पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/४५९

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विद्यापति . : . विद्यापतिके चचेरे पितामह चएड श्वर महाराज हरिसिंह] विसफो नामक प्राम दिया था। यह ग्राम वर्तमान दर. देवके महामहत्ता सांधियिक्षिक थे। उन्होंने 'स्मृतिरस्ना- भङ्गा जिलेक सीतामढ़ी महकमेके अधीन जारैल पर. कर' नामक ७ स्मृतिनिवन्ध रचे है। इसके सिया वारे.: गने में कमला नदीके किनारे अपस्थित है। यहां कायक श्वरके पिता देवादित्य, पितामह -धर्मादित्य और उनके | घंशधरों का माज फल पास नही है। अभी ये लोग चार पिता हरादित्य आदि मिथिलाका राजमन्त्रित्व कर गये। पीढ़ोस सौराठ नामक एक दूमरे प्राममें रहते हैं। विसपी ग्राम देने के उपलक्षमें राजा शिवसिंहने विद्यापतिको विद्यापतिके प्रथम उत्साहदाता प्रतिपालक थे | जो ताम्रशासन प्रदान किया था, उसके न हो जानेसे पर: मिथिलाधीश शिवसिंह देव ! अपने एक मैथिली पदमें पत्तों कालमें और भो कितने जाली ताम्रशासन पनाये गये उन्होंने शिसिंहक काल और गुणका इस प्रकार परिचय हैं। इन ताम्रगासनों में भी २६३ लक्ष्मणाद देखा जाता दिया है। है। यहुनेरे एन्दी साम्रशासनों को मूल पतलाते हैं, पर "अनन्त रन्धकर लकवा पपरवा सक्क समुद्द कर अगिनि ससी। यह उमको भूल है। चंतकारि छाट जेठा मिलिमो पार येही जाउनसी ॥ मिसिहकी पत्नी रानो लछिमा ६ वी भी पिढया, देवसिंह ज पुहमी छह मदासन सुरराम सरू। ' पतिको बहुत उत्साह देती थीं। इसी कारण विद्या, दुदु मुस्तान निदे मा सोअउ सपनहीन जग मह ॥ पति भनेक पदोंमें लछिमा देयोका. नाम पाया जाना देवहुमओ पृथिमीको राजा पोरस माझ पुगणा योनिभो। है। उनको पदावलांसे यह भी जाना जाता है, कि ये सतरप्ते गङ्गामिलितकलेवर वेवसिंह मुरपुर नक्षियो । गयासुदीन और नसिरा शाह नामके दो मुसलमान एक दिस'जबन सकछ दल चलिभो एक दिस सो जमराम चरू । राजाओंके भी कृपा-पान थे। इसके सिवा उन्होंने रानी दुहुए दक्षटि मनोरथ पूरभो गरूए. दाप शिवसिंह करू ॥ विश्वास धोके आवेगसे 'शेयसर्वस्वहार' और 'गङ्गा. सुरतरुक्मुम घालि दिस पुरेभो दुन्दुहि सुन्दर साद घर । पाषरावली' पीछे महाराज कीर्रािसिंहफे आदेशसे 'कीर्सि वीरवन देखनको कारण मुरंगण सो) गगन भरु॥ . लता' तथा महाराज भैयसिंहफे शासनकालमें युवराज मरम्मी अयन्तेहि महामस राजसूम अश्वमेघ जहा। राममद्र (रूपनारायण)के उत्साहसे 'दुर्गामक्तितरङ्गिणी'- पपिटव पर आचार यसानिम याचकको घरदान कहा ॥ को रचना की है। विद्यापति किसी किसी पदमें विजाई कदार एहु गायए मानत मन भानन्द भयो। उनकी 'कविण्ठहार' उपाधि देखी जाती है। सिंहामन शिवसिंह पाटो उदय विसरि गयो।" पूर्वोक्त प्रायो' के मलाया विद्यापति रचित पुरुष. ___ उक्त पदका तात्पर्य यह है, कि २६३ लेक्ष्मणादर्म अथवा परीक्षा, दानवाफ्यावली, वर्षफल्य, विभागसार, गयापतन १३२७ प्राकाम्दफे चैत्रमासकी पष्ठा तिथि ज्य ठानक्षत्र में आदि.अनेक संस्कृत ग्रन्थ मिलते हैं। पृहस्पतिको देवसिंह सुरधामको सिधारे। उनके स्वर्ग: पे सब प्रय आज भी मिथिलामें प्रचलित हैं। इनकी घासी होने पर भी उनका राज्य शन्य नहीं हुआ। उनके | मनोहर पदावलियो मेसे एक नीचे उधृत की जाती है- पुत्र शियसिंह राजा | शिवसिंहने भएने यावल | - 'कत चतुरानन मरि मरि जायत, नतु या आदि मषसाना। मुसलमानों को तृणके समान तुच्छ जान कर परास्त | तोहे जनमि पुनि तोहे समाधत, सागर महरी समाना। किया पपनराज जान ले कर भाग चला। स्वर्गमे दुन्दुर्मि अरुण पुरव दिस, बहल सगर निस, गगन मगन मेल चन्दा । वजने लगी। शित हक मस्तक पर पुरपशेिने लगी। मुनि गेन कुमुदिनी सहभो वोहर पनि, मूनल मुख परविन्दा। विद्यापति काय कहते हैं, कि यही गिर्यासह अभी तुम फमर वदन कवनय दुइ कोचन, अधर मधुर निरमाणे । लोगोंके राजा हुए है। तुम लोग निर्भय होकरदास! राकन्न शरीरफ मुम तुम सिरजिक्ष, किम दा हदय परवाने । ..: ननम यघि हम रूप निहारव, नयन न तिरपित मेन । राजा शिवसिहने प्रसन्न होकर इन्हें विसपी वो सेई मधुर योन अवयदि यनय, भविषय परसि न गेछ।.. . Yol, xxI 97'