पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/५१८

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४२ ' विध्यगिरि : जित है। यह इस समय 'नर्मदाफी उतरी उपत्यकाकी : बागको ऊंचाई १८०० फोट है, किन्तु पूर्वाञ्चलमें पा. सीमापसे विद्यमान है। इस पतिका अधित्यकादेश | नाथ पर्वतको अघाई ४५०० फोट है। इस पर धेणोकी साधारणत: १५०० से २००० फोर ऊंचा है। किन्तु | सर्ग पूर्णसोमा मुंगेर, भागलपुर और राजमहल के निकट स्थान-स्थानमें कई शृङ्गोंने उभत मस्तकसे पयस्थित हो | गङ्गातोर तक विस्तृत है। विन्ध्यपर्वतका जो मश कर प्राकृतिक सौन्दरों को एकताको भङ्ग कर दिया है। मिर्जापुरमें पड़ा है, वह विन्ध्याचल नामसे प्रसिद्ध है। अक्षा० २२:२४ ३० और देशा०।७३४१ पू० में चम्पानेर यह हिन्दुओंके लिये एक बहुत पवित्र तो गिना जाता नामक शृङ्ग समुद्रयक्षसे २५०० फीट ऊंचा है। जामघाट है। विन्ध्यवासिनी और विन्ध्याचा देखो। .... २३०० फार भूगलका शैलशिम्बर २५०० फोट, छिन्द. | इस पर्वतको शाखा-प्रशाखाओं में विभक विभिन्न पाहा २१००, पचमारो ५००० (१), दोकगुड़ ४८००, पट्ट उपत्यका विभिन्न देशवासियोंको आश्रयभूमि हो जाने के शङ्का भौर चूडादेव या चौड़ा-दू ५०००, अमरूफएटक कारण ये राजकीय और जातिगत विभागको मोमा । अधित्यका ३४६३, लाज्ञोशैलगा लोला नामक शिखर रूपसे निर्दिए हुई है। इसी कारणसे समम विन्ध्यपोत- - २६०० फीट है (मक्षा० २१५५ उ० और देशा० ८०२५ का विवरण एकत्र संग्रह करनेको सुविधा नहीं होती। पू०) उक्त पातफे अक्षा० २१४०३० और देशा० ८० इसका जो अंश जिस जिले के अन्तर्गत है अश्या जो संश ३५ अशमै २४०० फोट ऊचा गौर भी एंफ ऋङ्ग है। जिस जातिको घासभूमिमें परिणत है, पर्गतका प्राकृतिक पश्चिम भारतको अधित्यका प्रदेशस्थित मालय, · विवरण भी उन उन जातियों या जिलों के साथ पृथक भूपाल आदि राज्योंको दक्षिणो सीमा.पर.प्राचीर स्वरूप कसे लिखा गया है। प्राचीन संस्कृत काव्यादि अन्यौम यह पर्वतमाला खड़ी है और यही इसके पीछे भी है। इस विन्ध्यपर्णतके मश विशेष का हो माहारस्यं वर्णित सागर और नमधा प्रदेश इसके ऊ'चे चहान्तों में गिने गये दिखाई देता है । मुगलों के शासनकाल में राजकीय कार्य हैं। इसके उत्तर भागको अपेक्षा पश्चिम भाग कई सौ और दाक्षिणात्य देशों पर आक्रमण करनेको सुविधा होने. फोट चा है। विन्ध्य पर्वतको पश्चिम सीमासे उत्तर- से इस पर्वतके स्थानविशेषका परिचय इतिहासमै पा की भोर पक-पर्वत श्रेणी धक्रमापसे राजपूतानेको पार| राजकीय विवरणोमें आया है। करतो हुई दिल्ली तक गई है -। इसका नाम है भरायली. भूतत्त्यफे विषयमें, नर्मदातीरवत्ती वितरर्गतको की पहाड़ी । इसने पश्चिम भारतके मरदेशसे मध्यभारत पादभूमि प्रक्षतत्वविदोके लिपे जैसी भादरको सामग्री को अलग किया है। . , ... | और चित्ताकर्षणकारी है, भारतके अन्य कही भी पेसा इस समय हम विध्यपर्वतको नाना शाखा प्रशा• स्थान दिखाई नहीं देता। यहां विन्ध्यपति पर वालुका नामों में विभक्त देखते हैं। पे शाखा एक एक अलग प्रस्तरका जो स्तर गौर मिला हुआ भूस्तर है (associa. अलग नामसे परिचित हैं। पौराणिक युगमे यिमध्यपतफे ted heds ) यह गति आश्चर्य और विषपात है, प्राकृतिक दक्षिणको सनपुरेको पहाडी भी विध्य नामसे परिचित विपर्याय, रासायनिक प्रक्रिया से मोर जलवायुके प्रभावसे है। किन्तु इस.समय केवल गर्मदाफे उत्तरयत्तों विस्तृत इसके दक्षिण भागके प्रस्तर स्तर पूर्व धैगुण्यको प्राप्त शलभेणी ही विधगिरिक नामसे पुकारो जाती है। हुए हैं। नर्मदा उपत्यकाके मूलदेशसे होती हुई कमसे विध्यपर्वतका पूर्वी एक विस्तृत अधित्यका प्रदेश पूर्णकी ओर दौड़तो शोननदीको उपत्यका तथा विहार है। इसके उत्तर और दक्षिणमें असंख्य शाखा-प्रशाखाये और गोरखपुर-पात मालामें भी ऐसही प्रस्तर दिखाई फैली है । दक्षिणकोन शाखाओं में उड़ीसाके विभिन्न देते हैं। : । . . . . . . . उपत्यका विराजित है। उत्तरमें छोटा नागपुरकी . भूतत्त्वविदोंने . यिध्यपर्वतकं मस्तरस्तर मादिको अधित्यका भूमि है । यह ३००० फोट ची है। पश्चिम पर्यायिक गठन पोलोचना की है। पूर्व-पश्चिममें मे सरगुताके निकट यह और भी ऊसो हुई है। हजारो | सहसरामसे निमाव तक प्रायः ६०० मोलाम और उत्तर