विपक्षता विपरिभ्रंश
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(नि० )विगतः पक्षो यस्य 14 विरुद्ध, खिलाफ, विपत्ति ( स. स्त्री०) विपदाकिन् । १ विपद्, कष्ट, दुःख
प्रतिकूल।, पक्षहोन, विना पर या जैनेका । १० विपरीत, | या शोककी प्रीति, भारी रंज या तकलोफको या पड़ना ।
उलटा। ११ , जिसके पक्षमें कोई न हो, जिसका कोई | २क्लेश या शोकको स्थिति, रंज या तकलीफकी हालत।
। तरफदार न हो।
। ३ कठिनाई, झमाट, बखेड़ा।
विपक्षता (स० स्त्रो०) विपक्षस्य भावः तल टाप। १ विपक्ष विपत्मन् (सं० त्रि०) विविधगमनयुक्त या विचित्रगमन-
होने का भाव, खिलाफ होना । २ घिरुद्धपक्षका अय- युक्त। ।
लम्बन ।
| विपथ (सं० पु०) विरुद्धः पन्था ( पुरवधूः पधामा.
विपक्षमा (स.पु.) १ विपक्षता, शन ता । २ घृणा । | मझे। पा ५।४।७४) इति समासान्त अप्रत्यया । १ फुमार्ग,
विपक्षशूल ( स० पु० ) साम्प्रदायिक नेता, दलका कर्ता । चुरा रास्ता ! २ गलका रास्ता । ३ मन्द आचरण, चुरी
विपक्षस् ( स० वि०) रथके दोनों बगलमै जीता हुगा। चाल। ४ एक प्रकारका रथ।
विपक्षिन (स.नि.)१ विरुद्ध पक्षका, दूसरी तरफ विपद् (सं० स्त्री०) विपद-सम्पदादित्वात् कि । विपत्ति,
का। २ प्रतिद्वदो, प्रतिवादो, फरीकसानो । ३ पक्षहीन, आफत, संकट ।
विना पंख या डैनेका ।
विपदा (सं० सी० ) विपद्-भागुरिमते हलन्तानां टाप ।
विपक्षीय ( स० वि०) विपक्ष-छ। विपक्षसम्बंधोय, शत्रुफे विपद्, विपत्ति, माफत ।
पक्षका।
| विपन्न (सं० नि०) विपद-क्त । १ विपद-क्रान्त, जिस
विपश्चिम (स पु०) देवश, जो मानव जीधनकी घटनावली | पर विपत्ति पड़ी हो, मुसोवतका मारा । २ दुःखी, मार्ग।
कह देते हो।
३ कठिनाई या झमटमें पड़ा हुआ। ४ मृत । ५भूला
रिपञ्चिका ( स० स्त्री० ) विपचि विस्तारे घुल स्त्रियां | हुमा, सममें पड़ा हुमा।
टाप मत इत्यं । वोपा।
| विपन्नता (सं० स्त्री०) विपन्नस्य मावा तल्-टाए । विपन्न-
विपञ्ची ( स० स्त्री०) विपञ्च-मच स्त्रिया-गौरादित्वात् | का भाव या धर्म, विपद्, विपत्ति।
डोप । १ एक प्रकारका बाजा जिसमें तार लगे रहते हैं, विपन्या (सं० स्त्री०) पिस्पष्टा, अतिशय स्पष्टा । (मृक्
एक प्रकारको वीणा। २ फेलि, फोड़ा, खेला, १०७२।२)
विपण ( स० पु० ) वि-पण व्यवहारे घम्, संहापूर्णकत्यात् विपन्यु (सं० नि०) १ स्तुतिकारक । (ऋक १०।२२।२१)
न वृद्धिः। १ विक्रय | जो सब ब्राह्मण विपण अर्थात् २ स्तुतिकाम (अक्५।६।१५)
विक्रय द्वारा अपनी जीविका चलाते हैं, हव्यकव्यमें उन- विपराक्रम (स त्रि) विगतः पराक्रमो यस्य । विगत
का अधिकार नहीं है। २ विपणि ।
पराक्रम, पराक्रमरहित ।।
विपणि (सपु० स्त्री०) विपण्यतेऽस्मिन्निति विपण-विपरिणाम (स.पु०) वि-परि-णम-घन । विशेषरूप
, (सर्वघातुभ्य इन् । उप ।।११५), इति इन् । १ पण्य, विक्रय. परिणाम, विशिष्ट परिणाम ! २विपर्या, संपरिवर्तन ।
गोला, विक्रयगृह, दूकान । २ हट्ट, हाट । पर्याय-पण्य-विपरिणामिन् (स. त्रि०) वि-परि-णम-णिनि ।
योधिका, मापण, पण्यवीधी, पण्य, रभस, निद्या, परिणामयिशिष्ट, परिणामयुक्त । यह जागतिक भाय
वणिकपथ, विपण, चोथो ।३ वाणिज्य। । .. विपरिणामी है, जगत्में जो कुछ परिदृश्यमान होता है,
विपणिन् (स.पु.) विपणः विक्रयोऽस्यास्तीति विपण- सभी थोड़े समयके लिये भी अपरिणत जरूर होता है।
इनि । वणिक् ।.,
२ वैपरीत्यविशिष्ट।
विपणा (म' स्त्री० ) विपणि वा डीप ! हाट। विपरिधान (स'क्ली०) १ विशेषरूपले परिधान, भच्छी
विपताक (स' त्रि०) विगताका पताका यस्मात् । पताका| तरह पहनना। २परिधानका अभाष ।
शून्य, विना पताकाका! .. .
| विपरिभ्रंश (स० पु० ) विपरिणाम, विनाश। ..
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/५२५
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