४१४
___· विधुना-विधेय'
विधुना युक्तप्रदेशके इटावा जिलान्तर्गत एक गण्डनाम, | विधुलि-विध्यपादमूलस्थ एक प्राम।। . .
विधुना तहसीलका सदर। यह रिन्द नदीके किनारे ' '
(भविष्यवाहका ८६)
अवस्थित है। गांवसे एक मील दूर 'गदी पर एक पुल | विधुवदनी (सं० स्त्री०) चन्द्रमाके समान मुखवाली
है। इष्ट इण्डिया रेलपथके आचालदा स्टेशनसे गांव | स्त्री. सुन्दरी स्त्री। '
'
तक गई एक पपकी सड़कसे यहाँका वाणिज्य चलता विधुवन ( स० क्ली० ) विधु-ल्युट् कुंटादित्वात् साधु ।
है। यहां एक प्राचीन दुर्गका खेहर देखा जाता है। कम्पन, कापना।
विधु न्तुद ( स० पु० ) विधुतुदति पीड़यतीति विधुतुद विधूत (स.लि.) वि-धू क । कम्पित, कापता हुआ ।
(विध्यरुयोस्तुदः । पा ३२।३५) इति खस् मुम् । चन्द्रमाको २ हिलता हुआ, डोलता हुआ। ३त्यक, छोड़ा हुआ।
दुःख देनेवाला, राहु ।
दूरीकृत, हटाया हुमा १५ निसारित, निकाला हुमा,
चिधुपझर (संपु०) विधाः पञ्जर इच तत्सादृश्यात् ।। बहार किया हुमा ' ' ' ' '
खड़ ग, खोड़ा।
विधुति ( स० स्त्री० ) वि.धूक्तिन् । कम्पन, कॉपना।
विधुप्रिया (स' स्त्री०) विधोश्चन्द्रस्य प्रिया। १ चन्द्रमाः विधूनम ( स० फ्ली) विधूणिच ल्युट। कम्पन,
की स्त्री, रोहिणी। २ कुमुदिनी ।
| कॉपना। पर्याय-विधुवन, विधुनन ।
विधुयन्धु (सपु० ) कुमुदका फूल ।
विधूप (सत्रि०) धूपरहित । (मार्क०५० ५१।१०५ )
विधुर ( स० क्लो०) विगताधूर्भारो यस्मात्, समासे । विधूम ( स० नि ) विगतो धूमो यस्मात् । , धूमरहित,
१ फैवल्य, मोक्ष । २ कर, दुरद। ३ वियोग, जुदाई। विना धूप का।
४ालग होनेको किया या भाव। (पु०) ५शत, विधून ( स० लि. ) धूसरवर्ण, धूमिल या मरमैले
दुश्मन।
रंगका।
(नि०) विगता धू कार्यमारो यस्मात् । ६ विकल, विधूरता ( स० स्त्री०) विधूरस्य भावः तल्-टाप् । विधु-
प्याकुल । ७ दुःखो। ८ गसमथ, असके । ६ परि- रत्व, विधुरका भाव या धर्म ।
त्यक्त, छोड़ा हुआ। १० विमूढ़। ११ घबराया हुआ, | विधृत ( स० ली०) विधृ.क्त । विशेषरूपसे धूत,
डरा हुमा ।'
आक्रान्त। ।
विधुरता ( स० स्त्री० ) विधुर-तल -टाप् । विधुरका विधुति ( स० स्त्री० ) विधु किन् । १ विधारण।
भाय, क्लेश।
२देवता।
विधुरत्व (सलो० ) विधुरता, ग्लश। ' '
___ भागवतमें लिखा है, कि सभी देवता विधुतिके पुत्र
विधुरा । स० स्त्री०) विधुर-टाप । १ रसाला । २ हैं; इसलिये उनके नाम पधृतय हुए हैं। एक समय
कानोंके पोछेकी एक स्नायु-प्रन्धि । 'जाई मर्माणि 'जब वेद नष्ट हो गया था, तब उन्दोंने अपना तेजोवल
चतस्रो धमन्पोऽष्टी मातृका द्वे रुकाटिके द्वे विधुरे' - - | धारण किया था।
, (सुश त ३६) . (पु०) ३ सूर्यवंशीय एक.राजाका नाम । विधृतिके.
भावप्रकाशमें लिखा है, कि दोनों कानों के पीछे नीचे | पुन हिरण्यनाभ थे। (भागवत ६॥१२॥३). . ..
आध आध अगुलके विधुर नामक दो स्नायुमर्म हैं। ये विष्टि (स० सी०) प्रणाली, व्यवस्थित नियमादि । .
मर्म बैकल्यकर हैं । इनके पीड़ित या खराव होनेसे श्रवण-
. . . ( शाला० शौ० ८।२४।१३)
.शक्तिका ह्रास हो जाता है । ३ कातर, व्याकुल, पंड़ित । विधेय ( स० त्रि०) वि-धा (थचो यत् । पा ११६६७) इति
विधुरिता (सं० वि०) विधुर तारकादित्यादितच ! विरह- यत् (ईत यति । पाहा ६५) इति अति इत् । १ विधानके
विहला, विरहकातर। . . ... ... .: योग्य, जिसका विधान या अनुष्ठान उचित हो ।
विधुरीकृत (सं त्रि०) निष्पिष्ट ।।
२ जिसका विधान हो या होनेवाला हो, जो किया जाय ।
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/५००
Jump to navigation
Jump to search
यह पृष्ठ शोधित नही है
