पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/४५०

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नाम २८० विधानगर म्योकार करनेको बाध्य हुए। तिगमलको निशिता , येटपति व गयालु १५८५-१६२४ दिनां सून परायोके मधुरा गोलकुण्डा मुलतानपं. .. चिरमय गयालु (पल्लूर राजधानी में) १६१५-१६२३ / हाथ आया। रामदेय रायालु १६२४-१६३१ - इसके याद नरसिंह महिसुर राज्यसे भाग्यपरीक्षा घेङ्कट रायालु १६३२-१६४३ लिपे म्वदेश लौट गाये । उन्होंने फिर सैन्यसनद का ... धीरङ्गरायालु १६४४-१६५४ कुछ प्रदेशों पर अधिकार जमाया तथा गोलकुएरा इम प्रध इमफे बादफे गौर किसी भी शासन सेनानायकको युद्ध में परास्त कर और भी कई प्रदेशों का कर्ताका नाम नहीं लिया है। मधुराके राजा तिरुमल के उद्धार किया। नरसिंहके पराफमसे दाक्षिणात्य पुनः पदय से किस प्रकार विजयनगर राज्य विलुप्त हुमा हिन्दूराजयके गभ्युदयकी सम्भायना हो उठी। पित उमका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है-तिगमल नायक ईपरायण निकमलको कुटिल युद्धिमे हिंदूराजका गाशा ।। विजयनगरके राजा नरसिंह विद्रोही हो उठे। उम/ रपी सूर्य देखते देखते मेघाच्छन्न हो गया। तिमाल.. समय विधानगरके राजाओ की राजधानी पल्लूर में फे आमन्त्रणसे गोलकुण्डाके सुलतानने महिसुरके सेना थो। जिझी, नायर, मधुरा और महिसुरफे राजगण पतिकी अनुपस्थिति महिसुरराम पर बाममण कर उस समय भी विजयनगरफे राजाको कर देते थे। दिया। उसके फलसे विजयनगरका हिंदूराज्य सदाफे... घोच घोघमें गनेक प्रकारके उपढीजन द्वारा राजाका | लिये विध्यस्त हो गया। सच पूछिये, तो तिगमल हो मम्मान भी किया जाता था। किंतु विद्रोदी तिरमल विजयनगर-ध्वंसके मुख्य कारण थे। इससे स्वदेश विजयनगरको घश्यना स्वीकार करनेको प्रस्तुत न थे। और स्वजातिद्रोही तिरुमलको क्षतिक सिधा कुछ भी मरसिंह रायने तिरमल पर शासन करने के लिये सेना | लाभ नहीं हुआ। तिसमल इसके बाद सुलतान द्वारा इकट्ठी की। तिरुमलको जब याद यात मालूम हुई, तय । विशेषरूपसे उत्पीडित हुए थे। उन्होंने जिजिराजके साथ मेल कर लिया। दौहित्रवाश। निरुपल पड़े दो कुटिल थे। उन्होंने नरसिंहरायको मि० स्यूरोलके मतसे पीछे घेङ्कटपतिसे गर्थात् १७६३ । परास्त करनेके लिये गोलकृएडा के सुलतानके साथ ई०सं याद तिगमल सका गाम देखने, भाता है। मलणा पो । नरसिंह जय मधुरामे तिरमल पर भा. १८०१ ई०को १२यो जुलाईको मि० मनरोने गयमेंएटके . गण करने गये, तय गोलकुण्डाफे सुलतानने अच्छा मौका पास आनगुण्डीके राजाओ का कुछ विवरण देने हुए । पा कर उमी समय नरसिंहफे राज्य पर हमला कर दिया। एक पन लिया। उन्होंने लिखा-मानगुएडीके घinti मरसिंह घोरपुष्प थे। ये तिरुमलको पजेमे फरफे। राजा ( १८०१ ई०में ) विजयनगर राजय'शफे दाहिन सेनाफे मा म्वदेश लौटे । पोछे उन्होंने माततायो सुल- हैं। इनके पूर्व पुरापो ने मुमलमानों से हरपणयाली और सानको अच्छी शिक्षा देकर देशसे निकाल पहार किया, चित्तलदुर्ग जागीरम पाया पा । १८०० ०के प्रारमें.. कितु दूसरे वर्ग सुलतानने बहुन सी मेगाफे साथ बा। ये लोग मुगलबादशाहको २००००) म० कर देते थे। पार नरसिंहको हराया। नरसिंह हतोत्साह हो कर दक्षिण १६४६ ईमें जब ये दोनों मान मराठों पे. मनोग हुप येशक मायकों के साथ मिलने की कोशिश करने लगे, फिन्तु तय मानगुएडोके राजाको दश हजार २० तथा एकसार को फल नगा। पीछे १ वर्ष ४ मास नक घे नायुर। पदानिक और एक सौ घुड़मयार सैन्य महाराष्ट्र शासन फे उत्तरी जङ्गलमें छिप रहे। मममय उनसे गमात्य कर्ताको देना पड़ता था। १७८६.०में टीपू मुलनामा पर भौर मंगागे, उन्हें छोड़ दिया। नामिहने इसके बाद गागीर जम्त पर ली राजा निगमल निजामराम भाग महिमराजका माश्रय लिया। इधर तिरमल अनेक गये तथा १७६१ ६० तक ये पलानक भास्या यहां रहे। प्रभारी घटनामोंमें पढ़ कर मुसलमानोंकी अधीनता/ १७६ ० में उन्होंने फिरमे मानगुण्डी पर चढ़ाई कर दी।