पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/५२३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

• पिन्ध्याचल ४३७ •इस पुण्डका जल ले जा कर पोते है । प६ कुण्ड एफ, है। इस भग्न दुर्ग पर खड़े हो कर पश्चिम दिशाको हाथ लम्या घोड़ा और ६च गहरा है। पर्णतगालस्थित देषने पर उस अधित्यका देशमें वहुत दूर तक मसंख्य एक पत्थरके कोनेले इसमें सभी समय युन्दबुन्दसे जल | ध्वस्तकीर्तिका निदर्शन पाया जाता है। इन सब टूटे गिरता है । पाश्वर्णकी बात है कि कितना ही जल इसमें फूटे पत्थर, ईट और खण्डहरों को देख कर अनुमान होता गिरे. किंतु जल उतना ही रहता है, बाहर गहों गिरता है, कि किसी समयमें यहां बहुजनपूर्ण एक नगरी विध. कितना हो जल इससे निकाला जाये ; किंतु इसका जल | मान थी। यहांके लोगोका कहना है, कि इस ध्वस्त जैसे के तैसा ही रहता है। न कम होता और न बढ़ताही | नगरमें किसो समय १५० मन्दिर थे । मुगल बादशाह है, चाहे घड़े में जल ले कर स्नान कीजिपे फिर भी जल | भौरङ्गजेबने ईष्याके वशीभूत होकर इन मन्दिरोंको इससे कम नहीं होता। ढहवा दिया था। प्रनतस्य विदफुहरारका कहना है कि सीताकुण्डको वगलमें सैकडों सीढ़ियों को पार कर वहांको किम्यदन्तो मतिरञ्जित तो हो सकती है। किंतु पर्यके ऊंचे स्थान पर पहुचते हैं यहां पर्वतकी पीठका। यह बात निश्चय है, कि किसी समय यहां वहुतेरे मंदिर मन्दाजा मिलता है। यह स्थान अटकी पीठकी तरह है।) - विद्यमान थे। यहां एक वृक्षके पत्ते में नाना रेखायें होती है। यहां विन्ध्याचल डेढ पाय जमीनके बाद दक्षिणपूर्वके लोगों का कहना है, कि इन पत्तों पर राम नाम लिखा है। कोने पर कण्टित प्राम है। यहां एक प्राचीन मसजिद है। पर्यतके इस मशमें चीता बाघका उत्पात होता रहता है। वर्तमान समयमें इसको मरम्मत हो जानेसे यह नई मालूम • कहते हैं, कि उक्त वृक्षके रामनामलिखित पत्तेको कान हो रही है। सिवा इसके यहां एक पुराने किलोका खण्डहर में रखनेसे बाघका पर छूट जाता है। पाया जाता है । उसको प्राचीन पम्पापुर राजधानीका दुर्ग विन्ध्याचल तीर्थमें महामायाको प्रसादी सागूदाने होने का अनुमान किया जाता है । इस समय इस दुर्गका • की तरह चीनीका दाना मिलता है। शेरा और यत्र कुछ भी शेष नहीं रह गया है। केवल मृत्तिका निर्मित .. पाली रत्नके साथ संपह कर अपने घर लाते हैं। यमभूमि, म्याई और कहीं कहीं पको दोचारका भग्नावशेष योगमायाफे मन्दिर में नबूतरेसे कई सीढ़ियों को पार ) विद्यमान है। करने पर महाकाल शियका मन्दिर मिलता है। मदिर- J. . उक्त कण्टित प्रामके डेढ मील पश्चिम शिवपुर में कुछ भी नहीं है। कितनी ही टोकी तरह पत्थर नामक एक प्राचीन ग्राम है। यहां पहले एक बहुत बड़ा की जुड़ाईपर तोन ओरसे प्राचीर खड़ी हैं। महाकालका शिवमन्दिर था: इसका ध्वंसावशेष आज भी वर्तमान लिङ्ग ध्येतपत्थरका बना है । गौरीपट्ट भी है। यह | रामेश्वरनाम मन्दिरके चारो ओर इधर उधर फैला मालूम नहीं होता, कि उसका निम्नमाग भूमोथित हैं या दिखाई देता है, प्राचीन मन्दिरके कई बडे बडे स्तम्भ नहीं । बगल में छोटे बड़े कितने हो शिवलिङ्ग पड़े है। । और उसका शीर्षस्थान वर्तमान रामेश्वरसे सटा हुआ ___ यहाँ बहुत दिनों से डाकुओं का उपद्व चला माता है। यहांके पत्थरको प्रतिमूर्तियोंमें सिंहासनाधिष्ठता, है। सुनते हैं, कि डाकू यहां देवीको नरबलि चढ़ाया और गोदमें पुन लिये हुई एक रमणीको मूर्ति विशेष करते ये । अङ्गरेजों के शासनसे यह प्रथा मिट गई | :माग्रहकी सामग्री है। यह मूर्ति ५ फोट २ इञ्च लग्त्री सहो , किस साफेनीको कमी नहीं हुई है। बहुतेरे । और ३ फोट ८ इन्च चौड़ी है। इसकी मोटाई १ फुट ८ यात्रियोंका यहां यथासर्वस्व लूट लिया जाता है। इससे | च है। स्त्री-मूर्ति की मुखाकृति न होने पर भी इसके प्रति दिन संध्याको यहाँसे यात्री और लोगों को प्रामों में | शिरके युद्ध या तीर्था करको मूर्ति नष्ट नहीं हुई है। इस पहुचा दिये जाते हैं। बहुतेरे मनुष्य स्वास्थ्य-रक्षाके | मूर्तिका दाइना हाथ केहुनी तक टूट गई है और पायें लिये यहां आ कर बसे हुए हैं। हायमें एक बालक है। इसका चायाँ पैर सिंहासनके नीचे विन्ध्याचल के पूर्व एक प्राचीन दुर्गका ध्वंसावशेष तक झुकता है। इसके नीचे सिंहको मूर्ति है, इस मूर्तिके Vol TXT 110