पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/४५६

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३८२ विधानगर । घर प्रतिदिन घत यशादि होते थे। मन्दिर मन्दिर, देव- विद्यानगरराज्यके उत्तरी प्रान्तसे दक्षिणी प्रान्त जान पूजा, भोग और भारनिको मङ्गल घायसे विद्यानगर तीन महीना लगता है। प्रतिदिन २० मील के हिसाबसे गूंज उठता था। फिर दूसरी ओर इञ्जिनियरगण पथ! जाने पर तीन महीने में अर्थात् ६० दिनमें १८०० मोलका घाट और भवन मादि पर्यवेक्षण किया करते थे। टूटी- रास्ता से किया जाता है ।" कुमारिको अन्तरोपसे फूटी इमारत और राजपथकी मरम्मत होती थी। हाथी | उड़ीसाको उत्तरी सीमा तक अवश्य ही १८०० मील: और घोड़ों को विविध शिक्षा देनेके लिये सैकड़ो होगा। किसी समय उड़ीसेके उत्तर मान्तसे कुमारिका मादमो नियुक्त रहते थे। ये लोग साधारण यहार | अन्तरोप पर्यन्त मिपुल भूभाग विदुगानगरके राजा तथा सामरिक व्यवहार के लिये हाथी और घोड़ो को शासनाधीन था। कृष्णदेव रायालुके शासनकाल में उचित शिक्षा देते थे। राजफयि, राजपण्डित, राज- भी हम विद्यानगर साम्राज्यको ऐसो विशाल विस्तृति: सभाकी नर्तकी तथा विविध शिक्षा शिक्षित हजारों की यात देखते हैं। अतएव रजाकको उक्ति प्रत्युक्ति मनुष्य विद्गानगरमें चास करते थे। नाना श्रेणीके नही समझी जानी । सम्भ्रांत, सुशिक्षित, सदशजोत लोगों के पाससे तथा ___ अबदुल रजाक पारसके राजदूत थे। विद्यानगः । नाना देशीय धनो पणिको के समागमसे विद्यानगरको राधिपतिने बड़े भादरसे उन्हें अपने राज्य में बुलाया समृद्धि दिनोंदिन बढ़ती गई थी। था। अबदुल रजाकने दूसरी जगह लिखा है, "विद्या- मि० स्यूयेलने लिखा है, कि १५वीं और १६यों नगरके राजाका ऐश्वर्यप्रभाव सचमुन्न अतुलनीय है। सदोको पियानगरमें जो सब यूरोपीय पर्याटक आये इनके पर्वतके समान अंचे हजारसे अधिक हाथो थे उन्होने साफ साफ लिखा है,-"गायतन और देख कर मैं विस्मित हो गया हैं। इनकी सैन्यसंख्या समृद्धि विद्यानगर यथार्था में एक प्रधान नगर है । धन- ग्यारह लाख है । सारे भारतवर्ष में ऐसे प्रभाय. गौरय और वैभवमहिमा यूरोपका एक भी नगर विधाः | शाली राजा और कहीं भी देखे नहीं जाते । जगन्... नगरके जोड़का नहीं है।" में इसके समान और कोई भी शहर है, ऐसा मैंने आज २।निकला ( Nicolo) नामक एक इटलोके पर्या. तक नहीं सुना है। राजधानीकी बनावट देखनेसे मालूम टक १४२० ई० में विद्यानगर माये थे। इन्होने अपने होता है, कि मानो मात प्राचीरसे घेष्टित सात दुर्ग हैं, जो वृत्तान्तमें लिखा है, "अशेष समृद्धिशाली विद्यानगर क्रमविन्यस्तभावमें बनाये गये हैं। राजप्रासादके निकट पर्वतमालाके अभेद्य प्राचोरके पाश्य में अपस्थित है। चार विपुल पण्यशाला है। उनके ऊपर तोरणमञ्च पर दो इस नगरकी परिधिका विस्तार ६० मील है। अभ्रभेदो श्रेणियों में मनोहर पण्ययोधिका है। पण्यशाला लम्बाई प्राचीरने पार्शवत्ती पतिश्रेणीके साथ सम्मिलित हो और चौड़ाई में अति विशाल है। मणिकारों के पास विक्रः । कर इस विशाल नगरको सुदृढ़ दुर्गमें परिणत कर दिया यार्थ जो सव हीरा, मरकन, पमा और मोती मुझे देखने हैं। नब्बे हजार रणदुर्माद योद्धा समरसाज में सर्वादा माया वैसी मणिमुकाको मैंने और कहा भी नहीं देखा। सजित रहते हैं। भारतवर्ष के अन्याय राजों को राजधानी में चिकने पत्थरोंको वनी बहुत-सो नहर देख अपेक्षा घिद्यानगर ( Bizengelia )के राजाका वैभव कर मेरे आनन्दका पारावार न रहा । विद्यानगरफी प्रभाव और प्रतिपत्ति बहुत अधिक है।" जनसंख्या सचमुच असंख्य है। शासन के प्रासादके , ३।१४४३ ई० में अबदुल रजाक नामक एक पारमो. सामने टकशाल-घर है । १२०० पहरू रात-दिन यहां पहर . गर्याटक विद्यानगर में आये थे । वे बहुत-सी राज- देते हैं।" गवदुल रजाकने विद्यानगरका एक उत्मय अपनी आंखों से देख उसके सम्बन्धमेति परिस्फुट धानियों का विवरण लिख गये हैं। उन्होंने एक जगह और सरस विवरण लिपियद्ध किया है। उसके पढ़नेसे - लिखा है, "विद्यानगर राज्यमें तीन सौ धन्दर है। प्रत्येक विद्यानगरके ऐश्वर्या के सम्बन्धमे बहुत सी घात' जानो. यन्दर किसी अशी फलिकाट बन्दरसे कम नहीं है। जाती हैं।