पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/४६५

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विधारण्यस्वामी - दूप्तरी एक किम्बदन्तीसे जाना जाता है, कि मुसलः, पुरुष ऐसे ही अलौतिक शान्तिमम्पन्न देखे जाते हैं।) मानोंके युद्ध में अपुत्रक राजा जम्युकेयर मारे गये । इस हतमर्मस्व प्रजामण्डलो स्वर्ण प्राप्त कर फिर एक बार धन- फे बाद राज्याधिकार के लिये राज्यमें घोरतर विप्लव मालो धन गई । ये लोग अपने अपने घर बना कर जातीय उपस्थित हुआ। उत्तराधिकारियोंने आपसमें सिंहासन | व्यवसाय वाणिता करने लगे और नगरकी शोभा और पानेके लिये निरन्तर युद्ध में लिप्त रह कर देशमें घोरतर समृदि बढ़ाने लगे। राजाधिकृत या सरकारी भूमिमें जो - - विश्ङ्खला पैदा कर दी। इसी अराजकताके दुर्दिनमें | सुवर्ण वृष्टि हुई, वह उठा कर राजकोप ने एकल कर दिया विजयनगर मरुभूमिके रूपमे परिणत हुआ। गया। इस समय विजयनगरके प्रणट गौरवके पुनरु- __ शृङ्गरो मठमें रह कर जन्मभूमिकी इस भयानक विपद् द्वारकी चिन्ता दूर हुई। शीघ्र ही विजयनगर धन और को यात स्मरण कर माधवाचार्य (यिद्यारण्य यति )- शत्यसमृद्विसे परिपूर्ण हो गया । इस समय विद्यारण्य का हृदय रो उठा। उनसे भव रहा न गया, शीघ्र हो घे स्वामाने इस नगरका नाम अपने नाम पर विद्यानगर शृङ्गरसे लौटे। मातृभूमिमें पहुंचने हो विद्यारण्यम्वामी रखा । हाम्पो के एक देवालयमें विद्यारण्य स्वामीको अपनो इष्टदेवोके मन्दिरमें गये और स्नानादि कर विधि- उत्कीर्ण इसके मम्बन्धको शिलालिती दिखाई देती है। यत् देवीको अर्चना करने लगे। उसके बाद देवाने उनको इस पर १२५८ शक ( १३३६ ई० ) खुदा हुआ है । सुतरां ध्यानमें दर्शन दे कर कहा,-"वत्स ! समय पूर्ण हुआ | इसके पूर्व तशा जम्बुकेश्वरकी मृत्युके बाद करीब है। तुमने संसारधर्म त्याग कर संन्यास प्रहण कर नवीन! १३३५ ई० में उन्होंने यह नगर स्थापित किया था। . जोवन प्रात किया है। अतपय गाईस्थय जना के लिये उन्होंने अपने या अपने प्रतिनिधि द्वारा प्रायः १६ वर्ष यह तुम्हारा दूसरा जन्म हुआ है। इस समय मेरे घर तक गिद्यानगरका राज्य किया। . प्रसादसे तुम अतुलसम्पत्तिके अधिकारो बन कर इस विशरण्यको देवशक्तिो प्रभावमे शीघ्र ही निया. नष्ट राज्यका पुनरुद्धार कर सनातन हिन्दू-धर्मका विस्तार नगर सुशासित और समृद्विसम्पन हो उठा । योगमार्गा करो।" नुसारो विज्ञ विम माधवाचार्याने तब धममदसे मत्त रहना देयोका आशीर्वाद शिर पर धारण कर विद्यारण्य नहीं चाहा। विपश्येमयनिस्पृद संन्यासी की तरह सदा स्वामीने देवी के चरणों में निवेदन किया, 'मां ! में अर्थ परम तत्वान्वेषणमें रत रह कर जावनयात्रा निर्वाह के विना कैसे नए राज्यका उद्वार कर और कैलेधन करना हो उनकी याँहुई। उन्होंने अपने प्रिय शिष्य हीन प्रजामण्डलो नगरका समृद्धि बढ़ सकती है ?" उम धुमके हाथ राजभार अर्पण कर दिया । इससे ही समय देवी के आदेगसे स्वर्ण को गृष्टि दुई । (जनसाधारण विद्यानगरमे' संगमराज्यको प्रतिष्ठा हुई। हाम्पीकी का विश्वास है, कि यिदुशारण्य स्वामोने योगवलसे स्वर्ण शिलालिपिमें' राजा दुक्करायको यादयसन्तान होना पृष्टि की थी। संन्यासीको भर्थका आवश्यकता नहीं। लिन्ना है। कहीं कहो उसको कुरुवंशीय भी माना फेवल दुःखा प्रजाका दुःख दूर करने के लिये हो वे अर्था गया है। गम विद्याको शिक्षा करते हैं। आज भी कितने ही साधु राजा बुफत और विद्यारण्यके सम्बन्धमें दाक्षि- णात्यमें कई किम्बदन्तियां प्रचलित है। इससे विद्या प्रायः १२ वर्ष तक उक्त राजाफे साथ युद्ध किया । नुनिजके अंथमें रण्यका बहुत कुछ परिचय मिलता है। यहां वे प्रसङ्ग संख्याविन्यासका भ्रम होगा। उसको १२३० की जगह १३२०, क्रमसे बद्ध त कर दी जाती है- मान लिया जाये और उसमें १२ यर्प युद्धकाल जोड़ दिया जाये, : (१) तुगभद्रा नदोक किनारे एक गुहामे विद्यारण्य वो १३३२ ई० माय: नम्धुकेश्वरका मृत्युकाल था जाता है। ! तपस्या करते थे। युफक नामक अदीरका एक लड़का नुनिजको शताब्द पूर्व संख्याको स्यूयेश साहबने प्रमात्मक सावित उग लिये दूध दें जाता था। इस तरह कई वर्ष तक किया है। . . . । उन पुण्यात्माको उसने सेवा की। विद्यारण्य गेरो __Vol. XXI. 98