विभागारमक नक्षत्र-विभाव
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विभागात्मक नक्षत्र (म. पु०) रोहिणी, भार्दा, पुनर्वसु, यिभाव ( स० लि. ) यि-माधि अच् । १ विविध प्रकारसे
मधा, चित्रा, स्याती, ज्येष्ठा और श्रवणा मादि आठ 'प्रकाशवान् । (पु० )२ परिचय । ३ रसके उद्दीपनादि ।
प्रकाशमय नक्षण।
काव्य-नाटकादिमें जो सामाजिक रति आदि भावोंके
विभागिक (सं०नि०) मांशिक ।
उद्योधकरूपमें सन्निवेशित होते हैं, उन्हें विभाव कहते हैं।
विभागिन् (सं० त्रि०) १ विभागकारी, दिमाग करनेवाला। जैसे,-रामादि गत रतिहासादिको उद्बोधक सीतादि ।
२विभाग या हिस्सा पानेवाला ।
यह विभाव मालम्बन भी उद्दीपनके भेदसे दो प्रकारका
विभागी (सं०नि०) विभागिन देखो ।
विभाय (' त्रि०) विभाज्य, वांटने लायक। ____ आलम्पन,-नायक, नायिका, प्रतिनायक, प्रतिना-
विभाज (म० वि०) १ विभक्त, घसा हुआ। (क्ली० ) यिका आदिको ही मालम्वन विभाव कहते हैं। क्योंकि
२पाल, रतन।
उनका मालम्वन करके ही ङ्गार, चोर, करुणादि रसौंका
विभाजक ( स० वि० ) १ दिमागका, वांटनेवाला। उद्गम होता है। जैसे वर्णनामें भोम कंसादिको साक्षात्
२ गणितमें यह संम्या जिससे किसी दूसरी संख्याको योररसका आश्रय कह कर उद्योध होता है।
माग दें,भाजक ।
उद्दीपनविभाय, नायकनायिकों की चेष्टा अर्थात् दाय
विभाजन ( स० क्लो० ) १ विभागकरण, यांटनेका काम। भाय तथा रूपभूषणादि द्वारा अथवा देश, काल, प्रक,
२पाल, वरतन ।
चन्दन, चन्द्र, कोकिलालाप, भ्रमर झङ्कार मादिसे जिस
विभाजित (स० वि०) जिसका विभाग किया गया हो, जो ङ्गारादि रसका उद्दीपन होता है, उसका नाम उद्दीपन
बांटा गया हो।
विभाव है।
विभाज्य (म त्रि०) १ विमजनोप, विभाग करने योग्य ।। __"उद्दीपनविभावास्ते रसमुद्दोपयन्ति ये।
२विभागाई, जो धन पुत्रोंक योच वांटा जा सके। .. भासम्बनस्य चेष्टाद्या देशकालादयस्तथा ॥"
विमाएड (स० पु०) ऋपिभेद । (महाभारत) विभायडक देखो।
(साहित्यद० ३३१६०.१६१)
विमाण्डक-एक ऋषि जो ऋष्यशृङ्गाके पिता थे। यहां जिस जिस रसका जो जो यिभाव है, नीचे झमा.
. . .ऋष्यशृङ्ग देखा।। नुसार यथायथ भावमें उसका उल्लेख किया जाता है।
२ सह्याद्रियर्णित राजभेद ।, ये भरद्वाज कुलोद्भव शृङ्गाररसमें, दक्षिण, अनुकूल, धृष्ट और शठ
भोर ललिताफे भक्त थे। (सहा० ३३॥३) . ., 'नायक तथा परकीया, अननुरागिणी और घेश्यासे भिन्न
३ सह्याद्रि-वर्णित कुलप्रवर्तक ऋषिभेद । नायिका 'मालम्बन' है। फिर चन्द्र, चन्दन, भ्रमरझङ्कार,
. . . .(सहयाद्रि० ३४५२७), कोकिलकूजन आदि 'उद्दीपन' विभाव हैं।
विभाण्डिका (स' स्रो०) आहुल्य वृक्ष ।
रौद्ररसमें,-शन, आलम्वन तथा उसका मुष्टिप्रहार,
विभाएडो (स. स्त्री०) १ आवर्तकी लता । २ नीला लम्फप्रदानपूर्वक पतन, विकतछेइन, विदारण, युद्धमें
पराजिता, विष्णुकान्ता लता।-
। ध्यमता आदि उद्दीपन विभाव हैं।
विमात् ( स० वि०) १ प्रभामय । (पु०) २ प्रजापतिभेद। योररसमें,-विजेतव्यादि मालम्बन तथा उनकी चेष्टा
बिभात (सल0) वि-मा-क। प्रत्यूप, सपेरा। । आदि उहोपन विभाव हैं।
विभाति (दि० पु०) शोमा, सुन्दरता। ..
विभाना (दि.० मि०) १ चमकना, झलकना । २ शोभा. ____* दानवीर, धर्मवीर, दयावीर और युद्धधीरके मेदसे वीर चार
पाना, शोभित होना। .
प्रकारका है । . इनमेंसे दानवीरका विजेतत्य या मानम्वनविमान
विभानु ( स० वि०) विकाशक, प्रकाशक ।
'सम्प्रदानीय ब्राह्मण है अर्थात् जिनको दानकिया जायेगा तथा उन
- . (ऋक् ८६११२) | की साधुता और अध्यवसायादि उद्दीपनविभाव है। धर्मवीरका,.
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