पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/४८३

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विधवा ४०३ तिसः फोट्योऽद्ध फोटो च यानि क्षोमानि मानवे। दत्तायाश्च व कन्यायाः पुनर्दान वरस्य च । सायत् काल वसेत् सर्ग भवार' यानुगच्छति ॥" । दीर्घकान मझचर्य नरमेधाश्योधको ॥ . (पराशरसोदिता) महाप्रस्थानगमन गोमेधञ्च तथा मखं । पति के कहीं चले जाने, मर जाने, क्लीय होने, संसार | इमान् धर्मान् कजियुगे पदनाम नारिणः ॥" त्याग करने, अथवा पतित होने पर स्त्रियोंको दूसरा (रघुनन्दनधुत वृहन्नारदीय) विवाह कर लेना चाहिये। ऐसी विधि है। समुद्रयात्रा, कमण्डलुधारण, असवर्णविवाह, देवर जो स्त्रो पतिके मर जाने पर ग्रहाचर्पाका पालन कर द्वारा पुत्रोत्पादन, मधुपर्कमै पशुबध, श्राद्धमें मांस भोजन जीवन पिता देती है, वह मृत्यु के बाद ब्रह्मचारियों की घानप्रस्थायलम्बन, एक आदमीको कन्यादान कर उसी तरह स्वर्गलाम करती है। जो लो पतिदेयके साथ सती कन्याको फिर दूसरे हाथ दान करना और बहुत दिनो'. हो जाती है, यह मनुष्यफे शरीर में जो साढ़े तीन करोड़ तक ब्रह्मचर्य फलियुगमें वर्जित है। रोपं है, उनमें दिन तक स्वर्गम वास करती है। "सकृत् प्रदीयते कन्या रस्ता चौरदयस्माक् । , पराशरस्मृतिर्फ इस वचनके अनुसार विधवाओंकी दत्तामपि हरेत् पूर्वात् शयारचेदर भावजेत् ॥" . तीन विधियां हैं। स्वामी के साथ सती होना, ग्रहबर्य- (याशवल्क्य सहिता १।६५) का पालन करना तथा अन्य विवाह अर्थात् पुनर्विवाह याय द्वारा ही हो या मन द्वारा ही हो, जब कन्या एक जो विधवा सती होने और ब्रह्मचर्य पालन करने में पार प्रदत्त हुई है, तब उसको हरण करने अर्थात् दुमरेके असमर्थ है. यही दूसरा विवाद कर सकती, सभी | साथ वियाह कर देनेसे यह कन्यादाता चोरफो जो नहीं। ब्राह्मचर्यग्रत पालन गतीय कप्टसाध्य है, सव. दण्ड होता है, उसी दएडसे दण्डित होगा। किन्तु जय के लिये सुगम नहीं है, अतः जो इसका पालन न कर पहले परकी अपेक्षा उत्तम घर मिल जाये, तब बागदत्ता. सफे, उसके लिये ही पराशरने विवाहकी आज्ञा दी है।। को चाहिपे, कि उस करयाको उसी उत्तम घरको ही सप शाम इस विधवाविवाहका निषेध रहने पर भी | प्रदान करे। इस पचनसे मालूम होता है, कि पहले . इस कलियुगविहित पराशरस्मृतिका ऐसा ही मत है। किसी घरसे विधाहकी पको दात हो चुकी हो और पूर्वोक पांच भापत्तिकालमें 'पञ्चस्वापत्सु नारीणां इसके बाद ही यदि अपेक्षाकृत उत्तम घर मिल जाये, तो पतिरन्यो विधीयते ।" इस श्लोकांशके अर्थसे दूसरा उस वाक्यको तोड़ कर इसो उत्तम बरसे विवाह किया पति पर लेनेको विधि है। यदि अन्य पतिका अर्थ | जा सकता है। किन्तु जिस कन्याका विवाह हो चुका पालक लगाया जापे, तो कहना होगा कि पराशरको ) है, उसका पुनः दान किसी शास्त्र में दिखाई नहीं देता। । इस आशाका आशय पालक नियुक्त करनेका है। और भी लिखा है।- क्योंकि नियां किसी समय भी स्वतन्त्र नहीं रहती। "मविप्लुतब्रह्मचयों रुक्षपयां त्रियमुद्हेत । पालक का अर्थ प्रहण करने पर सष धर्मशास्त्रोंस पराशर अनन्यपूर्षि को कान्तां समपिण्डो ययीयसीम् ॥" " का मत भी एक हो जाता है। इधर विधवा-विवाद निपे- ... (यायक्य स० १५।२) भी शास्त्रोंमे देखे जाते हैं। उनसे कुछ अस्खलित ब्रह्मचर्य द्विजाति नपुसंकतादि दोपशून्या, • नीचे उद्धत करते हैं:- अनन्यपूर्वा (पहले पात्रान्तरके साथ जिमका विवाह . "समुद्रयात्रास्त्रीकार: कमयडलुविधारणम् । होनेकी स्थिरता मक न हो और दूसरेको उपभुक्ता भी '. द्विजानामसवासु कन्यायपयमस्तथा ॥ . न हो, उसोको अनन्यपूर्वा कहते हैं) क्रान्तिमतो मत- . देवरेण सुतोपत्तिम धुपके पशोर्वधः । पिएडा और चयःकनिष्ठा कन्याको प्रहण करे । इस वचन- ... मांसादनं तथा गाई पानप्रस्थाशमस्तथा । से मालूम होता है, कि अनन्य पूर्विका विवाह न होगा।