पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/४४६

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२७६ विद्यानगर दण्डनायक इनके प्रधान मंत्री थे। ये लोकानुरक्त राजा । शिलालिपिपों द्वारा जाना जाता है, कि विरूपाक्ष रायने थे। १४६४ ई० में इनके एक पुत्ररत्नने जन्मप्रहण किया। १४७८ ई० तक राज्यशासन किया। विरूपाक्ष ही महम इस पुनके सम्बधमे कुछ विशेष पाते नदा जानी जाती। पंशीय राजाओं में अन्तिम राजा पे। इसके बाद एक मल्लिकार्जुन स्वधर्मनिरत थे, इनका दान भो अतुलनीय | | दूसरे प्रभावशाली पुरुषने विद्यानगरके राजसिंहासन था। एपबशावली में मल्लिकार्जुनको जगह रामचन्द्र पर अधिकार जमाया। राषका नाम देखा जाता है। सम्भवतः रामचंद्राय सङ्गमराजवंशको उत्पति । इन्ही' मल्लिकार्जुनका नामान्तर है। द्वितीय देवरायने अभी हमने विद्यानगर जिन सङ्गम-राजवंश दो खोका पाणिप्रहण किया था। पहली स्त्री पल्लवा राजागों के नाम और शासनको यात लिखी है, ये लोग . दे याफे गर्भने मल्लिकार्जुन और दूसरी सिंहलदेवीसे किस वंशके थे, यह ले कर भनेक मतभेद दिखाई देता है। . विरूपाक्ष उत्पन्न हुए थे। कोई कोई कहते हैं, कि लोग देवगिरिफ :यादववंश- विरूपाक्ष 1 सम्भूत थे, फिर कोई वनवासीके कदम्पयंशसे हो इनको मल्लिकार्जुनके स्वर्गवासी होने पर १४६६से १४७८ ई० उत्पत्ति पतलाते हैं। एक दूसरे सम्प्रदायने एफ भगत । तक विरूपाक्षने विद्यानगरका शासनभार प्रहण किया। माख्यान द्वारा इनका यशनिर्णय कर रखा है। ये लोग सभी इस सम्बन्धमें पारद शिलालिपियां पाई गई हैं। कहते हैं, कि वरङ्गल राजाओं के मेपपालक दो अध्यक्ष मचिलकार्जुन और विरूपाक्षके राज्यशासन सम्बन्ध । जय भानगुण्डो प्रामसे दक्षिण-पश्चिमको मोर जा रहे कोई विशेष ऐतिहासिक घटना नहीं जानी जाती। इन थे, तब माधवानार्याने उन पर असीम कृपा दरसाई थी। दोननि कोन काम किया था, इनके समय प्रजाको अवस्था उन्होंने अपने नाम पर विधानगर वसा कर हुफक या ही फैली थी, पे लोग किस प्रकार राज्य करते थे, इनके हरिहरको विद्यानगरफे सिंहासन पर ममिपित किया। अधीन कौन कौन राजा किस किस प्रदेशका शासन । किन्तु अभी जो एक शिलालिपि पाई गई है, उससे मालम फरते थे, किस प्रकार इन दोनोंकी मृत्यु तथा किस होता है, कि यादयव शसे ही सङ्गमराजवंशका आयिः । प्रकार इनके वंशके बदले नये ध्यक्तिने एकाएक राज्य में यि हुमा है। प्रयेश कर राजसिंहासन पर अधिकार जमाया, इन सब नरसिंहराजवंश घटनामोका आज तक पता नहीं चला है। आज भी उन विरूपाक्षको मृत्युके बाद सलुप नरसिंह विद्या- सब घटनाओं के ऊपर किसी प्रकारका ऐतिहासिक प्रकाश | नगरके सिंहासन पर बैठे। इन नरसिंहके साथ सलग । नहीं पड़ा है। १४६२ ६०में महम्मदशाह वामनी राजवशका कोई भी सम्बन्ध न था। नरसिंहने आपने . ' के येलगाय छीन लेने पर भी विरूपासने दक्षिणको ओर वाहुबलसे अनधिकार स्थानमें अपना प्रभाव फैला कर . मसलोपत्तन तक अपना राज्य फैलाया तथा युसुफ विद्यानगरके राजसिंहासन पर अधिकार जमाया । आदिलशाहको पानी राज्यके विरुद्ध साहाय्य पहुंचाया ऐतिहासिकों ने नरसिंदफे 'पूर्व पुरुषों का नामोल्लेख था। किया है। गरसिंहफे पितामहका नाम सिम्म, पिता । एक शिलालिपिमें स्पष्ट लिखा है, कि महाराजाधिराज महोका नाम देवको गौर पिताका नामघर और राजा परमेश्वर धीयार प्रताप विरूपाक्ष महाराजके शासन माताका नाम बुपकामा था। नरसिंह गौर मोदी कालमें राज्य भरमें शान्ति मौर समृद्धि विराजती थी। गाम है', नरेश और नरेश अवनीलाल | इनकी दो निया इस समय राजतन्त्रो नायकने भमर नामा सम्राटके । यो तिपाजोदेवी और नागलइयो या नागाम्पिका । कोई भादेशसे अप्रहार अमृतान्तपुरमें प्रसन्नफेशव देवमन्दिर कोई करते है, कि नागाधिका नर्सको थी । १४७८से के निकट एक गोपुर वनवाया था। १४७८ ई० में यह १४८७६० तक नरसिंहने राज्यभोग किया। इसके बाद शिलालिपि लिखी गई। इस प्रकार मार मी मितनो। उनके प्रथम पुन योर नरसिंहेन्द्र १४८७से १५०८ ६० तक