पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/४४४

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विद्यानगर पिजयराय श्म। बड़े चिन्तित हुए । गुलबर्गके मुसलमानों का प्रभाव पारे । देवरायको अनेक पुण्यकोलिफे चिह्न ऐतिहासिको ने धीरे बढ़ता देख उनके मनमें आतङ्कका सञ्चार हुशा। " संप्रा किये हैं। देवरायफे पांच पुत्र हुए, किन्तु वे चार उन्होंने अपने मन्त्री, सभासद और सभापण्डितको ' . पुत्रको छोड़ परलोक सिधारे। छोटे लड़के को फैसे बुला कर कहा, "मेरे राज्यका परिमाण पाह्मनो राज्यफे दुए फाजीने मारा, वह विवरण पहले ही लिख माया परिमाणसे कहीं अधिक है । मेरी सेना, धनबल और ". है। उनको खोका नाम था पम्पादेवी। पम्पाक गर्भ युद्धका सामान मुसलमानोंसे ज्यादा ही होगा, कम नहीं, से विजयराय, मास्कर, मलन, हरिहर आदि पांच पुत्र किन्तु आश्चर्यका विषय है, कि फिर भी लड़ाई में उत्पन्न हुए। विजयरायने १४४२ ई०से १४४३ ई. तक मुसलमानोंको ही जीत हो रही है। इसका कारण सिर्फ एक वर्ष राज्यभोग किया। इससे इनके समय | फ्या" उत्तरमें किसीने कहा, कि मुसलमानों के घुड़- कोई विशेष घटना न घटो। सधार और घोड़े बहुत अच्छे है, हम लोगों के पैसे नहीं । देवराय २य । हैं। किसीने कहा, कि सुलतानके तीरन्दाज बड़े सिद्धः . पिजयरायको पत्नीका नाम नारायणाम्बिका था। हस्त हैं, हम लोगोंके पैसे तीरन्दाज नहीं। नारायणाम्बिकाको गर्भसे विजयरायके दो पुत्र तथा एक ___ सुचतुर देवराय अपने सेनावलको कमजोरी देव .. कन्या जनो। इनके ज्येष्ठ पुत्र का नाम देवराय था। सैन्यविभागमे मुसलमानी सेना भी करने लगे। उन इन्होंने १४५३से १४४६ ई० तफ राज्य किया। देवरायके लोगों को जागोर मिली, उपासनाके लिये मसजिद छोटे भाई पार्वतोराय १४२५ ई०में मृत्युमुखमें पतित धनवा दी गई तथा राज्य भरमें दिढोरा पिटया दिया हुए। उनकी बहन हरिमादेवीके साथ सलुवतिप्प राजा | गया, कि मुसलमानों के प्रति कोई भी अत्याचार न कर का विवाह हुआ। सकेगा। जिस समय द्वितीय देवरायने राज्यभार अपने हाथमें वे अपने सिंहासनके अप्रभाग पर मति सुसजित लिया, उस समय सारा दाक्षिणात्य विद्यानगरके राजाके पक काठके पकसमें कुरानसरीफ रखते थे। उनका मातहत हो गया था। विजयनगरके राजघंश जाति- उद्देश था, कि मुसलमान अपने धर्मानुसार उनके सामने - यणेनिचिशेपसे प्रजापालन करते थे। उन लोगोंके | ईश्वरोपासना कर सके। उन्होंने ममलमानो के लिये, ' शासनसे शिल्प साहित्य भादिकी खूब ही उन्नति हुई | जो सब मसजिदे धनया दी थी, आज भी उन सय मस . . थी। देवरायके चाचा बड़े प्रभावशाली थे। उन्होंने जिदोका भग्नावशेष हाम्पा या हस्तिनायती नगरी महामण्डलेश्वर दरिहर राय नामकी स्थाति पाई थी। दिखाई देता है। केवल देवराय ही नहीं, विद्या- देवराय जय नायालिग थे, तर ये ही शासनकार्यकी देख- | नगरके रायवंश धर्ममतके सम्बन्ध में उदार थे। उन रेय किया करते थे। बहुतसे ताम्रशासन और शिला- | लोगो के यिपुर राज्यमें हिन्द मुसलमान मोर जैन गादि लिपिमें इनके दानादिका उल्लेख मिलता है। याहुतसे लोग रहते थे । ये लोग प्रत्येक धर्मसम्प्रदायका फेरिस्ता देवराय के साथ मुसलमान पति मला | भादर फरते थे तथा समी धर्मों की मर्यादा रखते थे। उद्दीन के भाई मम्मद का एक युद्ध-वृत्तान्त वर्णित है। देवराय (२य ) राजनीतिमें पड़े मुपण्डित थे। फेरिस्ताका कहना है, कि देवरा य अलाउद्दोगको सालानापारस्यदून अब्दुल रजाको लिखित विवरणसे जाना फर देने धे । पाँच वर्ग तक उन्होंने कर नहीं दिया। पोछे जाता है, कि देवरायका भाई देयराय और उनके दलयल वे में कार चले गये। इस पर मनाउदोन बड़े गिड़े को मार कर स्वयं सिंहासन पाने के लिये पडयन्त्र कर और देवरा यका राज्य तहस नहस कर साला! देवराय रदा ा। एक दिन उसके मागि सभासदों के साथ देय ने आने वीपहायो, काफी रकम तथा दो सौ नरांकी रायको अपने यहां निमन्त्रण किया । मौका देख कर उस . उपदाकनमें दो। १४४२६०में देवराय अपनो मयस्था पर | दुटने टेयरायके बहुतसे सभासदों को मार डाला और ..