पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/४४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

वाजेय-बाटी : वानेय (सं० वि०) यत्र (सल्यादिभ्यो दम्।. पा रा८०)। २ ब्राह्मणी माता और वर्णब्रामण.या कर्महीन घालणसे . इति ढम् । वनका अदूरभव, वन पतनके स्थान पर वास उत्पन्न एक संकर जाति । (मनु १०।२१) ... करनेवाला। ___... - .. चारमूल (स० त्रि०) घटमूल-सम्बन्धी। ...' याञ्छनीय (सं० लि०) १ चाहनेवाला । २ जिसकी इच्छा वाटर (सक्लो ) पटरैः कृतं (रुद्राभमरपटरपादपादम्।। हो। | पा ४।३.११६) इति अण् । बटर कत्र्त फ कृत, चोर पा वाञ्छा (सं० स्रो०) वाच्छनमिति वाछि इच्छायां गुरोश्चेत्या शठ फर्तक कृत। टाप् । आत्मवृत्तिगुणविशेष, चाह । पर्शय-इच्छा, | वाटर (1० पु० ) पानी। 'कान्छा, स्पृहा, हा, तृट्, लिप्सा, मनोरथ, काम, अभि- वाटरप्रूफ ( म० वि०) जिस पर पानीका प्रभाव न पड़े, लास, तर्प, नाकान्छा, कान्ति, अनचय, दोहद, अभिलाप, जो पानीमें न भीग सके। . सफ, रुचि, मति, दोहल, छन्द । सिद्धान्तमुक्तावलोके वाटर यपर्स ( म० पु०) १ नगरमें पानी पहुंचानेका अनुसार याञ्छा नामक आत्मवृत्ति दो प्रकारको होतो विभाग, पानी पहुंचानकी फलफा कार्यालय। २ पानी है। एक उपायविषयिणी, दूसरी फलविषयिणी। फल | पहुंचानेको कल, जलकल। ...' का अर्थ है-सुखकी प्राप्ति और दुःखका न होना । 'दुःखं | घाटरशूट ( म० स्त्री० ) पानी में कूद कर तैरनेकी फ्रीड़ा, ‘माभूत् सुखं मे भूयात्' हमें दुःख न हो एवं सुख हो, | जलकोड़ा । ऐसी फलविषयिणी जो यात्मवृत्ति है, उसे फलविषयिणी चारशृङ्खला (सं० स्त्री०) घाटरोधिका डाला शाफ- .. वाञ्छा कहते हैं। इस फलेच्छाफे प्रति फलज्ञान, पार्थिवादिवत् मध्यपदलोपः । पथरोधक शृङ्खला । ' . ही कारण है एवं उपायेच्छाके प्रति इएसाधनताशान | पाटिकपि (सं० पु०) वटाकोरपत्यं पुमान् घटाकु (पाह या- कारण है, इष्टसाधनताशान न होनेसे वाञ्छा नहीं हो दिभ्यरन । पा ४११६६ ) इति इम् । वटाकुका गोत्रा. सकती । इटसाधनताज्ञान अर्थात् मेरा यह कार्य अच्छा| पत्य । होगा यह शान न होनेसे कार्यको प्रवृत्ति हो ही नहीं | वाटिका (सं० स्त्री० ) घट्यते वेष्ट्यते प्राचीरादिभिरिति सकती। हर कामके पहले ही इएसाधनताशान हुआ | वट घेटने संज्ञायामिति ण्वुल टाप, अत इत्वं । १ पास्तु, करता है। वाटो, इमारत । . २ धाग, बगीचा। ३ हिंगुपनी । चाञ्छित (सं० वि०) वाञ्छ-क्त । अभिलषित, इच्छित, चाहा| वाटा (सं० स्त्री०) वट्यते येष्ट्यते इति वट वेटने धम्, गोरादित्यात डीप। १ वस्यालक, वीजयद। २ वस्नु, हुआ। चाञ्छिन् (सं० लि०) वाञ्छनीय वाञ्छ णिनि । वाञ्छनीय, इमारत, घर। भवन-निग्माणके सम्बन्ध शास्त्रोंमें विशेष विशेष अमीट। विधान है, उनके प्रति विशेष ध्यान रखते हुए निर्माण । याञ्छिनी (सं० स्त्री०) याञ्छनीया नारी । पर्याय-लंजिका, . फाना चाहिये। कारण जिस स्धान पर पास करना । फलतूलिका। हो, उस स्थानके शुभाशुभके प्रति ध्यान रखना सर्वतो. याट ( स० पु०) यट्यते वेष्ट्यते इति घट-घन। १ मार्ग, - भाषसे विधेय. है। पहले वाटीका स्थान निरूपण करके रास्ता। २ वास्तु, इमारत । ३ मण्डप। वटस्येदमिति शल्योद्धारप्रणालोफे अनुसार उस बाटोका प्रालयोहार पट-मण ।- (त्रि०) ४ वट-सम्बन्धी । (को०) ५.गरएड. करें। शल्पोद्धार किये विना वाटो तैयार नहीं करना याटक (स' पु०) गृह, घर ! : ... ... . . चाहिये। देवछ योनियम भूमि खोद कर शल्यका पारवान (संपु०.) १ एक जनपद । यह काश्मीरके., अनुसन्धान करें। यदि उस घाटीमें पुरप परिमिति मृतकोणमें कहा गया है। नकुलके दिग्विजयमें इसे भूमि चोद कर मो शल्य नहीं पाया जाय, तो उस पाटीमें पश्चिममें और गत्रयपुराणमें उत्तर दिशामें लिखा है। मिट्टीका घर बनाये। उसके नीचे शल्य रहने पर भी