पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/५११

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'विनुक्ति-विन्दु ४२५ पिनुकि (सं. स्त्रो०) १ प्रशंसा । २ अभिभूति और लम्या और दो हाथ चौड़ा ३० द्वार और दो कोष्ठयुक्त गृह. दिनुत्ति नामक दो पकाहका नाम । को विनोद कहते हैं। (युक्तिकल्पतरु ) पिनु (स स्रो०) विक्षेपार कर्मयैगुण्य। विनोदगा-गया जिलान्तर्गत एक प्राचीन माम । (Vफ २११३३३) (भविष्यब्रह्मख० ३६।१०२) विनेत (स.पु.) विनी-तुच । १ परिचालक, उप. विनोदन ( स० क्लो०) यि नुद् ल्युट । १ पिनोद, आमोद देशो, शिक्षा | २ राजा, शासनकर्ता। प्रमोद करना, खेल कूद करना। २ हास विलास या चिनेत (स.पु.) उपदेशक, शिक्षा। हसो दिल्लगी करना। ३ भानन्द करना। यिनेमिदशन (स.नि.) मर-रहितं ।' विनोदित ( स० नि०) १ हर्गित, प्रसन्न। २ कुतहल. यिनेय (स.नि.) पिन्नी-पत् । १ नेतथ्य । २ दण्ड युक्त। ' मीय। (पु.) ३ शिष्य, मन्तेयासो। यिनोदिन ( स० वि०) १ गामोद प्रमोद करनेवाला, विनयकार्य (स.ली.) दण्डकार्य। कुतूहल करनेवाला । २ खेल फूह करनेवाला, चुहल. - ' (दिम्पा० २६१६) बाज। ३ जिसका स्वभाय आमोद . प्रमोद करने का हो, विनोकि (स' स्रो०) मलङ्कारविशेष । जहां किसी एक भानन्दो। ४ मोडाशोल, खेलकूद या हंसो उट्टे में रहने पदार्थको छोड़ दूसरे पक्ष और पस्नुका सीधर या गसौ.! पाला । एव नहीं होता अर्थात् जहां रिसी एक यस्नुफे भभावमें विनोदिनो (स. स्त्री० ) विनोदिन देखो। प्रस्तुत दूसरो यस्तु या यर्णनीय विषयमें हीनता या विनोदी (सं० स्रो०) विनोदिन देखो। श्रेष्ठता जानी जाती है, पहा यिनोक्ति मलङ्कार होता है। विन्द ( स० पु.) १ जयसेनके एक पुत्रका नाम । २त. इस अलङ्कार में प्रायः विना शब्दफे तथा कदाचित् विना राष्ट्रके एक पुत्रका नाम । ३ प्राप्ति, लाम । ४ वृन्द देखो। शम्दा के योगसे ममाघ सूक्ति होता है। जैसे, "विधा 1.५विन्दु देखो। ६ पश्चिम बङ्गवासी एक जाति । (त्रि०) सोको अमीर होने पर भी यदि उसमें विनयका संश्रय ७ प्रापक। ८ दर्शक! न रहे, तो यह दोन अर्थात् निन्दनीय समझा जाता है।" | | विन्दकि-युकप्रदेशके फतेपुर जिलान्तर्गत एक नगर । फिर "हे राजेन्द्र! आपको यह सभा खलरहित होने के कारण अति शोभासम्पन्न हो गई है। इन दोनों एपलमें विन्दमान ( स० मि०) १ प्रापनोप, पानेके योग्य । यधाम विना विनय के विद्याको नोचता तया विना खल. २ माघ, प्रहण करने के योग्य । के सभाको उन्यता या श्रेष्ठता सूचित होती है। "पनि | विन्दावत-एक कवि। नीने कमी भी चन्द्रकिरण नहीं देखो. चन्द्रमाने भो जन्म विन्दु (स० पु०) विदि अवयवे पाहुलकादुः। १ल. से कमी प्रफुल्ल कमलका मुंह नहीं देखा, मतपत्र दोनोंका कण, द । २ बिग्दी, बुदको। ३रंगकी विन्दी जो हो जन्म निरर्थक है।" यहां विना शम्दके 'अर्ययोगसे हाथीके मस्तक पर शोभाके लिये बनाई जाती है। ४ विनोक्ति मलङ्कार हुमा है। क्योंकि यहां पर स्पष्ट जाना दन्तक्षतविशेष, दाँतका लगाया हुमा क्षर। ५ दो भौहों. जाता है, कि' चन्द्रकिरण दर्शन विना पझिनोकी तथा| के वीचको विन्दी। ६ रेखागणितफे अनुसार यह जिस- 'प्रफुल्लकमलके मुखदर्शन दिना चन्द्र (जन्म द्वारा दोनों का स्थान नियत हो पर विभाग न हो सके। मनुखार। की) की उत्पत्तिको नीचता दिखाई गई है। सारदातिलकके मतसे, सच्चिदानन्दविभय परमेश्वर- विनोद (संपु०) विनुद-धम् । १ कौतूहल, तमाशा। मो शकि, शक्तिसे नाद तथा नादसे विन्दुसमुद्भूत है। २ क्रोडा, खेल फूल, लीलो । ३ अपनयन प्रमोद, सच्चिदानन्दविभवात् सकशात् परमेश्वरात् । ईसो दिल्लगो। ५कामशास्त्र के अनुसार एक प्रकारफा .. यासीढक्तिस्ततो नादो नादादिन्दुसमुद्भवा ।" • मालिङ्गन । ६ राजगृहविशेष, प्रासाद । तीन हाथ - 'फुजिकातन्त्रके मतसे,-. - Vol. xxi 107, '