० पहले नामक जगद्विख्यात नगर संस्थापन किया। पे १११७ हो इस प्रदेशको समृद्धिशालिताका परिचय मिलता है। ई०में मानगुण्डीके पैतृक राजसिंहासन पर बैठे थे। वों सदीके प्रारम्भमें सलिमान नामक एक मुसलमान विजयनगर वसानेके वाद ५ वर्ष तक ये जोयित रहे। पनिने सबसे पहले यहाँका वृत्तान्त प्रकाशित किया। इनके परलोक सिधारने पर ११५५ ई० में इनके पुत्र अनु. ये वसोरा नामक स्थानमें रहते थे। सलिमानने वल. चेम विजयनगरके सिंहासन पर बैठे । १९७६ में हरा राजाका नाम उल्लेख किया है। इनकी मृत्यु हुई। इसके बाद इनके पुल नरसिंह देव. ___ सलिमानने और भी कहा है, कि थाफेक राजाका रायने उसो वर्ष सिंहासन पर बैठ कर ६७ वर्ष तक राउप. राज्य उतना बड़ा नहीं था। यहांको स्त्रियों का शरीर भोग किया। ये बहुत दिनों तक बिजयनगरके सिंहा. जैसा सुन्दर था पैसा 'भारतमें और कहीं भी नहीं। सन पर अधिष्ठित रहे, इसलिये मुसलमान लोग इनके इस थाफेक राज्यके मलाया रहमी नामका और भो एक | नामके साथ उक राज्यका सम्बन्ध दृढ़ करने के लिये राज्य है। यहांके राजाको काफी संना घो। वे पचास विजयनगरको 'नरसिंह' कहा करते थे। १२४६ ई०में ये हजार हाधो ले कर लड़ाई में जाते थे। इस देशमें सूती' फरालकालफे मुसमें पतित हुए। उसी साल रामदेवराय Vol. xxi. .