विधवापन-विधावायुरा
विधयाका विवाह भी निषिद्ध है। विधवासे उत्पन्न पुव | विधाता (संपु०) विधातु देखो।
जब पिता माताके धार्मिक कार्योंका अधिकारी नहीं, तव विधातृ ( स पु०) शिधा-तृच्। १ ब्रह्मा। (भमर )
विवाहके प्रयोजनकी मसिहिसे यह विवाह ही निषिद्ध | २ विष्णु। (भारत १३४१४६६४) ३ महेश्वर । ४ काम.
समझना होगा। कश्यपने दत्ता और वाग्दत्ता दोनों देव। ( मेदिनी) ५ मदिरा । ( राजनि०) ६ विधानकर्ता,
तरहकी स्त्रियों के विवाहको निषिद्ध किया है। वनानेवाला । ७ दाता, देनेवाला । ८ सर्यसमर्थ ।
वाग्दत्ता अर्थात् जिसके विवाह के लिये धात दे । विहितकर्मानुष्ठाता, वह जो शास्त्रविहित कर्मों का अनु.
दी गई, मनोदत्ता, जिसके विवाहको बात मनमें मान लो ठान करते हो। १० निर्माता, पनानेवाला । ११ व्यवस्था
गई है। कृतकौतुकमङ्गला, जिसके हाथों विवाह फरनेवाला, ठोक तरहसे लगानेवाला । १२ सृष्टिकर्ता,
सूत्र बांधा जा चुका है। उदकस्पशिता अर्थात् जिस जगत्की रचना करनेवाला। इन अद्वितीय शक्तिसम्पन्न
को दाग दिया जा चुका है, पाणिगृहोतिका-जिस सृष्टिकर्ता जगदोश्वरकी माया सभो जीप फंसे हुप हैं।
· का पाणिग्रहण-सस्कार हो चुका हो अथच कुश- वे सृष्टिकर्ताके अतिविचित कार्यकलाप देख उनका
'ण्डिका नहीं हुई है; अग्निपरिगता-जिसको कुशा यथार्थ तत्त्वनिरूपण नहीं कर सकते और अप्रतिभकी
ण्डिका हो चुकी हो। पुन प्रभवा, पुनर्भू के गर्भ में तरह सर्वदा पड़े रहते हैं, क्योंकि ये (जीव) देखते हैं, कि
जिसका जन्म हुआ हो, ये सब यर्जित हैं अर्थात् इस जगत्यपञ्चमे कहीं तो तृणसे पर्वत (दावाग्निफे द्वारा),
इनका दूसरा विवाह न होगा। यदि किया जाये तो कीटसे सिंहशार्दूल, मशकसे गज, शिशुसे महावीर पुरुष
पतिकुल दग्ध होता है।
तक विनष्ट होता है, कहीं मूपिक मण्डक आदि खाद्य,
कश्यपने वाग्दत्ता और दत्ता दोनोंका पुनर्विवाह मार्जार भुजङ्गादि पादकोंका विनाश करता है। कहीं
निषेध किया है। सुतरां इनके पचनानुसार भी विरुद्ध धर्मावलम्यो अग्नि और जलको याप्पके साकारमें
विधवाका पुनर्विवाह निषिद्ध है। विशेष विवरण 'विवाह' परिणत कर उसकी निर्मूलता सम्पादन करता है तथा
शब्दमें देखो।
अपने नाश्य शुष्क तृणादि द्वारा स्वयं विनष्ट होता है। यदि
यियापन (हिं० पु०) विधवा हानेको अवस्था, वह अवस्था
विचार कर देखा जाय, तो इससे अधिक आश्चर्य और
जिसमें पतिके मरनेके कारण स्त्री पतिहीन हो जाती है, क्या हो सकता है, कि एक जह मुनिने ही इस भूमएडल-
रैड़ापा, चैधश्य।
घ्यागी सात समुद्रोंका जल पी लिया था।
विधवायेदन (सं०क्लो० विधवाविवाह ।
१३ अधर्म। (नि.) १४ मेधायी, विद्वान् ।
विधवाश्रम (सं० पु०) विधवाओंके रहनेका स्थान, वह विधातृका (सं० स्त्री०) विधायिका, विधान करनेवाला।
स्थान जहां विधवाओं के पालन पोषण तथा शिक्षा आदि-
| विधातृभू (स० पु०) विधातुमणो भूरुत्पत्तिर्यस्य ।
का प्रबंध किया जाता है।
विधस (सं० पु०) ब्रह्मा।
१ नारदमुनि । २मरीच आदि ।
विधस (सक्लो०) मधूच्छिष्ट, मोम ।
विधातायुस् (सं० पु०) विधातुरायुजीवितकालपरि.
विधा ( म० स्त्री० ) वि-धा-किप् । १जल, आप।
माण यस्मात् , सूर्यक्रियां विना वत्सरादिशानासम्मया.
२विध देखो।
देयास्य तथात्वम् । १ सूर्य, वह जिनसे विधाता
विधातण्य ( त्रि०) १ विधेय, विधानके योग्य ।
स्पष्ट.पदार्शका जीवित काल परिमित होता है। इनकी
२ कर्तव्य, करने योग्य। .
उदयास्त क्रिया द्वारा लोगोंके पत्सरादिका मान होता है
विधाता-भृगु मुनिक पुनका नाम । मेरुकी कन्या नियति तथा उससे जीवका आयुकाल निकाला जाता है, इसी
• से इनका विवाद हुआ था। विधाताके एक प्राण नामक कारण सूर्गका विधानायुः नाम पड़ा।
पुत्र था। फिर माणक घेदशिरा गौर कवि नामफे दो २ ब्रह्माको उमर। चौदह मन्वन्तर अथवा मनुष्य-
-पुन ये।
.. . मानके एक कल्पका ब्रह्माका एक दिन, मानवीय तीन
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पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/४८५
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