पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/४४१

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विधानगर विद्यारण्य स्वामीने विद्यानगर स्थापित कर दश | करते थे। फेरिस्ता पढ़नेसे जाना जाता है, कि हरिहरने वर्ष तक राज्यशासन किया। इसके बाद ये सङ्गमराज- हिन्दू राजाओं के साथ मिल कर दिल्ली सुलतानको वंशको सिंहासन पर प्रतिष्ठित कर माप मन्त्री वन राज | परास्त किया था। इस युद्ध में जय लाम पर वरङ्गल, पार्य चलाने लगे। यद्यपि विदयारण्य स्यामीने दश घर्ष | देवगिरि, होयगल, नाना आदि दक्षिण अञ्चलके राजाओं तक स्वयं विद्यानगरका शासन किया, तो भी घे राजा के शासित बहुतसे प्रदेश उनके कटने में आ गये। वा महाराज नामसे पुकारे न गये। सङ्गमराज प्रथम हरिहर एक अनुशासन पढ़नेसे पता चलता है, कि हरिहर नवस्थापित विद्यानगरके प्रथम राजा हुए। हरिहरके ने नागरखएड तक अपना शासनप्रभाव विस्तार किया चार भाई थे-कम्प, युक, मारप्प और मुद्दप्प । ये सभी | था। वर्तमान महिसुरका उत्तर पश्चिम अंश ही नागर- भाई समरपट और अति विश्वासी थे। हरिहरने इन सवों | खण्ड नामसे प्रसिद्ध है। पर राज्यका दायित्वपूर्ण कार्यभार सौंपा था। इससे एक | ___ "राजवंश" नामक विजयनगरफी राजवंशावलीके • ओर राजकार्यकी जैसी सुशृङ्खला और सुपन्दोवस्त हुआ, विवरणसे जाना जाता है, कि हरिहरने १३३६से ले कर दूसरी ओर उनके भाई लोग भी वैसी ही राज्यको सभी | १३५४ ई. तक राज्य किया। किसी औरका कहना है, अवस्थाएं जाननेकी सुविधा समझ गये। विद्यानगरके कि १३५०३० पर्यन्त हो उनका राजत्यकाल था। इसके इतिहासमें प्रथम का नाम घिरप्रसिद्ध है। समरविद्या भीतर उन्होंने राज्य यढ़ानेके लिये यथेष्ट चेटा को थी। में वुमका असाधारण पाण्डित्य था। ये समर-विभागः! १३४४ ६०में समूचे दाक्षिणात्यसे उन्होंने मुसलमानोंको के प्रधान कर्मचारी पद पर नियुक्त हुए। कड़ापा और भगा दिया था। कोई कोई कहते हैं, कि रिहरका नेल्लुर अञ्चलमें कम्प वन्दोवस्त और जमीन जमावृद्धिका दूमरा नाम पुकार कार्यभार इनके हाथ पडा। मारप कदम्य राजाओं का सुकराय। प्रदेश अपने दखलमें कर महिसुरके पश्चिमके चन्द्रगिरि हरिहरको मृत्युके बाद राजसिंहासन पर पान बैठे, मञ्चल में अवस्थान करके यहाँका शासन करने लगे। हरि इसको ले कर विस्तर मतभेद देखा जाता है। हरि- हरके एक पुत्र हुमा जिसका नाम पड़ा सोगन, किन्तु दरके एकलौते पुव उनके जीते ही मृत्युमुवमें पतित हरिहरके जीते हो .सोमनकी मृत्यु हो गई और घुक्क ही हुए थे। हरिहरके मरने पर उनको चार सहोदर भाई युवराजके पद पर अभिषिक्त हुए। । मौजूद थे, उनमें से कम्प ही बड़े थे। मि० स्यूषेलका किन्तु राजगुरू माधवाचार्य विद्यारण्यको विना सलाह कहना है, कि हरिहरके परलोकयासो होने पर फरप ही लिये इस विशाल साम्राज्यका एक तृण मो स्थानान्त- राजपद पर प्रतिष्ठित दुप थे. किन्तु असाधारण घोर रित नहीं होता था। उनके परामर्शसे हो पांचों भाई, युमने उन्हें पिताड़ित कर अपने प्रभाव हो सिंहासन पांचों पाण्डवके समान राज-कार्य चलाते थे। शृङ्गेरी-. अधिकार कर लिया। इस विषय बहुत तर्क वितर्क है । मठके साथ विद्यानगरका सम्बन्ध बड़ा घनिष्ट हो । फलतः हरिहरके घाद चुक हो विद्यानगरको शासन- गया था। शृङ्गरोडका एक अनुशासन पढ़नेसे मालूम कर्ता हुए थे। होता है, कि पांचों भाई गौर लड़के के साथ हरिहरने बुकगय ठोक कब सिंहासन पर बैठे, यह ले कर शृङ्खरोमठके गुरु श्रीपाद सशिष्य भारतीतीर्थको नौ गांव भी मतभेद है। किसोका कहना है, कि १३५० ६०में, फिर प्रदान किये । हरिहरने शृङ्गरोमटके निष्ट हरिहरपुर, कोई कहते हैं, कि १३५५ ६०में वे राजगद्दी पर बैठे थे। नामक एक पृहन् पल्ली स्थापन कर केशवम नामक एक | युमके असाधारण प्रताप था-उनके प्रभावले समूचा ब्राह्मणको उक्त गांव दान कर दिया । हरिहरके समय महि- दाक्षिणात्य कांपता रहता था। एक ताम्रशासनमें लिखा सुरका अनेकन विद्यानगरके अन्तभुक्त हुमा । हरि- है, कि चुमके शासनकालमें वसुमतो प्रचुर मास्यमालिनी • हरको हो दूसरे देशो सता सत्राट् समझ कर मान्य | यो, प्रजा को किसी प्रकारका कयन था, समानमें