पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/५२७

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विपाक यह विषय विशेषरुपसे पर्णित हुआ है। यहां बहुत और मरणके मध्यवत्ती समयमें अनुष्ठित विविन कर्म संक्षेपमें उसकी आलोचना की जाती है। प्रधान और अप्रधान भावसे भयस्थित हो कर मरण द्वारा अविद्या यादि पञ्चत अर्थात् मविधा, अस्मिता, अभिव्यक्त होने हैं अर्थात . फलजननमें अभिगुनाहत हो राग, छैप और अभिनिवेश -ये पांच तरहके क्लेश जन्म प्रभृति कार्य एकत्र मिल कर एक हो जन्म सम्पादन रहने पर धर्मविधर्मरूप' फर्माशयका विपाक ' करते हैं। मश्चित कराशि प्रारम्य द्वारा अभिभून रह जाति, आयु और भोग होता है। क्लेशरूप ; कर मरण समयमें सजातीय अनेक कमों के माथ मिल मूलका उच्छेद होने पर और नहीं होता। जैसे धान ' कर एक जन्म उत्पादन करती है। ऐसा होनेसे फिर पूर्वोक्त जब तक छिलका मौजूद हो और उसकी चौजशक्ति दग्ध दोष रह नहीं जाता। क्योंकि जैसे एक एक जन्ममें अनेक नदी हो, तब तक यह पडा कुरोत्पादनमें समर्थ होता है; कर्ग उत्पन्न होते हैं, इधर एक जन्म द्वारा भी अनेक कर्म. किन्तु छिलका काटने या घीजशक्तिके 'दाह करनेसे यह , का क्षय हो कर आय-व्यय समान हो जाता है। उक्त समर्थ नहीं होता। वैसे ही ग्लश मिश्रित रद कर कर्मा ' जन्म उक्त कर्म अर्थात् उक्त जन्मका प्रयोजन कर्म द्वारा शय अदष्ट फल जननमें समर्थ होता है , क्लेश अपनीत ही यु लाभ करता है, अर्थात् जिस कर्मसमष्टिसे होने पर अधया प्रसंख्यान द्वारा फ्लेशरूप वीजभावका दाह । मनुष्य आदिका जन्म होता है, उसोके द्वारा जीवन करनेसे और नहीं होता। उक्त कर्मविपाक तोम प्रकार, काल और सुखदुःनका भोग होता है। का है, जाति मनुष्य आदि , जन्म, आयु जीवनकाल, भोग पूर्वोक्त प्रकारसे कर्माशय जन्म, भायु और भोगका और सुखदुःखका साक्षात्कार । कर्मका विपाक जाति, । कारण यह त्रिविपाक अर्थात् उक्त जन्म आदि तीन मायु और भोग किस तरह होता है और किस तरहक प्रकारके विपाकों का पिता कहा जाता है, इसको ही एक- फर्मके फलोंसे पे सव भोग करने होते हैं. उनका विषय । भविक अर्थात् एक जन्मका कारण कर्माशय कहा जाता 'इस तरह लिखा है- ' ' • पक कर्मका क्या एक जम्मका कारण है ? अथवा दुएजन्म घेदनीय कर्माशय केवल भोगका हेतु होनेसे पक कर्म अनेक जम्म सम्पादन करता है या अनेक कर्म । उसको एक विपाकारम्मक कहने हैं, जैसे नहुय राजाका एक जन्मका कारण है ? (सफे विचारमें इस तरह लिखा । मायु और भोग इन दोनोंका जनम होनेसे द्विविधाकारम्भ है, कि एक कम एक जन्मका कारण है, ऐसा नहीं कहा होता है, जैसे नन्दीश्वरका । ( नन्दीश्यरको पिल जा सकता। क्योंकि अनादि कालसे सचिन जन्मान्त माठ वर्षको आयु थी। शिवके घर-प्रदानसे अमरत्य रीय असंख्य अपशिष्ट कर्मके और वर्तमान शरीरमे 'जो। और उसके उपयुक्त मोग मिलता है । ) कुछ कर्म किये गये हैं , उन सयों के' फलफमफे अर्थात् | ... गांठ द्वारा सवयवां में व्याप्त मत्स्यजालको तरह फलोत्पत्तिका पीर्वापीयका नियमन रहनेसे लोगों के चित्त अनादि कालसे क्लेश, कर्म और विपाक सांस्कार- धर्मानुष्ठान में अविश्वास हो जाता है, वैसा होना संगत , से परिण्याप्त है। कर विनित हो गया है। उक पास- नहो। यह भी नहीं कहा जा सकता, कि ना असंख्य जन्मसे चित्तभूमिमें सञ्चित हुई हैं। जन्म- असंख्य कर्मोमें यदि एक ही अनेक सम्मका कारण हो । हेतु एकमयिक यह कर्मागय नियतविपास और अनि जाय, त्य अवशिष्ट कर्मराशिके विपाककालका अवसर, यतविपाक होता रहता है। अर्थात् कितने ही परिणामों- हो नहीं आता। यह भी नहीं कहा जा सकता, कि अनेक का समय अवधारित रहता है। कितनेका परिणाम किस कर्म भनेक जन्मका कारण है। योकि ये अनेक जन्म तरहसे होगा, यह ठीक नहीं कहा जा सकता। एक समय नहीं हो सकते। मतपय क्रमशः होते हैं, दुष्ट जन्मवेदनीय नियतथिपाक कमांशयका दी ऐमा ऐसा कहना होगा। इसमें पूर्वोक्त दोष अर्थात् कर्मान्तर ! नियम हो मकता है, कि घ६ एकमविक होगा। अष्ट. विसमा मा जाता है। प्राय जम्म जन्मवेदनीय अनिपतविपाक कमांशपका वैमा नियम हो